काश मैं पक्षी होता – दर्शना जैन

निखिल और उसकी पत्नी उमा खिड़की के पास बैठे थे। दोनों की निगाहें बाहर पेड़ पर बने एक घोंसले की ओर गयीं।

      घोंसले में एक चिड़िया बैठी थी। शायद कमजोरी के कारण वह उड़ नहीं सकती थी। एक छोटा चिड़िया का बच्चा अपनी चोंच में दाने लाकर चिड़िया की चोंच में संभलते हुए डालकर यूँ खिला रहा था  मानो वह चिड़िया का बेटा हो। दोनों चीं चीं कर एक दूसरे के प्रति अपना प्रेम दर्शा रहे थे।

      बाहर का दृश्य देख निखिल बोल पड़ा,” अगर मैं भी पक्षी होता तो माँ के साथ रहता, उस चिड़िया के बच्चे की तरह माँ की सेवा करता क्योंकि पक्षियों के समाज में वृद्धाश्रम कहाँ होते हैं, वे तो केवल हमारे समाज में ही होते हैं और हम ही तो हैं जो शौक के जिम्मेदारियों पर हावी हो जाने से अपने बड़ों को वहाँ भेज देते हैं।” थोड़ा रुक वह आगे बोला कि काश तुम भी पक्षी होती तो….। बोलते-बोलते निखिल की आँखें नम हो गयीं और अपने आँसू छिपाते हुए वह उठकर चला गया।


     उमा के अंतर्मन ने उसे झकझोरा – ” तुम पर सवार जॉब के भूत ने पति का जीना हराम कर दिया. बातें सुना-सुनाकर सासूमाँ को इस कदर परेशान किया कि उनकी तबीयत बिगड़ने लगी परंतु तुमने यह कहकर उसे अपनी सास का बहाना करार दिया कि वे तुम्हें जॉब नहीं करने देना चाहतीं। उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की बात तक पति से कह दी। पति ने ऐसा न करने के लिए तुम्हारे सामने हाथ जोड़े लेकिन तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। तब घर व माँ का सुकून बना रहे इसलिये निखिल भारी मन से माँ को वृद्धाश्रम भेजने को तैयार हो गया। तुम्हें नहीं लगता जैसे वह चिड़िया का बच्चा तुम्हें चिढ़ा रहा हो कि मुझसे कुछ तो सीखो।”

     उमा के सिर से जॉब का भूत उतर गया, वह सीधे सासूमाँ के कमरे में गयी। निखिल उनके पैर दबा रहा था, उमा भी आँखों में पश्चाताप के आँसू लिये पैर दबाने लगी।

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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