कुछ लोगों की आदत नहीं होती शिकायत करने की! – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज सुबह से ही घर में सन्नाटा पसरा हुआ है। माला की तबीयत कुछ ठीक नहीं है तो वह बिस्तर पर ही है। अरे ना! ना! अपनी मर्ज़ी से नहीं वो तो माला के पति सुबोध ने जब उसकी हालत खराब देखी तो उठने ही नहीं दिया। माला तो उठ रही थी कि काम कैसे निपटेंगे? सुबोध ने आराम करने की सख्त ताकीद कर उसको कमरे में ही रहने को बोला। मजबूरन उसे शरीर को आराम देना पड़ा वरना अपना मुंह तो कभी उसने किसी कष्ट या दुख दर्द की शिकायत करने को कभी बचपन से ही नहीं खोला तो यहां भी उसकी वही आदत बरकरार रही।

बहरहाल सुबोध, माला और माॅ॑ को चाय-नाश्ता देकर स्वयं भी चाय-नाश्ता करके ऑफिस के लिए निकल गया है। माला को शाम जल्दी आकर डॉक्टर को दिखाने के लिए कह गया है कि ऑफिस से जल्दी आकर लेकर जाएगा।

घर में माला की सासू माॅ॑ रमा देवी मुंह बनाए बैठी हैं कि जरा सी तबीयत खराब होने पर बहू काम छोड़कर बिस्तर में घुस गई जिसके चलते बेटे को काम करना पड़ा। हां! ये उनसे न हों सका कि उठकर खुद ही कुछ काम रसोई में देख लेती। बहू के आने के बाद से रमा देवी ने रसोई से ऐसा नाता जोड़ा है कि मजाल जो इन चार सालों में कभी एक समय का खाना तो छोड़ चाय-नाश्ता भी बनाया हों! अरे आप तरस न खाइए उन पर! कोई बहुत बुजुर्ग नहीं हैं वे! साठ की होंगी इस साल पर दिखावा ऐसा करती हैं मानों दो जहां के जितने दर्द हो सकते हैं वो सब उनके शरीर में समा गए हों। हर समय कभी यहां तो कभी वहां दर्द।

खैर रमा देवी की माया वो ही जाने पर बहू को आराम नहीं मिल पाता इन सब चोंचलों के चलते। दोपहर में दो घड़ी बैठने का या लेटने का सोचे भी तो जाने कैसे रमा देवी को भनक लग जाती और कुछ बीनने-छानने या सफाई का काम निकाल देती और माला लग जाती काम पर।

दरअसल माला को उसके चाचा-चाची ने पाला था, अठारह साल की होते ही चाची अपने जान-पहचान वालों से कहकर रिश्ता ढूंढने लगी। इक्कीसवें  वर्ष में सुबोध से रिश्ता तय कर दिया तब तक माला बीए पास कर चुकी थी।

सुबोध की माताजी की ख्याति एक तेज औरत के रूप में सर्वत्र फैली थी परंतु चाची को सुबोध ने जब बिना दहेज के शादी करने की बात कही तो इससे अच्छा तो रिश्ता दुनिया में माला के लिए चाची की नजरों में हो ही नहीं सकता था। चाचा ने लड़के की माॅ॑ के तेज-तर्रार स्वभाव के बारे में टिप्पणी की तो उन्हें चाची ने यह कहकर चुप करा दिया कि हर चीज परफेक्ट किसी को नहीं मिलती है, मैंने भी तुम्हारी मां को झेला है। चाचा चुप रह गए फिर सुबोध को देखकर उन्हें इतना संतोष हुआ कि लड़का अच्छा है, उसकी सोच अच्छी है।

शादी हो गई, माला वैसे भी डिमांडिंग लड़की नहीं थी। चाची के घर से बचपन से ही काम करती आई और यहां सास ने भी ग्यारहवें दिन के बाद जो घर का काम उसे सौंपा तो वो भी वह बिना उफ़ किए निभाने लगी। सुबोध से कभी उसने कहा नहीं और सुबोध को माॅ॑ और पत्नी के बीच की अंडरस्टैंडिंग अच्छी लगी, ये अलग बात है यहां अंडरस्टेंड सिर्फ माला को ही करना पड़ता। चाची ने तो पगफेरों के बाद से पल्ला झाड़ लिया तो रहना तो माला को पति और सास के साथ ही था और‌ वह बेटे को माॅ॑ से अलग करने के बारे में सोच भी नहीं सकती है।

