Moral Stories in Hindi : रमा संयुक्त परिवार में रहती है जहांँ एक को चोट लगे तो दर्द दूसरे को होता है या यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि एक के हिस्से का काम दूसरे के हिस्से में आ जाता है।
उसके घर में बहुत सारे खरगोश और गिनी पिग हैं। जिनकी देखरेख उसकी जेठानी जी और उनकी बेटियां ही करती थी। रमा को इनसे इतना लगाव नहीं था पर घर में है तो घर के सदस्य की तरह ही हैं। उन्हें समय पर भोजन पानी और उनके साफ सफाई का ध्यान रखना हमारा कर्तव्य है रमा यही सोचती थी। पर उसे एलर्जी थी उनकी स्मेल से और ज्यादा देर खरगोश और गिनी पिग के साथ रहने से उसकी तबियत खराब हो जाती थी।
पर उसे कई बार लगता कि जिस तरह वो किसी को भूखा नहीं देख सकती क्या उसी तरह यह पशु पक्षी भी अपने साथियों के लिए सोचते होंगे।
रमा के बेटे ने अपने जन्मदिन पर एक खरगोश बर्थडे गिफ्ट में मांगा तो सब खुश थे कि चलो बचवा इतनी देर खरगोश के साथ खेलेगा तो मोबाइल से दूर रहेगा।
बच्चे के लिए तो बस कुछ दिन का खेल था और खरगोश पालने का शौक। किसी ने उसे गिनी पिग भी दे दिया और फिर दूसरा। इस तरह ढेर सारे खरगोश और गिनी पिग रमा के घर में परिवार के सदस्यों की तरह ही रहने लगे।
ये कहानी भी पढ़ें :
यह बंधन है प्यार का – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
जब उसकी बड़ी जेठानी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई, एक सड़क दुघर्टना में उनके बाएं पैर में चोट आई ,हाथ और माथे पर भी चोट लगी जिस कारण अब रमा पर ही घर के पूरे काम की जिम्मेदारी आन पड़ी। घर के बच्चे और बच्चियां अपने कामों में व्यस्त रहते हैं तो उन खरगोशों और गिनी पिग को खाना खिलाने की जिम्मेदारी उस पर ही आ गई ।
वैसे रमा को किसी भी जानवर को पालना पसंद नहीं था । वो जिस परिवेश में रहते हैं उन्हें वहीं छोड़ देना चाहिए। उनसे उनकी आजादी नहीं छीननी चाहिए। हम उन्हें घर में कैद कर लेते हैं जो उसे सही नहीं लगता पर बच्चों की जिद्द के आगे हर मां हार मान जाती है।
घर के सभी काम करने में उसे इतनी परेशानी नहीं होती थी जितनी सभी खरगोश और गिनी पिग को खाना देने और उनकी साफ सफाई में होती। वो किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी और उन छोटे छोटे जीव को भूखे और गंदगी में भी तो नहीं छोड़ सकती थी।
शुरुआत में रमा को उनके पास जाते हुए डर लगता था पर धीरे धीरे वो भी उसके दोस्त बन गए । उसे अच्छा लगने लगा था उनको देखना।
एक दिन जब वो उन्हें खाना देने गई तो देखा खरगोश के पिंजरे में गिनी पिग बैठा हुआ था और खरगोश पिंजरे से बाहर।
रमा उस खरगोश को रोज देखती थी कि वो पिंजरे से बाहर निकलने की कोशिश करता।
वो भी गिनी पिग के साथ बाहर रहना चाहता था। पिंजरे से बाहर निकलने के लिए पिंजरे में दौड़ लगाता था। उसका मन करता था उसे खोल दे और आजाद कर दे।
ये कहानी भी पढ़ें :
कई बार रमा सोचती कि सारे पिंजरे खोल दूं और यह खरगोश और गिनी पिग की मर्जी पर छोड़ दूं कि उन्हें कहां रहना है।छत पर खुले में या पिंजरे में। पर वो अपनी मर्जी से ऐसा कर भी तो नहीं सकती थी क्योंकि अगर बिल्ली आ गई या उनकों कोई हानि हुई तब इसकी जिम्मेदार भी तो वही होगी।
छोटे बच्चों की तरह उनकी देखभाल करनी पड़ती है जिसे रमा बड़े ही मन से करने लगी थी। वहां से जाने के बाद उसे एलर्जी रोकने की दवाई रोज खानी पड़ती और साफ सफाई का भी बहुत ध्यान रखना पड़ता।
रमा जब उसे खाना देती थी तो वो नहीं खाता था,पर उस दिन उसे बाहर खुले में खाते हुए देखा तो लगा जैसे गिनी पिग ने ममता में आकर उसे खोलकर बाहर कर दिया और उसकी जगह पिंजरे में खुद को कैद कर लिया। वह गिनी पिग हमेशा पिंजरे के बाहर चक्कर काटती जब देखती सब खाना खा रहे हैं पर वह खरगोश का बच्चा जिद्द पर अड़ा है कि वो सबके साथ रहेगा, अकेले नहीं।
रमा को यह दृश्य देखकर बड़ी हैरानी हुई और विश्वास करना मुश्किल हो गया था कि कैसे इतने छोटे जानवर ने दूसरे जानवर की मदद की।
जानवरों में भी दूसरे जानवरों के प्रति ममता होती है, वह दृश्य देखकर ऐसा ही लगा।
कविता झा’काव्य ‘अविका”
बेटियां मंच का बहुत बहुत आभार 🙏 मेरी कहानी इस वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए