Moral stories in hindi : शादी के पांच वर्ष ही तो हुए थे,नन्हे से अंकुर की शरारते और कुछ कुछ तोतले पन के बोल से दोनो सरला और दिनेश प्रफुल्लित होते रहते।लगता अब और क्या चाहिये जीवन में।दिनेश की प्राइवेट कंपनी में अच्छी भली जॉब थी,इन पांच वर्षों में उन्होंने एक छोटा सा आशियाना भी बना लिया था।
बहुत अधिक की उन्होंने कभी कामना की नही थी।प्रेम स्नेह विश्वास के साथ सरला और दिनेश अपनी गृहस्थी चला रहे थे।और दो वर्ष पूर्व तो अंकुर भी आ गया था।अब तो समय यूँ ही बीत जाता।
जीवन मे सब कुछ ठीक ही हो यह संभव तो नही।दिनेश एक दिन ऑफिस गया तो वापस उसका शव ही आया, रोड एक्सीडेंट में उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे।बदहवास सरला दहाड़ मार मार कर रोती रही।सब रिश्तेदार करीबी सांत्वना दे धीरे धीरे चले गये।रह गये निपट अकेले सरला और 2 वर्षीय अंकुर।सरला के सामने पूरा भविष्य मुँह फाडे खड़ा था।सरला ने एक बात समझ ली कि जिंदगी की लड़ाई उसे ही स्वयं अकेले लड़नी है।
अंकुर का भविष्य भी उसे ही बनाना है।सबसे पहले सरला के सामने समस्या थी अपने खुद के रोजगार की।दिनेश के प्राइवेट कंपनी में जॉब के कारण उसके बदले पत्नी को नौकरी का कोई प्रावधान नही था।कंपनी से जो पैसा मिला सरला ने उसकी अंकुर वास्ते एफ.डी. करा दी।शादी से पूर्व सरला ने ग्रेजुएशन के बाद बीटीसी कर लिया था।दिनेश ने सरला को नौकरी करने ही नही दी थी,इसलिये इन डिग्री की आवश्यकता ही नही पड़ी थी।
सरला ने अपनी डिग्रीया निकाली और अध्यापन वास्ते आवेदन करना प्रारंभ कर दिया।
अब ऐसा भी तो नही कि दुर्भाग्य ही सदैव रहे,सरला को एक गाँव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिल गयी।हालांकि गाँव सरला के घर से 15 किलो मीटर की दूरी पर पड़ता था,पर बस वहाँ तक जाती थी,सो सरला ने यह नौकरी जॉइन कर ली।इससे मिलने वाला वेतन उसे और अंकुर को पर्याप्त था।
दिनेश के बाद दूसरी शादी की उसने कभी कल्पना तक नही की,तमाम रिश्तेदारों और शुभचिंतकों ने सरला की युवावस्था को देखते हुए दूसरी शादी की काफी सलाह दी,पर सरला ने साफ कर दिया कि उसके मन मे केवल दिनेश है और वह उसकी निशानी अंकुर के साथ अपना जीवन व्यतीत करेगी।और सरला ने यही किया।
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अंकुर को अपने साथ गाँव ले जाना और वहां अध्यापन कराना और वापस घर आ सब कार्य करने,यही दिनचर्या अब सरला की थी।साधारण सी वेश भूषा में सादगी की प्रतिमा सी लगती सरला।उसके व्यक्तित्व के कारण युवा सरला की ओर कोई आंख उठा कर भी देखने की हिम्मत नही करता।
समय व्यतीत होने लगा अंकुर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर नौकरी जॉइन कर ली थी।वही उसकी मुलाकात सीमा से हुई।सुन्दर सुशील सीमा की ओर अंकुर अनायास ही आकर्षित हो गया।यह आकर्षण कब प्यार में बदल गया पता ही नही चला।आखिर अंकुर ने सीमा को प्रपोज कर ही दिया।
तब अंकुर को ज्ञात हुआ कि सीमा भी उसे चाहती है।अंकुर ने एक दिन सीमा से कहा कि सीमा वह तुम्हे माँ से मिलवाना चाहता है।उनकी सहमति से ही हमारा प्यार मंजिल पा सकता है।सीमा मेरी माँ ने मेरे लिये अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी है,उनके लिये मैं ही सबकुछ हूँ, मेरे लिये भी माँ आराध्य है।कभी भी भूले से भी सीमा मेरी आराध्य का अपमान मत कर देना।सीमा वो मर जायेगी और मैं भी उनका असम्मान बर्दाश्त नही कर पाऊंगा।
आधुनिक परिवेश में पली बढ़ी सीमा ने कोई उत्तर न देकर अंकुर का हाथ कस कर दबा लिया।दोनो एक दूसरे की मौन भाषा को भी शायद समझने लगे थे।अंकुर सीमा को माँ के पास लेकर गया। सरला को सीमा एक नजर में ही भा गयी।सीमा को बाहों में भर कर उसे आशीर्वाद भी दे दिया।
शुभ मुहर्त में दोनो का विवाह भी सम्पन्न हो गया।घर मे बहू आ गयी तो सरला प्रसन्न हो गयी,घर चहलपहल से भर गया।सरला भी रिटायर्ड हो गयी और घर मे ही रहने लगी।एक दिन सीमा की पुरानी सहेली उर्वशी जो उसकी शादी में शामिल नही हो पायी थी,उससे मिलने घर आयी।
पहले तो उसने छोटे से घर को देखकर ही मुंह चढ़ाया, उसे लगा था सीमा अपने पिता की तरह किसी बड़ी कोठी में रहती होगी।फिर सीमा ने उसका परिचय अंकुर से कराया।अभिवादन के पश्चात दोनो सहेलियां ड्राइंग रूम में बैठकर गपशप करने लगी।तभी सरला अपने कमरे से निकल ड्राइंग रूम में आयी, माँ को देख उनका परिचय उर्वशी से कराने को उठी ही थी कि वह बोली सरला ये कौन क्या तुम्हारी नौकरानी?अंकुर कुछ बोलता उससे पूर्व ही सीमा बोल उठी,उर्वशी ये हमारी माँ है,माँ। माँ? माफ करना मै तो इनकी वेशभूषा को देख इन्हें नौकरानी समझी थी।
इनके आशीर्वाद से ही मैं अंकुर को प्राप्त कर सकी हूँ,सीमा उत्तेजित स्वर में बोल उठी।वेशभूषा से कही व्यक्ति की पहचान होती है?अपनी सोच में परिवर्तन करो उर्वशी, सबकुछ धन दौलत ही नही होता।घर मे घुसने के समय से ही मैं तुम्हारे एटीट्यूड को भांप रही थी।
झेंपकर उर्वशी बोली,मेरा तात्पर्य यह नही था।दो तीन मिनट बाद ही उर्वशी किसी काम का बहाना बना कर चली गयी।उसके जाने के बाद सीमा माँ से चिपटकर रोती हुई बोली माँ हमे माफ कर देना उर्वशी के शब्दों के लिये मुझे माफ़ कर दो।सरला ने सीमा के सर पर हाथ रखकर बोली बेटा जीवनभर अध्यापक रही हूं,क्या समय परिवर्तन नही समझती?उर्वशी की क्या गलती,अब जब मेरी वेशभूषा ही गंवार जैसी हो तो वो क्या मुझे मेमसाहब कहती?माहौल को सरला ने समान्य कर दिया।
आज अंकुर गर्वित था कि सीमा के रूप में उसका चुनाव सही साबित हुआ था।
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
मौलिक एवम अप्रकाशित।