आपसी तालमेल और सामंजस्य : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ‘राज क्या बात है? मैं दो दिन से देख रही हूँ आप बहुत परेशान दिख रहे हो। न ठीक से सो पा रहे हो, न खा पा रहै हो। बताओ ना क्या बात है?’ तुम तो जानती हो सुमी सौलह दिन बाद रज्जो की सगाई है। आफिस में काम का दबाव इतना है कि मुझे छुट्टी मिल नहीं पा रही है। तुम्हारी भी नौकरी है, घर में माँ की तबियत ठीक नहीं है।

ऐसे में यह काम कैसे निपटेगा। बस यही चिन्ता सता रही है।’ ‘अच्छा  बताओ चिन्ता करने से क्या समस्या का हल मिल जाएगा। तुम नौकरी छोड़ सकते हो…… नहीं ना। मेरी भी नई नौकरी है, ज्यादा छुट्टी मिलने से रही। रज्जो दीदी की सगाई की रस्म भी आगे नहीं बढ़ा सकते, वरना छ: महिने तक दूसरा कोई मुहुर्त नहीं है। इतना अच्छा रिश्ता हम छोड़ नहीं सकते।

दो दिन से देख रही हूँ। बाबूजी भी गुमसुम है, माँ के मन में पता नहीं क्या-क्या विचार आ रहै होंगे। इस समय हमें एक साथ मिलकर आने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा बनानी होगी। आज आप ऑफिस से आ जाओ । मैं भी पॉंच बजे तक घर आ जाऊँगी, फिर सब मिलकर बात करते हैं।’  राजेश ऑफिस चला गया। सुमी पढ़ी लिखी समझदार, सुलझे हुए विचारों वाली महिला थी, और बैंक में नौकरी करती थी। उसने घर आने के बाद फुर्ती से रसोई का काम निपटाया।

राज के घर आने के बाद सबने भोजन किया और फिर उसके बाद सुमी और राज उनके पापा के पास गए और उनसे कहा पापा हम मिलकर कार्यक्रम की रूपरेखा बना लेते हैं।सुमी बोली हम माँ के पास चलकर बैठते हैं, उन्हें भी अच्छा लगेगा। सबसे पहले रिश्तेदारों की सूचि बनाई। बिल्कुल निकट के रिश्तेदारों को शामिल किया तब भी लगभग सौ व्यक्ति हो रहै थे।

सुमी ने मॉं को सारे नाम पढ़कर सुनाए और कहा ‘माँ‌ किसी का नाम छूटा तो नहीं है ना।’ माँ ने कुछ नाम और बताए जिनका नाम सूचि में जोड़ा गया। अब इतने व्यक्तियों के लिए कौनसा स्थान उपयुक्त रहै,और जो घर से भी निकट हो। राज ने कुछ लोगों से सम्पर्क किया, और स्थान भी निश्चित हो गया। पेमेंट आन लाइन हो गया। सुमी ने कहा ‘माँ कल शनिवार है, मैं जल्दी आ जाऊँगी तो दीदी के साथ जाकर उनकी पसंद के कपड़े लेकर सिलने डाल देंगे ताकि समय पर आ जाए।’

राज ने कहा – ‘सुमी तुम चाय बनाकर लाओ तब तक हम रसोई का मीनू सोचते हैं, तुम भी देखलेना, सबको पसंद आ जाएगा, तो फिर फाइनल कर देंगे।’ सुमी चाय बनाकर लाई चाय पीकर सुमी ने रसोई का मीनू देखा और माँ से पूछा- ‘माँ आपको पसंद आया।’ ‘हॉं बेटा?’  ‘माँ मैं ये मीनू रज्जो दीदी को भी बताकर आती हूँ, उनकी पसंद भी जरूरी है।’

