Moral stories in hindi : आज शीना अपने पति के साथ अचानक मॉल में मिल गई मुझे देखते ही अपने पति से बोली
जतिन ये है हमारे नीरज भाई
जतिन ने बड़े गर्मजोशी से हांथ मिलाया बेटे से कहा मामा को नमस्ते करो
नमस्ते का जबाव देकर उसे मैने गोद में उठा लिया अपनी पुरानी गलती को याद कर मैं आज भी शर्मिंदगी महसूस कर रहा था ।
तुम यहां केसे आए हो ?
मेरी एक मीटिंग थी यहां कल आया था आज मीटिंग जल्दी हो गई ट्रेन रात की है ,समय काटने के लिए इधर आ गया ।
तुम हमारे घर चलो वही खाना खाकर निकल जाना बहुत बातें करनी हैं तुमने तो पांच साल से कोई अपनी खबर ही नहीं दी।
नही शीना हमारे साथ दो कलीग और हैं रात का खाना होटल में ही साथ खायेंगे ट्रेन तो ग्यारह पचास पर है ।
अगली बार कभी आया तो तुम से मिलने जरूर आऊंगा ।
लेकिन अभी क्या दिक्कत चलो घर चलो शीना बोली ।
हा भाई हमारे गरीब खाने का पता तो ले लो नीरज भाई कहते हुए जतिन ने एक कार्ड पकड़ा दिया ।
जरूर भाई मैं अगली दफा जरूर आऊंगा कह कर मैं उनसे विदा लेकर मॉल के बाहर आ गया ।
रास्ते भर सोचता रहा वह पुराने दिन शीना और मेरा घर
पास पास था उसके पापा बहुत सज्जन एक राजकीय अधिकारी थे ।शीना और रीना उनकी दो बेटियां ही थी जिनके लिए वह बहुत फिक्रमंद रहते थे ।
कैसे शीना का मैं केयर टेकर बन गया था दोस्त चिढ़ाते थे यार लगे रहो वर्मा जी की आधी संपत्ति पर ।
चुप करो मेरे पड़ोस में रहती है उसकी सुरक्षा हमारा फर्ज है ।
एम कॉम फाइनल में स्टूडेंट यूनियन का चुनाव था मैं दोस्तों के साथ उसके घर वोट मांगने के लिए गया था उसके पापा बंगले के गेट पर मिल गए मुझे पता नहीं क्या हुआ मैने अपना परिचय देकर अभिवादन में उनके पैर छू लिए अंकल आपका आशीर्वाद चाहिए ।
मुझे वह बहुत संस्कारी समझ रहे थे शीना भी इस बात से बहुत प्रभावित हो गई और वह मुझ से कॉलेज में अपनी प्रॉब्लम्स को बताने लगी ।एक दो बार वर्मा जी से मुलाकात हुई तो वह भी बड़ी आत्मीयता से मुझे बोलते नीरज बेटे कैसे हो ?
अंकल आपका आशीर्वाद है मैं ठीक हूं
मेरे लायक कोई सेवा हो बताइए मैं यहां पास में रहता हूं
मेरे पापा का गारमेंट का विजनेस है ।
जरूर बेटे बताऊंगा ,
मैं शीना की बहुत फिकर करने लगा था दिल के एक कोने में उसके लिए प्यार के अंकुर फूटने लगे थे ।
हम दोनों एम कॉम फाइनल ईयर में थे वह एम बी ए करना चाहती थी मैं बैंकिंग में जाना चाहता था ।
उस दिन रक्षा बन्धन का त्योहार था मैने बैंक में पी ओ के लिए क्वालीफाई किया था मैं बहुत खुश था शीना को ये खबर देना चाहता था उसे दिल के जज्बात भी बताना चाहता था । वह कभी मेरे घर नही आई थी मेरे पापा मम्मी को आते जाते मिल चुकी थी ,नमस्ते अंकल जी आंटी जी बोलती तो मम्मी बड़ी खुश हो जाती ।
देखो अफसर की बेटी है पर जरा भी घमंड नहीं उसकी तारीफ करनी शुरू हो जाती ।
अपनी सफलता की खबर के साथ मैं शीना को प्रपोज भी करना चाहता था मेने फोन किया _ शीना मेरा सपना पूरा हो गया “आई लव यू “तुम मेरी जिंदगी हो आज मैं तुमसे कुछ मांगने आ रहा हूं ।
शीना का कोई भाई नहीं था वह मुझ में अपना भाई देख रही थी कॉलेज के आखिरी साल में मुझे राखी बांध कर जीवन भर एक पवित्र बन्धन भाई बहिन का प्रेम बनाए रखना चाहती थी ।आज वह मुझे बधाई देने और राखी बांधने अचानक मेरे घर आई थी अपने फोन पर मेरी बात सुनकर वह पवित्र रिश्ते के टुकड़े बिखेर गई ।
मेरे कमरे के दरवाजे पर कुछ गिरने की आवाज सुन मैने पलट कर देखा तो शीना के हांथ से मिठाई का डिब्बा वा राखी जमीन पर गिर पड़े थे ।
उसने क्रोध और आंसू भरी आंखों से मुझे देखा और बिना कुछ कहे वापस चली गई ।
मम्मी ने आवाज दी अरे बेटा क्या हुआ शीना बिना राखी बांधे क्यो चली गई
पता नही मम्मी क्यों चली गई ?
मैं बहुत शर्मिंदा था अपनी सोच पर मेरे पैर जम गए मैं अपने को बहुत लज्जित महसूस कर रहा था वर्मा अंकल को मेरे प्रति बेटे जैसे भाव को शीना के अंदर के भ्रातत्व प्रेम को मैने एक गाली दी थी ,मैं बहुत गुनहगार था ।
मेरी हिम्मत नही हो रही थी की मैं उसके पास जाकर
उससे माफी भी किन शब्दों में मांगू ।
मेरे अंदर उसके लिए बहुत प्यार और सम्मान था परंतु उसका रूप अलग हो गया क्यों उसे मैं अपनी बहिन नही समझ पाया ?
उसके पास भाई नही था मैं उसे बहिन नीती की तरह क्यों नही मान सका मैं उसका भाई क्यों नही बन सका था?
मेरे बैंक अफसर बनने की खुशी अब ठंडी हो गई थी हर समय एक अपराध बोध रह गया मन में पता नही क्यों शीना के घर जाकर उससे माफी मांगने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया था ।
क्या वह मुझे राखी बांधने के लिए मुझे भाई का हक देगी ,इन्ही सब उलझनों के बीच मैं अपनी नौकरी पर चला गया और दोनो के अंदर भावनात्मक रिश्तो का जख्म भी भरने लगा था ।
उधर उसकी शादी हो गई इधर मैं भी अपनी जिंदगी में उलझ गया जब भी अपने शहर जाता शीना जरूर याद आती परंतु याद आते ही मैं खुद पर शर्मिंदा हो जाता हूं।
आज शीना को खुश देखकर अच्छा लगा उसने मुझ से बात की आज भी मैं उसका नीरज भाई हूं वह भाई जो अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदा है ।
स्वरचित
पूजा मिश्रा
कानपुर।
#शर्मिंदा