घर आंगन तो सब का छुटता है.. – रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : राहुल..! तुमने मुझे धोखा दिया है…. प्रिया ने यह चीखते हुए कहा…

राहुल:   धोखा..? पर वह कैसे..?

प्रिया:   शादी के पहले तो बड़ा कहते थे कि मैं तुम्हें बहुत खुश रखूंगा… पर यहां आकर अपनी मम्मी-पापा के बीच में मुझे फंसा दिया… मेरी पूरी आजादी ही छीन गई है… कहां जा रही हो..? कब लौटोगी..? हर वक्त सवाल ही सवाल… तंग आ गई हूं मैं इन सब से…

राहुल:  प्रिया..! यह कैसी बातें कर रही हो..? माता पिता अगर हमें कुछ कहते हैं, वह इसलिए क्योंकि उन्हें हमारी फिक्र होती है… और वह हमारी भलाई के लिए ही होती हैं…

प्रिया:   मुझे नहीं चाहिए किसी की फिक्र…. बच्ची नहीं हूं मैं.. मैं अपना ध्यान खुद रख सकती हूं… देखो राहुल..! मुझे तुम्हारा भाषण नहीं सुनना… तुम बस मुझे एक बात बताओ… हम यहां से अलग रहने चल रहे हैं या नहीं..?

राहुल:   ठीक है.. चले जाएंगे… मुझे कुछ दिन की मोहलत दे दो…

फिर अगले दिन प्रिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी.. उसे अपनी पक्की सहेली रानू के जन्मदिन की पार्टी में जाना था… तभी अचानक उसकी उसी सहेली का मैसेज आता है… जिसमें लिखा होता है आज की पार्टी नहीं होगी… मेरे पति अचानक बीमार पड़ गए हैं… हम अस्पताल जा रहे हैं…. प्रिया ने रानू को तुरंत फोन किया और किस अस्पताल में दाखिल कराया है उसने अपने पति को, यह पूछ कर वह भी अस्पताल पहुंच जाती है…

प्रिया:   अरे रानू… कैसे हैं अब तुम्हारे पति..? क्या हुआ है उन्हें..?

रानू:   पता नहीं प्रिया… मेरे साथ मिलकर पार्टी की तैयारियां कर रहे थे, कि अचानक ही बेहोश होकर गिर पड़े… डॉक्टर ने कहा इनका शुगर लेवल काफी लो हो गया है… यह सब मेरी वजह से ही हुआ…

प्रिया:   अब इसमें तेरी क्या गलती..? भैया को डायबिटीज है तो ऐसे में हो गई होगी कोई लापरवाही… तू अपने आप को कोसने की जगह भैया पर सख्ती से ध्यान दें…  

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रानू:   नहीं प्रिया… यह सब मेरी ही गलती है… इनकी तबीयत इनकी लापरवाही की वजह से नहीं, बल्कि मेरी नासमझी की वजह से बिगड़ी है… पहले मैं अपने सास-ससुर के साथ ही रहती थी और तब इनका ध्यान मम्मी जी रखती थी… तू तो जानती ही है मुझे ऑफिस से लौटते देर हो जाती है, फिर रसोई में जाकर काम करने का बिल्कुल भी मन नहीं करता… जो तुरंत पक जाए जैसे मैंगी या फिर बाहर से पिज़्ज़ा बर्गर मंगवा कर खा लिया करते थे… जबकि इन्हें यह खाना बिल्कुल पसंद नहीं और ना ही इनकी सेहत के लिए अच्छा हैं… फिर भी मेरी हालत देख थोड़ा सा खा लेते थे… यह मेरा मन रखने के लिए खा तो लेते थे, पर ना तो उनका मन भरता था और ना ही पेट… और पता है अपने सास-ससुर से अलग रहने की जिद्द मैंने ही की थी इनसे…

प्रिया:   हां यह तो हर औरत चाहती है कि उसे भी थोड़ी आजादी मिले, जो सास-ससुर के रहते कभी नहीं मिल सकती… तूने बिल्कुल भी सही किया… मैंने भी राहुल से कहा है अलग रहने की बात… तो इसमें क्या गलत है..?