वैसे ऊपर से देखने पर ऐसा कुछ खराब भी नहीं लगता था पर वो बात तो‌ नहीं थी कि मन की चलाई जाए हालांकि सुबोध ने शुरू में पूछा पर माला का यही रहता कि जैसा आपको‌ और मांजी को ठीक लगे तो वह भी माला को सीधी-सादी समझकर अपने हिसाब से खुश रखने की कोशिश करता था परंतु कभी-कभी इन बातों पर भी रमा देवी के कोप का भाजन माला ही बना करती थी, सुबोध के ऑफिस जाने के बाद और सुबोध को इन सब की भनक भी नहीं लगती क्योंकि माला को तो आदत नहीं है शिकायत करने की…

दो साल पहले माला गर्भवती हुई पर काम की अधिकता की वजह से तीसरे माह में ही गर्भपात हो गया। डॉक्टर ने खून की कमी और‌ आराम करने की सलाह ‌दी थी, फल-फूल भी सब सुबोध लाता था जो माला कह देती थी कि उसने खा लिए, अब किसने‌ खाए और किसको लगे ये तो विचारणीय प्रश्न है क्योंकि कुपोषण, खून की कमी और  आ‌राम न करने से तीसरे महीने में गर्भपात हो गया।

तब सुबोध थोड़ा चौंका था, उसने  घर पर ध्यान देना शुरू किया तो पाया कि माला तो सुबह से रात तक काम ही करती रहती है। रमा देवी का समय सहेलियों के साथ गप्पों में और माला को रसोई में लगाने में ही जाता है।

कभी-कभी ऑफिस ‌से जल्दी आकर देखा तो पाया कि माला रसोई में कुछ बीनने- चुनने में लगी है या कुछ ‌नहीं तो पीतल के पुराने बर्तनों को चमकाने में लगी है। 

हालांकि यह और बात है कि माला ने कभी किसी बात की  शिकायत सुबोध से नहीं की शायद कुछ लोग ऐसे ही होते हैं जो हर हाल में ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करते हैं अपनी माला भी कुछ ऐसी ही है। बचपन के कटु अनुभवों ने छोटी-सी उम्र में ही उसे परिपक्व बना दिया कि सासु माॅ॑ के बताए काम हमेशा खुशी खुशी करती है। उसकी अच्छाई रमा देवी को समझ में आती है पर जब मुंह से कोई उफ़ ना करे,  कभी कोई शिकवा ना करें , कोई शिकायत ना करें तो ज्यादा क्या सोचना? रमा देवी सास तो बनी पर बिन माॅ॑ की माला की तकलीफ़ कभी नहीं समझी और ना ही समझने की चेष्टा या परवाह की उन्होंने…

बहरहाल आज पर आते हैं, सुबह चार बजे माला को भारी उल्टी हुई तो सुबोध ने उसे टेबलेट देकर सुला दिया। नौ बजे चाय-नाश्ता कराकर और माॅ॑ को दोपहर में पतली मूंगदाल की खिचड़ी बनाने को कहकर चला गया, खुद वो ऑफिस कैंटीन में खा लेगा।

कैसे न कैसे करके भुनभुनाती हुईं रमा देवी ने खिचड़ी बनाई, चार साल से कुछ काम नहीं किया था तो बुरा बहुत लगा।

शाम को सुबोध माला को डॉक्टर को दिखाने ले गया, उन्होंने प्रेग्नेंसी टेस्ट किया, लौटते वक्त माला ने सुबोध के हाथ कसकर पकड़ लिए, सुबोध ने थपथपाते हुए माला को बिना कुछ बोले ही विश्वास दिलाया।

सुबोध ने अगले दिन रिपोर्ट कलेक्ट की, माला की रिपोर्ट पाज़िटिव आई थी। सुबोध ने ऑफिस से ही घर‌ के लिए कुछ जरूरी काम फोन पर निपटाए।

ऑफिस से लौट कर सुबोध ने दोनों को खुशखबरी सुनाई, रमा देवी और माला सुनकर खुश हो गए।

रमा देवी ने कहा,” बहू, अब आखिरी महीने तक हाथ चलाती रहना। यूं पड़ी रही तो ऑपरेशन करना पड़ जाता है। अब उठकर काम पर लग जाओ।”

बीच में ही सुबोध बोल उठा,” माॅ॑, डॉक्टर ने माला को अभी आराम करने को कहा है, उसकी खून में आयरन की कमी है तो हमें पौष्टिक खाने पर भी ध्यान देना होगा।”

