संस्कारहीन – पूनम सारस्वत  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “अच्छा चल कितनी देर में आ रही है घर पर ?” मीनू ने दीपा से पूछा।

“बस फोन रख दस मिनट में हाजिर होती हूं।”

दीपा और मीनू दोनों सखियों में बहिनों जैसा प्यार है और घर ज्यादा दूर नहीं होने के कारण जरा जरा सी बात पर एक दूसरे के घर पहुंचना बहुत सामान्य सी बात  । दोनों के घरवालों को भी कोई आपत्ति नहीं क्योंकि दोनों ही और कहीं न जातीं हैं न किसी से दोस्ती रखती हैं।

उनकी अपनी दुनिया है जिसमें दूसरा झांक तो सकता है पर दोस्ती के लिए नो स्पेस।

अभी दीपा की बड़ी बहिन की शादी तय हो गई है तो बस सगाई और शादी में क्या पहनना है क्या खरीदना है पर चर्चा जोरों पर है।

“नमस्ते आंटी, नमस्ते अंकल मीनू कहां है?”

“ऊपर छत पर ही है तेरा ही इंतजार कर रही है। कहां जा रही हो आज दोनों, क्या प्लानिंग है??”

“आंटी जी बाज़ार जाएंगे और मम्मी ने कहा है कि लौटते पर उन्हें मीनू से बात करनी है तो बाद में वह घर भी जाएगी ।अभी तो हम यहीं से मार्केट जाएंगे।

ठीक है जाओ ,करो तैयारी तुम लोग, तैयारी तो बारात आने तक चलती ही रहेंगी,और मीनू की मम्मी हंसने लगी।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

कसक – अनु ‘मित्तलइंदु ‘

“ऐ मीनू तैयार हो गई??”

“हां बाबा हो गई,आजा एक कप चाय पीकर फिर चलते हैं।”

बाजार में

“दीपा ये पीला स्लीवलैस गाउन कैसा लग रहा है? मुझे तो बहुत पसंद है।”

“अरे पर स्लीवलैस?? मैं नहीं पहन सकती।”

“क्यों भई क्यों नहीं पहन सकती , इसमें क्या भूत घुसा है”??

“मम्मी पसंद नहीं करेंगी।”

“अच्छा ऐसा तो नहीं लगता मुझे?”

“ऐसा ही है। मम्मी एकदम से मना कर देंगी।”

“ठीक है फिर इसे मैं अपने लिए ले लेती हूं ,सगाई पर पहन लूंगी”।

“तू ये वाला लहंगा देख , बहुत सुंदर लग रहा हैऔर इसकी स्लीव्स भी बहुत खूबसूरत हैं “।

“हां यही मुझे भी अच्छा लग रहा है” ।

और इस तरह सगाई की ड्रेस फाइनल हो गई।

सगाई और शादी के बीच पन्द्रह दिन का अंतराल था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पापा की नफ़रत- सुषमा यादव

सगाई वाले दिन मीनू को जो देखता बस देखता ही रह जाता , यूं दीपा भी बहुत सुंदर लग रही थी।

सगाई के दो दिन बाद

“मीनू मुझे शादी के लिए एक ड्रेस और लेनी है,चलेगी मेरे साथ??”

“एक और ड्रेस? पर तूने तो दो साड़ियां तैयार कराई हैं न??”

” हां पर मुझे एक गाउन और  लेना है।”

“ले न बाबा जो लेना है, मैं तो चलूंगी ही साथ, दीदी की शादी तक मुझे मम्मी ने पूरी आजादी दे दी है तेरे साथ के लिए ,कह रही थीं कि शादी कोई रोज रोज नहीं होती है इसलिए खूब एंजॉय करो और दीपा की और उसकी मम्मी की हर संभव मदद भी करो” ।

“तो मेरा तो ये कर्तव्य है देवी जी कि हर कदम पर आपके साथ चलूं”, हाहाहाहाहा,और मीनू हंसने लगी।

दोनों सखी जब बाजार पहुंची तो दीपा ने स्लीवलैस गाउन की डिमांड की ।यह देखकर मीनू की भवें तन गईं कि यह क्या मजाक है?

तभी दीपा धीरे से बोली मम्मी को तेरी ड्रेस बहुत पसंद आई है और मैंने जब स्लीवलैस पहनने के लिए डरते डरते पूछा तो कहने लगीं , इसमें क्या समस्या है? अगर मुझे पसंद नहीं होता तो मैं मीनू को क्यों पहनने देती वह भी तो मेरी बेटी जैसी है।

और मुझे तब अपनी बेवकूफी पर हंसी आई कि मैं अपनी ही मम्मी के विचारों को नहीं समझती।

“चल अच्छा है देर आयद दुरुस्त आयद”।

“ये तो तुझे भी पता होना चाहिए था कि स्लीवलैस और डीप नेक पार्टी वगैरह में पहनना तो आम है” ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बांहों में – कंचन श्रीवास्तव

“अरे मुझे लगता था कि लोग क्या कहेंगे?”

“वाह बहिन जी वाह, मीनू जोर से हंसी, तो लोगों की परवाह करती हैं आप??” अपने संस्कार लोगों के अनुसार तय करोगी?”वैसे ये समझ ले, कुछ तो लोग कहेंगे, क्योंकि लोगों का काम है कहना”।

“जब तुम फुल स्लीव्स पहनकर निकलोगी तो यही लोग तुम्हें बहिन जी कहकर भी संबोधित कर सकते हैं तब क्या करोगी??”

दीपा झूठी नाराजगी दिखाते हुए चुप हो गई।

“अरे ओ मेरी फुल्लो मैं सच कह रही हूं , लोगों के लिए नहीं अपने लिए जीना सीख।

लोग स्वयं चाहे जितना संस्कारहीन हों पर सामने वाले को पाठ पढ़ाने से बाज नहीं आते।”

“और हां आगे से ध्यान रखना मेरी आंटी जी बहुत खुले विचारों वालीं हैं और जमाने के हिसाब से चलती हैं वो तो तू ही है जो दादी मां बनने का शौक पाल रखा है।”

अब की बार दोनों के ही ठहाके गूंज रहे थे।

रचना:- पूनम सारस्वत, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश।

रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित है।

©®

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!