अधूरी कहानी – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : कई बार जिंदगी में कुछ ऐसे लम्हें आते है, जो कभी भुलाये नहीं भूलते..। यादें बन दिल में दफ़न जरूर होते पर मौका पा अक्सर याद आ जाते..। दफ़न करने के अलावा कोई चारा भी नहीं होता, क्योंकि जरुरी नहीं हर कहानी मुक़म्मल ही हो, विधाता के लिखें लेख के आगे किसकी चली है..।

      फरवरी माह आते ही कनु अन्मयस्क हो जाती, गुलाबी सर्दी के गुलाबी यादें, दिल के दरवाजे पर दस्तक देने लगती…। कभी उन यादों पर ताला लगाने की कोशिश करती तो जिद्दी बच्चे की तरह सारे बंधन तोड़ निकल आती…।

        फरवरी की गुलाबी सर्दियों वाले दिन, पिछली रात ही जोरदार बारिश सर्दी और बढ़ा दी, यूँ पहाड़ों के मौसम का कोई ठिकाना नहीं होता।

    सुबह भी आसमान पर काले बादलों का सम्राज्य था,सूर्य देवता भी अपनी रजाई से बाहर आने में आलस्य कर रहे थे ..। कनु यानि कनुप्रिया अपनी रजाई में घुसी, अगले दिन के लेक्चर की तैयारी कर रही थी, माँ के खाँसने से उसे याद आया, माँ की दवाइयाँ खत्म हो गई।

     अब रजाई से निकले बगैर कोई चारा न था…।शाम हो चली,सोचा स्कूटी से जल्दी हो जायेगा और अंधेरा होने से पहले वो मेडिकल शॉप से दवाइयां ले घर आ जायेगी।

        दवाइयाँ ले लौट रही थी, रास्ते में स्कूटी ने आगे बढ़ने से मना कर दिया.., कनु स्टार्ट करने की कोशिश करती, पर स्कूटी भी ठण्ड से,उसके हाथ -पैरों की तरह अकड़ी जा रही थी,।

     शाम गहरा रही थी, कोहरे का कहर भी बढ़ रहा था, कनु ने परेशान हो इधर -उधर देखा, सामने बस स्टैंड देख उधर बढ़ चली, वहाँ भी कोई नहीं था, ठण्ड की वज़ह से आवाजाही कम थी, सड़के सुनसान हो रही थी, हड़बड़ी में कनु मोबाइल भी घर छोड़ आई थी।

      ठिठुरती कनु समझ नहीं पा रही ठि स्कूटी वही छोड़ दें या घर ले जाये, आसपास कोई शॉप या मैकेनिक भी नहीं दिख रहा था।बाइक की आवाज सुन, कनु चैतन्य हुई, सामने से गुजरते बाइक वाले को हाथ दिया।…।

       बाइक आगे जा कर रुक गई…, बाइक वाला पीछे आया .. कनु डर गई…।कनु के हाथ अपनी सैंडल की ओर बढ़े… ये देख बाइक वाले ने कहा “हे … मै आपकी मदद के लिये आया हूँ, सैंडल से मार खाने नहीं “…।

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ये सुन कनु शर्म से कुछ न बोल पाई, बाइक वाले ने भी कोशिश की पर स्कूटी टस से मस न हुई।

  “आप मेरे साथ बाइक पर चलिये, पास में एक मैकेनिक है उसे बुला कर ले आते…। पहले कनु ने मना कर दिया पर शाम को रात में बदलते और सड़क के सूनेपन को देख राजी हो गई…।

    “जब तक मैकेनिक स्कूटी ठीक करेगा क्यों न हम पास के टपरी में चाय पी लेते, ठण्ड बहुत है “बाइक वाले ने कहा..।कनु राजी हो गई, दोनों टपरी के कोने में खडे हो चाय पीने लगे। चाय पी जब वे बस स्टैंड पहुंचे तो मैकेनिक ने स्कूटी ठीक कर दी थी, जल्दी में कनु स्कूटी स्टार्ट कर घर आ गई, घर में आ उसे याद आया उसने बाइक वाले को धन्यवाद नहीं दिया न ही नाम पूछा…। रात बार -बार बाइक वाला याद आता रहा… कनु खींझ गई,।

     सुबह कॉलेज गई, दिन भर काम में उलझी रही, तभी स्टाफ रूम में एक परिचित आवाज सुनाई दी, कनु ने पलट कर देखा वही बाइक वाला…,”अरे आप यहाँ… सॉरी मैडम मै आपका पीछा करता नहीं आया यहाँ… कल तो सैंडल पड़ने से मै बच गया था,… नाटकीय स्वर में उसने कहा। सब हँस पड़े..।

