Moral Stories in Hindi : “सुलभा..!,आज जरा ज्यादा देर तक रुक जाना।थोड़ा खाना बनाने में मदद कर देना और बरतन समेटने में भी।”सौम्या की आवाज ने सुलभा को चौंका दिया।
वह चौंक कर अपनी मालकिन सौम्या को देखने लगी।
“क्या हुआ सुलभा…?ऐसे क्यों देख रही हो?”सौम्या ने पूछा।
“मैडम जी,आज कुछ खास है क्या?” सुलभा ने प्रश्न किया
“अरे हाँ, विवेक का प्रमोशन हो गया है ना तो उसके दोस्त और ऑफिस के कलिग आज डिनर पर आने वाले हैं।
यह प्रोग्राम अचानक बन गया नहीं तो मैं तुम्हें पहले ही बता देती। तुम्हें कोई प्रॉब्लम है क्या ?”सौम्या ने सुलभा से पूछा।
” नहीं मैडम जी! प्रॉब्लम तो बस बिटिया को लेकर है। वह अकेली है ना। उसके नाना नानी भी यहां नहीं है तो अगर आप कहेंगी तो मैं उसे लेकर आ जाऊंगी।”
“हां ठीक है जाओ ले आओ पर आज रात में थोड़ी देर रुकना होगा। वह रुक जाएगी।”
” जी मैडम जी वह रुक जाएगी।”
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थोड़ा काम करने के बाद सुलभा अपनी बिटिया पूर्णिमा को लेकर वापस सौम्या के घर आ गई और उसका सारा काम संभाल लिया।
रात के डिनर बनाने में उसने सौम्या की भरपूर मदद की।
सुलभा के साथ-साथ पूर्णिमा भी सब्जी काटने, बर्तन धोने में उसकी हेल्प की।
सौम्या बहुत ही ज्यादा खुश थी। उसने सारा बचा हुआ सामान सुलभा और उसकी बेटी को दे दिया और कहा
” सुलभा, तुम्हारी बेटी बहुत ही संस्कारी है। मुझे बहुत ही अच्छा लगा मिलकर।”
“मैडम जी, वह पढ़ने में बात ही ज्यादा तेज है। मैं तो उसे खूब पढ़ाऊंगी।उसके बाबा भी यही चाहते थे कि पूर्णिमा को पढ़ाई करें।”
“अरे वाह, यह तो बड़ी अच्छी बात है। सौम्या ने कहा, हम भी मदद कर देंगे। उसे खूब पढ़ाओ।
उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।” सौम्या ने मुस्कुराते हुए कहा।
सभी की दुआएं काम कर गई। पूर्णिमा अपने स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसके प्रिंसिपल ने उसे मंच में बुलाकर सम्मानित किया और फिर उन्होंने सुलभा को बुलाकर कहा
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“आपकी बिटिया पढ़ाई में बहुत ही ज्यादा अच्छी है।हम अपनी तरफ से उसे ओलंपियाड और अन्य प्रतियोगिता राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में ले रहे हैं। अगर वह कामयाब हो जाएगी तो सरकार उसे बहुत तरह की सुविधाएं देगी जिससे आप अपनी बच्ची को आगे आराम से पढ़ा सकोगी ।”
“जी सर जी, आप जो कहेंगे मैं वह करूंगी सुलभा ने अपने हाथ जोड़ दिया।
पूर्णिमा ने ओलंपियाड और कई राज्य स्तर की परीक्षाएं निकाल लिया। उसका नाम हो गया।
वह वह नगर निगम की एक साधारण से स्कूल में पढ़ती थी।
वहां से उसे शहर के सबसे टॉप मोस्ट स्कूल ने उसे अपने स्कूल में बुलाकर एडमिशन दिया और उसके सारे ट्यूशन फीस और हर तरह की फीस माफ करने के साथ ही उससे अलग से स्कॉलरशिप भी देने लगे।
सुलभा की किस्मत बदल गई वह दुआएं देते हुए थकती नहीं थी।
पूर्णिमा अब नए स्कूल में आ गई। जैसे ही पहले दिन वह क्लास में आई, उसकी क्लास टीचर ने अन्य बच्चों से परिचय कराते हुए कहा
“बच्चों ,यह है हमारे स्कूल की नई बच्ची उसका नाम है पूर्णिमा कुमारी। इससे सीखो इसकी मां घरों में बर्तन धोती है और खाना बनाती हैं और देखो यह बच्ची ओलंपियाड और कई राज्य स्तर की परीक्षा निकाल लिया और इसी कारण इसे इस स्कूल में एडमिशन मिल गया। चलो सब लोग मिलकर तालियां बजाओ।”