रानू:   देखो प्रिया..! मेरी गलती तुम भी मत दोहराओ…. हम लड़कियां अपना घर आंगन छोड़ कर पति के घर चली आती है… पर फिर भी अपने घर का मोह नहीं छोड़ पाती… पर भगवान ने हमें ऐसा ही बनाया है कि जिस रंग में ढालो, ढल जाती है… पर सिर्फ लड़कियां ही अपना घर आंगन नहीं छोड़ती, लड़के भी छोड़ते हैं… पहले अपनी पढ़ाई के लिए, फिर अपनी नौकरी के लिए और फिर अपनी जिम्मेदारियों के लिए, पर शाखा से टूटकर कोई कच्ची डाली कहां पनप पाती है.? मैं यह नहीं कहती कि हम लड़कियों को अपना घर आंगन छोड़ते हुए दुख नहीं होता… पर यह तो बहुत पुरानी रीत चली आ रही है कि, लड़कियों को दो घर बसाना होता है… पर लड़के वह तो बस अपना घर आंगन, अपना भविष्य सुधारने के लिए छोड़ते हैं… क्योंकि उसे पता है उसके साथ और कईयो का भविष्य जुड़ने वाला है… जबकि लड़कियां तो उन पर ही विश्वास कर अपना घर आंगन छोड़ पाती है… तो फिर सिर्फ हम लड़कियों का ही इतना नाम क्यों होता है..? जबकि इन लड़कों का समर्पन पर्दे के पीछे ही रह जाता है..? आज अगर मम्मी जी होती तो शायद यह यहां नहीं होते… क्योंकि पत्नी कितना भी कर ले मां की जगह नहीं ले सकती और मेरा कोई हक नहीं बनता, एक बेटे को उसकी मां से अलग करने का… 

रानू की बातें सुनकर प्रिया को बड़ी ग्लानि महसूस हुई अपनी सोच पर… और इसी सोच के साथ जब वह घर जाती है, तो राहुल उससे कहता है… प्रिया..! मैंने हमारे लिए नया घर देख लिया है.. एक बार तुम भी चल कर देख लो, तो फिर उसे ही फाइनल कर दूं…

प्रिया:   नहीं राहुल… अब मुझे कहीं नहीं जाना… मुझे यही रहना है अपने परिवार के साथ और अपने घर आंगन में… 

राहुल:   पर तुम्ही ने तो कहा था.. अब यह तुम्हें अचानक क्या हो गया..?

प्रिया:   हां… आज किसी ने मुझे जीवन की एक बड़ी सच्चाई दिखाई है, कि घर आंगन हम लड़कियां एक विश्वास के साथ छोड़ पाती है,  क्योंकि कहीं किसी मां ने हमारे लिए अपने लाडले को खुद से और उसके घर आंगन से दूर भेज एक अच्छे भविष्य के लिए तैयार किया है…. तभी तो हम भी खुशी-खुशी अपने घर आंगन को पीछे छोड़, एक नए घर आंगन को अपना बना पाती है…

 

दोस्तों., घर आंगन तो सबको अपना प्रिय होता है… फिर वह इंसान हो या कोई भी जीव… और हर किसी को उसे छोड़कर कभी ना कभी तो जाना ही पड़ता है… चाहे वजह खाने की तलाश करना हो या हो अपने भविष्य को उज्जवल बनाना… पर जब भी किसी को मौका मिलता है, तो वह वापस अपने घर आकर ही सुकून की जिंदगी जीना चाहता है… बस फर्क यह है कि कुछ को यह मौका मिल पाता है और कुछ को नहीं… आप क्या कहते हैं इस बारे में..? बताइएगा ज़रूर…

धन्यवाद

स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित

#घर-आंगन

रोनिता कुंडु 

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