Moral stories in hindi : दमयंती जी और उनकी बेटी सुहाना जैसे ही बाजार से लौटकर आती है तो वो दोनों रोमी और मोना को आवाज लगाने लगती है। रोमी और मोना दोनों दमयंती जी की बहू है। सुहाना उनकी बेटी भी आवाज लगाकर कहती- “अरे भाभी कहां हो? हम लोग थककर आए हैं ,कम से कम पानी तो दे दो।” तब रोमी और मोना नहीं सुनती है तो दोनों देखती दोनों कहां है!!
उन्हें आश्चर्य होता है अरे किचन भी साफ नहीं हुआ, न लिविंग रुम भी,घर तो वैसा का वैसा ही है आखिर ये दोनों गयी कहां •••••मां बेटी को चैन न पड़ती, वे दोनों हर कमरे में देखने लगती है••• तब उन्हें रोमी के कमरे में ही मोना और रोमी दोनों तैयार होकर मजे से मोबाइल देखती हुई मिलती हैं।तब दोनों को देखकर हैरानी से दमयंती जी पूछती
– “अरे रोमा और मोना कहीं जा रही हो क्या ? इतनी तैयार क्यों हो?हम लोग आ भी गये तुम दोनों कमरे से बाहर भी न आई।घर के प्रति कोई जिम्मेदारी है कि नहीं!!
तब रोमी कहती-” मम्मी जी आप सबको कहती हैं,मेरी बहूओं से कुछ काम की नहीं है,मेरी बहू कुछ करती नहीं है इसलिए कुछ नहीं किया।
क्या ••••!! बहुत ही गुस्से से दमयंती जी
हां मम्मी जी आप को लगता है कि हम दिन रात काम करते रहे, तब भी आपको कुछ दिखता ही नहीं हम लोग कुछ भी कितना भी कर ले।वो आपको नजर नहीं आता और तो और पड़ोसी और रिश्तेदारों से भी कहने से नहीं चूकती मेरी बहू ऐसी है ,मेरी बहू वैसी है ,ऐसा आप शुरू से करते आई यहां तक कि कहीं जाना हो तोभी घर के काम के हिसाब से हमें अपना जाना निश्चित करना पड़ता है।तो आज ये देखकर बुरा क्यों लग रहा है।
तब सुहाना कहती -“अरे मम्मी आज भाभियां ज्यादा नहीं बोल रही है।
तब दमयंती जी कहती हैं-” सुनो बहुओं ससुराल में ऐसे ही रहना पड़ता है।
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तब रोमी कहती- मम्मी जी आप हमें खरीदकर नहीं लाई हैं,न ही आपके हम नौकर है आपने कल क्या किया जब बुआ जी आई तो आपने ही खाने में कमी निकाल दी।उनके ही सामने ही कहने लगी-” अरे हमारी बहूओं को इतने साल हो गए, इन्हें कुछ करना ही नहीं आया। हमारे यहां छोलों में खड़ा मसाला डलता आया है लेकिन देखो तो न.. तो न मसाला नजर आ रहा है तेल ••••
आपने उनके सामने बड़े आसानी से ये सब हमें सुना दिया ,ये तक न सोचा अचानक आई बुआ जी के सामने हमने खातिरदारी में कोई कमी न छोड़ी।हम लोगों ने खाना भी नहीं खाया था ,दोपहर के दो बज चुके थे तब वो आई थी,पर उनकी सेवा में लगे रहे। वैसे तो घर में एक सब्जी से काम चल जाता है हमने दो सब्जी बना ली चलो कुछ कमी न लगे तो पर भी आपने हमें इतना सुना दिया।
क्या हमारी जगह सुहाना को ससुराल में इतना करने के बाद सुनाया जाए तो क्या आपको अच्छा लगेगा?
आप सोचिये ऐसा होता है एक बहू का ससुराल ??
आप तो उनसे ये कह रही खाना के काम से फुर्सत होते ही हमारी बहूएं कमरे में चली जाती है।तो आप बताइए हम लोग मशीन है?
फिर सुहाना अपने पर आई बात के लिए कहती हैं भाभी हमें तो बीच न लाओ।
फिर मोना कहती अगर सुहाना दीदी कुछ कर दे तो उनका काम बहुत अच्छा लगता है। और हम दिन भर काम को करते हैं वो आपको नहीं दिखता है।बताओ न हम भी सुहाना दीदी की तरह किसी की बेटी है।आप हमें बेटी न मानो तो भी ठीक है कम से कम एक घर का सदस्य की तरह तो मानो हमें हमारे काम के लिए दो तारीफ के बोल ही बोल दो।
पर वो तो हम लोगों आज तक सुनी ही नहीं,खैर छोड़ो •••और आपको क्या कहे•••
आज इतना सुनते ही दमयंती जी को अहसास हुआ कि हमने अपनी बहूओं पर तो अति ही कर दी। मैं अपने घर की ढक कर चलती और ननद जी को बहूओं के बारे में न कहती तो शायद इन्हें इतना बुरा न लगता।
आज बहुओं ने बता दिया उन्हें उनकी बात का बुरा लगता है।इस तरह दमयंती जी ने सोचा मेरी बहूओं ने कभी कुछ नहीं कहा।पर आज ये दोनों को लगा हमें इतना नहीं सुनाना चाहिए था। क्योंकि ननद रानी तो अपनी बहूओं की तो कुछ बताती नहीं है , मैं ही अपनी बहूओं को कम समझूं।आज तक मेरी बहूओं ने मुझसे कुछ नहीं कहा।पर आज समझ आ रहा है कि मैंने ही बहूओं को कम समझा।अगर मेरी बेटी मुझे ये सब बताए तो अच्छा लगेगा नहीं न•••
इस तरह दमयंती जी कहा -सही कहा बहूओं तुम लोगों ने अगर मैं कुछ समझूंगी तो दूसरे तुम लोगों को क्या सम्मान देंगे। ससुराल में बहूओं का सम्मान हो तो वो सब सहकर अपना फर्ज निभाती है। मैंने अपनी सास की तरह बन गयी। मुझे तुम लोग माफ़ कर देना मैंने कभी तुम लोगों के नजरिए से सोचा ही नहीं।
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दोस्तों -हम जब बहू बनकर ससुराल जाते हैं तो हमें अपनी जिम्मेदारी से बांध दिया जाता है। जबकि बेटी कुछ भी न करें तो कुछ नहीं पर बहूओं का भी अस्तित्व होता है। उन्हें भी ससुराल में सम्मान मिलना चाहिए,जो वो फर्ज निभाती है,वो बाहर वाला नहीं करता है। बड़े बुजुर्ग की आदत होती है कि कोई रिश्तेदार आया नहीं अपने मन की भड़ास रिश्तेदारों के सामने निकाल देते हैं। जबकि बहू उसी परिस्थिति में सुन लेती है और जवाब नहीं दे पाती है। तो क्या ऐसा होना चाहिए ससुराल??
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स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना
अमिता कुचया
Meri sasu ma ka bhi yhi hal h ,sabke samne kuch bhi burai nikal dena,
Job ke sath aaye guests ki aavbhagat bhi kro ,fir bhi koi appreciation nhi .