hindi stories with moral : मीरा का सर चकराने लगा था. जिस्म पसीने से तरबतर हो चुका था. पैर लड्खड़ाने लगे थे उसके. खुद को संभल नहीं पायी और पलंग पर औंधे मुँह गिर पड़ी. उसकी आंखों के आगे पूर्ण अँधेरा छा गया था और धीरे धीरे उसकी आंखे मुंदती चली गयी. फिर जब उसकी आंखे खुली तो कमरे देख कर वह समझ गई की वह हॉस्पिटल में हैं.
मीरा ने उठने की कोशिश की तो ऐसा लगा जैसे उसके जिस्म का कतरा कतरा दुख रहा हो. इसके साथ ही एक आह सी निकल उठी उसके मुंह से.
उसी पल वैभव अपने कमरे में प्रवेश किया. तेजी से उसने मीरा को थामा और सहारा देकर दोबारा लिटाया.
“लेटी रहो, बहुत कमजोरी है अभी तुम्हें, बिल्कुल मत उठो, पानी पियोगी?” वैभव का स्वर चिंता से लबालब था.
मीरा ने इनकार में सिर हिला दिया और चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया.
“मीरा, इधर देखो, मेरी तरफ, प्लीज.”
“आपका चेहरा देखने पर आपकी आंखों में समाई किसी और की परछाई भी दिखती है पर वह परछाई सिर्फ परछाई नहीं है, वह मुकम्मल वजूद है उसका जिसके सामने मुझे अपना अस्तित्व नगण्य होता दिखता है.”
“आप बताइए मेरा क्या कसूर है? क्यों मैं आज तक आपके प्यार की हकदार ना बन सकी? कौन सी कमी दिखी आपको मेरे प्यार में, मेरे समर्पण में की आज तक आप का दिल उसको ही खोजता रहता है? क्यूं आज भी आप उसके ही मोहपाश में बंधे हैं?”
“में सजती हूं तो आप अनदेखा कर देते हैं क्योंकि अभी भी आप उसे ही देखना चाहते हैं,आप मुझे तोहफा देते हैं तो उसकी पसंद का,क्यों,क्योंकि शायद ऐसे ही तोहफ़े आपने पहले भी दिए होंगे.”
“आज मेरी समझ में आ रहा है कि क्यूं आप हमारे रिश्ते के प्रति इतने उदासीन हैं,पर आज में आपसे कहे देती हूं की आप मुझमें उसको नही ढूंढ सकते, मैं मीरा हूं,मेरा अपना वजूद है, बेहतर होगा की आप मुझमें किसी और का प्रतिबिंब न तलाशिए .”
मीरा तल्ख स्वर में बोली और नजरें खिड़की के बाहर ही टिका दी.
वैभव उसके समीप ही बैठ गया और ठहरे हुए स्वर में मीरा को अपने और कीर्ति के रिश्ते की एक एक बात बता दी.
मीरा निर्विकार भाव से सब सुन रही थी. आंसु बह रहे थे उसके जिन्हें पोंछते हुए वैभव बोला“सुबह पर्स में कीर्ति की तस्वीर देखते हुए मैंने तुम्हें देख लिया था और जब मम्मी का फोन आया तुम्हारी तबीयत को लेकर तो समझ गया था की कौन सी बात अशान्त कर गयी थी तुम्हें.”
“यकीन जानो, जिस दिन से कीर्ति का वह मैसेज पड़ा था, उसी पल से वह मेरे लिए पराई हो गई थी पर यादों के परतें अभी भी दिमाग में उथल–पुथल मचा रही थीं. सुहागरात पर बहुत कोशिश की कि उन परतो को खुरच खुरच कर निकाल फेंकू पर ना जाने क्यूं इस दिशा में कदम ही नहीं उठ रहे थे. तुमहराआंसुओं से भीगा चेहरा मुझे द्रवित कर रहा था. उधर तुम्हारा तकिया भीग रहा था और इधर मेरी किताब के पन्नें, जिसके साथ पूरे पूरे जीवन का सफर साथ चलकर बिताना था उसी को पहले मोड़ पर अकेला छोड़ रहा हूँ, इसीलिए खुद से नज़रें नहीं मिल रहा पा रहा था.“
“शादी के बाद कोई सुख नहीं दे सका तुम्हें. अपनी सहेलियों के सामने तुम मुझे बेहतरीन पति का दर्जा दे रही थी पर उस लायक ना था मैं, ग्लानि से भर गया था. चीकू अनु के साथ जैसे तुम्हारा बचपन लौट आया था तुम्हारी सरलता से, तुम्हारी सादगी से परिपूर्ण सुंदरता, यह अब मैं देख पाता था, पर किसी भी हालात में तुम्हारी सवालिया नजरों को मैं झेल नहीं पाता था. छोटी–छोटी खुशियों कितना आनंद देती है तुम्हें,ये समझ रहा था मैं. सभी का मन मोह लिया था तुमने. चॉकलेट लेते हुए सवाल था तुम्हारा कि “क्या मैं छोटी बच्ची हूं…” हां, मीरा उतनी ही मासूम हो तुम, जी चाह रहा था कि उसी वक्त तुम्हें अपने अंक से समेट लूं पर मन ना जाने क्यों भारी सा हो जाता.”
“गुलाबी साड़ी में अप्सरा समान लग रहीं थीं तुम पर बस बीती बात याद आ गई और इस से पहले की तुम्हें कुछ कहूं तुमने चलने के कह दिया,गलती मेरी थी,मानता हूं पर मीरा ये इल्ज़ाम न लगाओ की मैं कभी तुम्हें अनदेखा कर सकता हूं और वो बालियां मैंने कीर्ति को नहीं दी थीं वो बस एक इत्तेफाक था की उसने उस तस्वीर में वैसी ही बालियां पहनी है.तुम्हारे तोहफ़े की वो बालियां तो मेरी पसंद थी सिर्फ तुम्हारे लिए.”
“मेरे जीवन की तो एक एक सांस तुम्हारी ऋणी है,जो प्यार और निष्ठा तुमने मेरे प्रति रखी है उसके समक्ष तो मैं अपने जज़्बे को रिक्त समझता हूं.”
“आज ऑफिस से हॉस्पिटल का वह चंद मिनटों का सफर भी मुझे सात समंदर पार की दूरी का एहसास करवा रहा था.“
“नहीं मुझे आपकी बातों का विश्वास नहीं, आप उसे कभी नहीं भूल पाएंगे,मीरा का स्वर रूखा हो उठा था”
“अतीत को आज से मत जोड़ो मीरा. दुनिया के समक्ष पूरे रीति रिवाजों से हम जीवन साथी बने हैं, जीवन साथी मीरा,जो जीवन भर एक दूजे के साथ निभाते हैं.”
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