“बेटा, भली चलाई डॉक्टर की तुमने। पहले आराम करवाएंगी फिर पेट काट देंगी कि नार्मल डिलीवरी नहीं हो पाएगी। ये औरतों की बातें हैं तुम बीच में न पड़ो। मैं सब कुछ देख लूंगी।”

“जैसा पिछली बार देखा था, माॅ॑?”सुबोध ने प्रश्न उछाला

“बेटा, ये तो‌ अपने घर से ही सूखी-कमजोर आई थी, इसमें मेरा क्या हाथ?” माॅ॑ का जबाव तैयार था

“अब तो चार साल से यहीं है ना माॅ॑।” सुबोध ने कहा

“तुम चिंता न करो यूं ही हंसते खेलते बच्चे हो जाते हैं।” माॅ॑ ने बहस को विराम दिया

तभी डोरबेल बजी, लपककर सुबोध ने दरवाजा खोला।

“शीला?”

“जी साहब”

“आ जाओ।”

माॅ॑ से मुड़कर सुबोध बोला,” माॅ॑ ये शीला है, आज से घर का सारा काम बर्तन, झाड़ू-पोछा किया करेगी।”

इतने में डोरबेल फिर टनटनाई।

“आशा?”

“जी साहब”

“आ जाओ, माॅ॑ ये आशा है, दोनों वक्त का खाना बना जाया करेंगी, मेरे ऑफिस जाने से पहले आकर नाश्ता व दोपहर का खाना और शाम को रात का खाना बना जाया करेंगी।”

“पर बेटा इतना खर्च क्यों करना? माला और मैं मिलकर कर लेंगे।” रमा देवी हतप्रभ रह गई थीं दो-दो कामवालियों को देखकर, हालांकि  मना कर‌ तो वो अब भी रही थीं पर अब उनकी आवाज़ में दम-खम नहीं रह गया। शायद समझ गई कि गलती जो पिछली बार हो चुकी उसे दोहराने के मूड में सुबोध बिल्कुल  नहीं है और माला के स्वास्थ्य के लिए चिंतित भी है।

“वो इसलिए माॅ॑ कि मेरी प्यारी माॅ॑ को आराम रहे और माला की भी तबीयत ठीक रहें। आप बस माला का ऊपरी ख्याल रख लेना। ऐसे में बड़ों का अनुभव काम आता है पर साथ में डाॅक्टर की अनदेखी नहीं कर सकते, हैं ना माॅ॑?

माला को आराम की, पौष्टिक खाने की जरूरत है वो जिम्मेदारी आप पर है माॅ॑। शीला और आशा एजेंसी से कांट्रेक्ट पर हायर‌ की हैं दोनों अपने-अपने कामों में ट्रेंड हैं। आप बस सुपरवाइज़ करना और आशा से पोषक आहार बनवाना।”

“ठीक कहा तुमने, आज और अभी से माला की तबीयत और खान-पान की जिम्मेदारी मेरी रही।” रमा देवी बोली

लगता है रमा देवी की समझ में भी आ गया है कि सुबोध के साथ उन्हें माला को भी खुले दिल से अपनाने की जरूरत है। वैसे भी ब्याज तो मूल से अधिक प्यारा होता है, है ना? अरे भई माला गर्भवती हैं ना! 

बहू शिकायती ना सही पर उन्हें अपने बेटे की वाज़िब शिकायत और बेटे की बहू के प्रति चिंता साफ दिखाई दे गई और यदि अब भी रमा देवी नहीं सम्हली तो चिंता का शिकार वह स्वयं हों जाएंगी… लगता है रमा देवी ने सभी गुणा भाग कर लिया है अब…

दोस्तों, कैसी ‌लगी पारिवारिक तानों बानो में उलझी मेरी यह कहानी? आपके हिसाब से सुबोध ने सही किया या उसे इस बार भी अपनी माॅ॑ पर भरोसा करना चाहिए था। सुबोध ने माॅ॑ से  शिकायत दर्ज भी कराई और माहौल को बिगड़ने भी नहीं दिया। माला का कुछ नहीं बोलना-कहना भी बहुतों को खराब लग सकता है पर कुछ लोगों की आदत में ही नहीं होता कि वो शिकायत करें। आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। कहानी पसंद आने पर कृपया लाइक और शेयर कीजिएगा।

धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व स्वरचित)

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