रजनीश जी की ऑंखों में चमक आ गई थी। वे मन ही मन बहू के व्यवहार से खुश हो रहै थे। रज्जो ने कहा- ‘भाभी आप सब मिलकर तय कर लीजिए।’सुमी ने आकर कहा  ‘रज्जो दीदी हमारी पसंद का ही भोजन बनवाना चाहती है।’ इतना प्रोग्राम निश्चित होने पर राज को कुछ शांति मिली। माँ पापा के चेहरे पर भी प्रसन्नता थी। रात की ग्यारह बज गई थी। रजनीश जी ने कहा ‘अब बाकी की योजना कल बनाएंगे। कल तुम दोनों को काम पर भी जाना है, सुबह जल्दी उठना पड़ेगा।

और देखो बेटा राज मुझे वह डायरी देना जिसमें सबके फोन नंबर लिखे है, और निमंत्रण पत्र का प्रारूप…..? पापा वो मैं बनाकर आपको बताती हूँ, अगर आपको पसंद आ जाए तो फिर उसका प्रिंट आउट निकाल लेंगे। पत्रिका वाट्सएप पर भेजकर सबको फोन लगा देंगे। सुमी ने निमंत्रण पत्र का प्रारूप बनाया,उस पर सबकी स्वीकृति की मोहर लग गई। दूसरे दिन रज्जो के कपड़े और गहनो की व्यवस्था गई। रजनीश बाबू ने पत्रिकाएं वाट्सएप पर भेजकर सबको फोन लगा दिया।

और पंडित जी को बुलाकर पूजा के सामान की लिस्ट मंगवा ली। राज ने केटरिंग वाले से बात कर ली, और सब तय हो गया। पूजा का सारा सामान सुमी लेकर आ गई। माँ  से उसने सारे रीति रिवाज को पूछ लिया और उसके हिसाब से सारा सामान व्यवस्थित जमा लिया। मेहमानों को देने वाले गिफ्ट और रज्जो दीदी के ससुराल वालों को दिये जाने वाले कपड़ो को भी सुमी ने रज्जो दीदी के साथ मिलकर पेक कर दिया। हर काम को करने से पूर्व वह माँ की सलाह लेती थी।

सुमी ने कभी जल्दी उठकर तो कभी देर रात तक जगकर सगाई की सारी तैयारी पूरी कर ली। सगाई के लिए सिर्फ चार दिन बाकी थे। सुमी ने पूछा-‘राज अब तो तुम खुश हो ना?’ हॉं सुमी मैं बहुत खुश हूँ, तुमने सारा काम बहुत जिम्मेदारी से किया है। मगर बस एक बात की चिंता है, कल बुआजी का फोन आया था, दोनों भुआजी दो दिन पहले आ जाऐंगी।

तुम उनके स्वभाव से परिचित नहीं हो,कितनी भी अच्छी व्यवस्था हो वे उसमें कमी निकालने में नहीं चूकती। हमारी शादी में माँ ने भी  बहुत व्यवस्थित तरीके से सब काम किया था, मगर उन्होंने माँ को सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें बोलने का ध्यान बिल्कुल नहीं रहता है, मुझे डर है कि वे तुम्हें कुछ कह न दे, सुमी उनकी बात का बुरा मत मानना।’

सुमी ने कहा आप टेंशन न ले वैसे भी मुझे आदत हो गई है इस सबकी।’ मायके में भी बड़ा परिवार था और वहाँ भी काम में नुक्ता चीनी निकालने वालो की कमी नहीं थी। सुमी की बात से राज निश्चिन्त हो गया। सुमी ने तीन दिन की छुट्टी ले ली थी। उसने दोनों भुआजी को भी सारी तैयारी बताई और कहा भुआजी अगर कुछ कमी हो तो आप बता दे, आप घर की बड़ी हैं।’ सारी तैयारी माँ से पूछकर की है,

मगर उनका स्वास्थ ठीक नहीं है, यह आपका ही घर है आप जैसा कहेंगी, मैं वैसा ही कार्य करूँगी। सुमी के इतना मान देने पर वे दोनों बहुत खुश हुई और सारा काम निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। आपसी तालमेल और सामंजस्य तथा बड़ो के सम्मान और उनके आशीष से कार्य आसानी से सम्पन्न हो जाते हैं।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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