     “देखिये मिस्टर…, जब तक कनु अपनी बात पूरी करती,” जी बन्दे को प्रतीक..कहते है…. मेरा नाम है “उसने कहा तो एक बार स्टाफ रूम में फिर हँसी गूंज उठी। पता चला वो केमिस्ट्री का नया प्रोफ़ेसर है..।

      कुछ समय बाद, कॉलेज के स्टाफ रूम, कैंटीन, हर जगह उनके चर्चे होने लगे। दोनों की केमिस्ट्री गजब की थी, एक शरारती तो दूसरा गंभीर….। कनु के नीरस जिंदगी में प्रेम की बयार बह चली और उसमें कनु भी बह गई…।

    फरवरी का रोज डे, जब प्रतीक ने सुर्ख लाल गुलाब उसके लंबे बालों में लगा अपने प्रेम का इजहार कर बैठा…। कनु को दुनिया की सारी खुशियाँ मिल गई…। असमय पिता के चले जाने से कनु पर दोनों छोटे भाई -बहन की जिम्मेदारी आ गई…। कनु अपनी जिम्मेदारियों में डूब गई…। 




      कहते है न, खुशियाँ ज्यादा देर एक जगह नहीं रहती… यही कनु के साथ हुआ। प्रतीक को विदेश के किसी कॉलेज में तीन साल का शोध करने का ऑफर मिल गया। कनु को उदास देख प्रतीक ने पूछा “तुम खुश नहीं हो “

     “मै बहुत खुश हूँ पर तुमसे दूरी सहन नहीं हो रही, हमारे इस रिश्ते का क्या होगा “कनु ने उदासी से पूछा।

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   .”कनु तीन साल पलक झपकते बीत जायेंगे, लौट कर आने पर, हम अपने रिश्ते को शादी के बंधन में बांध लेंगे.”प्रतीक ने कनु के आँसू पोंछते कहा।

       एयरपोर्ट पर प्रतीक को विदा कर कनु लौट आई… उसका कहीं मन नहीं लगता, हर जगह उसे प्रतीक ही दिखता..,प्रतीक रोज वीडियो कॉल करता…। कुछ समय बाद वीडियो कॉल, फोन कॉल में बदल गया… साल भर बाद व्यस्तता के चलते प्रतीक का फोन कम होने लगा फिर फोन आना बंद हो गया…।

     कनु ने कई बार प्रतीक से संपर्क करने की कोशिश की पर नाकाम रही,,धीरे -धीरे भाई -बहन की भी शादी हो गई…, कनु माँ के साथ अकेली रह गई, कुछ समय बाद उसकी माँ भी बेटी की शादी का अरमान लिये चली गई, प्रतीक ने कहा था “वो जरूर लौटेगा “कनु का ये विश्वास धीरे -धीरे क्षीण हो गया…. अब तो कई साल बीत गये…।एक कहानी जो पूरी होते रह गई..।

    शाम का सूरज सिंदूरी हो कर, दूर कहीं क्षितिज पर अस्त हो रहा.., कनु यादों के भंवर से निकल यथार्थ में आ गई, कनु अब कॉलेज कैंपस में रहती, कुछ समय पहले कॉलेज की तरफ से ऑक्सफ़ोर्ड जाने का मौका मिला, वहाँ कनु की बचपन की सहेली रोजी,जिसके पापा वहीं सेटल हो गये थे, रहती थी, कनु ने उसे कॉल किया, “तू मेरे घर ही रुक जा , मेरे पति खुश ही जायेंगे भारतीय मेहमान को देख कर “कह कनु को एयरपोर्ट से अपने घर ले आई। रोजी के घर पहुंचते ही, जिस पिक्चर पर कनु की निगाह पड़ी, कनु बर्फ के मानिंद ठंडी हो गई..। रोजी अंदर से अपने पति को कॉल करने गई, वापस आ कर देखा तो बैठक में कनु नदारद थी…।

     उसी टैक्सी से कनु होटल चली आई, बार -बार बजते मोबाइल को साइलेंट पर रख दिया, कॉन्फ्रेंस खत्म होते ही कनु भारत वापस आ गई ..।महिमा को कैसे बताती उसका पति कनु का प्यार प्रतीक था, जिसके प्यार की कशिश से वो इतने साल महकती रही, उसकी बेवफाई से दिल टूट गया..।प्रेम के ये रूप कनु की समझ से परे था….।काश एक बार तो सच बोल देते मै इंतजार न करती…. कनु के दिल ने कहा…। कनु ने फिर पीछे पलट कर नहीं देखा …।

    पता चला, प्रतीक जिस प्रोफेसर के अधीन शोध कर रहा था वे रोजी के पापा थे…। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में प्रेम हार गया था…।

 बस तब से वो और उसके स्टूडेंट… जिंदगी का अहम हिस्सा बन गये…।

               —संगीता त्रिपाठी

#प्रेम 

 

 

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