टीचर के सामने तो बच्चे तालियां बजाने लगे लेकिन पीठ पीछे हर कोई उसे ताने मारा करता था।
उससे सीधे मुंह बात नहीं करता था क्योंकि वह हाई प्रोफाइल स्कूल था ।
स्कूल बहुत ही अच्छा था लेकिन उस स्कूल में बड़े बाप के बच्चे पढ़ा करते थे।
धनी पिता के बच्चे घमंडी रूड होते थे। उनके निगाहों में पूर्णिमा एक कामवाली की बेटी थी ।उसे कोई भी बात नहीं करना चाहता था।
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जब भी वह किसी पूर्णिमा किसी को हाय हेलो भी कहती सभी लोग उसे बुरी तरह से जलील करते थे।
कोई उसे अपने बेंच में बैठने नहीं देता था। कभी टीचर डांट फटकार कर देती थी तो कोई भी उसे बैठा लिया और नहीं तो उससे कोई सीधे मुंह बात भी नहीं करता था।
पूर्णिमा पढ़ने में बहुत ही ज्यादा तेज थी। यह भी उसके साथी दोस्तों को चुभती थी।
उसे हर बार कोई ना कोई प्राइज या मैडल मिल जाता था ।इससे सभी सहेलियाँ उससे जलतीं थीं।
पूर्णिमा अक्सर रो पड़ती थी लेकिन उसने अपनी मां को भी नहीं बताया कि उसे स्कूल में कितने अपमानों का सामना करना पड़ता है।
वह शांति से मुंह बंद कर पढ़ाई करती थी। उसके साथ बैठने वाली अनामिका के पिता एक बहुत बड़े बिजनेसमैन थे ।
उनका सोने चांदी का बिजनेस था।
वह पूर्णिमा से कहती
“पूर्णिमा!, तू पढ़ लिख ले अच्छी तरह से फिर मेरे यहां आ जइयो। मैं तुझे अच्छे पगार में काम में रखवा दूंगी, अपने डैड से बोलकर।”फिर ठहाके लगाती थी।
पूर्णिमा कुछ भी नहीं बोल पाती थी क्योंकि उसके पास ना तो घर था ना कोई छत ही था।
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वह अपने नाना नानी के साथ रहती थी। क्योंकि उसके पिता का साया बचपन में ही गुजर गया था ।
उसके दादा-दादी के घर में इन दोनों के लिए कोई जगह नहीं बची थी। उसकी मां कई घरों में काम करती थी। तब जाकर घर चल पाता था। यह सच्चाई थी और इससे पूर्णिमा भाग नहीं सकती थी।
समय बीता, पूर्णिमा बोर्ड की इम्तिहान में स्कूल की टॉपर थी, जिसके कारण उसे आगे की पढ़ाई में कई तरह की सुविधा मिली।
वह धीरे-धीरे पढ़ती गई और एक दिन यूपीएससी की परीक्षा निकाल ली।
कुछ दिनों के बाद वह इस शहर में डीएम बनकर वापस आई।
अभी भी वह वैसे ही विनम्र, समझदार और सौम्य थी ।
उसके अंदर किसी भी तरह का कोई घमंड नहीं था।
जब उसे विशेष सम्मान देने के लिए मंच पर बुलाया गया तब पत्रकार ने उसे दो शब्द कहने के लिए कहा तब उसने अपनी आप बीती सुनाई
“मेरी मां घरों में बर्तन धोती थी और खाना बनाती थी ,तब जाकर हमारा खर्चा चलता था।
मुझे बड़े स्कूल में एडमिशन तो मिल गया लेकिन मुझे वहां के धनिक बच्चों ने जलील और अपमान करने के सिवा और कुछ नहीं दिया।
मैं गरीब थी।मेरे कपड़े साधारण होते थे। सभी मेरा मजाक बनाया करते थे लेकिन मैं अपने कर्म पथ से नहीं डिगी और आगे बढ़ती गई।
क्योंकि मुझे हर पल अपनी मां का चेहरा दिखता था।
मेरा अतीत मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी कड़वाहट भरी है।
और सच्चाई है कि मैं एक कामवाली की बेटी हूं लेकिन हां, मैं खुद्दार हूं।
मेरी मां ने अपने बूते पर मुझे एक ऑफिसर बनाया।
अब बाकी बातें सब बीती हो गई हैं। मैं कामयाब हूं।”
पूरा हॉल तालियां से गूंज उठा।
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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#ज़लील
बहुत ही सुंदर कहानी विषय को सार्थक करती हुई और प्रेरक भी है स्तर किसी के लिए 👌