Moral stories in hindi : तुम्हारी चाहत मेरी चाहत पर भारी पढ़ गई मीनू, शायद तुम्हारे अश्रुओं का बजन मेरे अश्रु से ज्यादा था, मेरी एक हॉं और मेरी चाहत चकनाचूर हो गई. तुम शुरू से जिद्दी हो, पर हर बार तुम्हें जिता कर मैं खुश होता था.मगर आज……जब राज को अकेला छोड़ तुम अनन्त में विलीन हो गई हो, तो मुझे ऐसे बंधन में क्यों बांधा?….
तुम्हारा जाना तय था, तुम गई…मैं रह लेता तुम्हारी यादों के सहारे,.मगर तुमने वह सहारा भी छीन लिया. तुम्ही बताओ मैं चारु के साथ जिन्दगी किस तरह बिता पाऊँगा? मेरी रग-रग में तुम्हारे लिए और सिर्फ तुम्हारे लिए प्यार भरा हुआ है.दूसरा दिल कहाँ से लाऊॅंगा जो चारू को प्यार कर सके, उसके साथ न्याय कर सके.तुम्हारे ऑंसुओं ने उस समय मुझे इस तरह गिरफ्त में ले लिया था कि मुझे हॉं कहना पढ़ा और तुम….
चली गई. अब किससे पूछूँ कि मैं क्या करूँ? राज इन विचारों में खोया बहता चला जा रहा था, मीनू की बिदाई का समय आ गया था, घर में हाहाकार मचा था. मात्र २१ साल की उम्र में ब्लड कैंसर के दानव ने उसे ग्रस लिया था.फूल सी सुन्दर मीनू का पार्थिव शरीर ले जाया जा रहा था और सब बेबस खड़े थे,किसी के अश्रु थमने का नाम नहीं ले रहै थे.कुछ लोग भगवान को कौस रहै थे कि ‘जब लेना ही था तो इस प्यारी बच्ची को दुनियाँ में भेजा ही क्यों?’
कोई मीनू की तारीफ करते नहीं थक रहा था -‘कितनी प्यारी थी, कितना मीठा बोलती थी, सबका काम करती सबसे प्यार करती थी.’ मीनू जा चुकी थी राज के आसपास और अन्तस में एक शून्य सा फैल गया था.ऑंखों में ऑंसू नहीं थे, वह फटी-फटी ऑंखों से आसमान की ओर देख रहा था.अपने घर के छज्जे पर अकेला खड़ा था.पढाई करने आया था.इस शहर में और पढ़ाई पूरी करने पर यहीं कालेज में पोस्टिंग हो गई.
इन चार साल में मीनू के सम्पर्क में आया दोनों के घर आमने सामने थे.कॉलेज भी एक ही.आते -जाते, कॉलेज में कई मुलाकात हुई, दोनों को गाने का शोक था, और दोनों साथ में कॉलेज के समारोह में मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे.दोनों में परस्पर आकर्षण बड़ा और साथ में जीवन बिताने के सपने देखने लगे.मगर…. साल भर पहले मीनू को ब्लड कैंसर के अभिषाप ने घेर लिया.लास्ट स्टेज थी,डॉक्टर जवाब दे चुके थे, जाना तय था,
और वह जानती थी कि उसके जाने के बाद राज बिल्कुल अकेला रह जाएगा, वह जिद्दी हैं, मीनू को छोड़कर किसी के साथ शादी नहीं करेगा, इसलिए वह जाते-जाते उसे अपने एक वचन बांध गई थी कि वह उसकी सहेली चारू से शादी करले. वह हमेशा कहती कि -‘राज तुम मेरी बेजान सांसो में क्यूँ बसना चाहते हो,?
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क्षीण होती धड़कनों में क्यूँ सिमटना चाहते हो.मेरे पास अंधेरे सिवा कुछ नहीं है, तुम क्यों अंधेरो में बसना चाहते हो, इस पार कुछ नहीं है, क्यों यहाँ सिमटकर बैठे हो?’ राज हॅंसकर कहता ‘मेरी तो पूरी दुनियाँ तुम्हारे इर्दगिर्द है, बस मेरी यही चाहत है कि मैं तुम्हारें करीब रहूँ.’ ‘ बड़े स्वार्थी हो मेरी चाहत को सुनते ही नहीं हो, इस पार कुछ नहीं है राज, उस पार जिन्दगी है, जो तुम्हारा आलिंगन करना चाहती है, उसका आलिंगन क्यों नहीं करते, इस तरह अपने आपको क्यों मिटा रहै हो. मेरी हर खुशियाँ तुम्हारे साथ है, मेरी हर साँस तुम्हारी खुशी की आरजू करती है.पर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रह सकती.सिर्फ तुम्हारी खुशी की चाहत है,मैं चाहती हूँ कि तुम चारू से शादी कर लो. सिर्फ इस चाहत के सहारे ही मैं जी रही हूँ, मेरी चाहत छीनकर मुझे क्यों रूलाना चाहते हो.’
अजीब उलझन थी चारू मीनू की पक्की सहेली थी, और बहुत समझदार थी, मीनू जानती थी कि चारू भी राज को पसंद करती है.उसे उम्मीद थी कि राज उसके साथ बहुत खुश रहेगा.वह पूरी परिस्थिति को जानती है.मीनू ने चारू को भी इसके लिए मना लिया था और अब राज के पीछे पढ़ी थी कि उसके जाने के बाद वो चारू के साथ शादी कर ले.और जाते- जाते वचन में ले ही लिया उसे.
अंधेरा घिर आया था राज को अपनी कुछ भी सुध-बुध नहीं थी, वह बुत बना छज्जे मे खड़ा था लाइट भी चालू नहीं की थी, किसी के कदमों की आहट से उसका ध्यान टूटा, उसने मुड़ कर देखा चारू थी, चारु मीनू के साथ कई बार राज के घर पर आई थी, मगर आज राज को अलग सी अनुभूति हो रही थी, एक तरफ मीनू को दिया वचन और दूसरी तरफ उसकी रग-रग में दौड़ रहा मीनू के प्रति उसका प्रेम. वह चारू का सामना कैसे करे? कैसे नजरें मिलाए उससे? क्या बात करे? कई प्रश्न थे, जो उसके मानस को झकझोर रहै थे. मगर मीनू ने चारू को हर स्थिति से अवगत कराते हुए तैयार किया था. वह बोली -‘दुविधा है ना आपके मन में कि मुझे कैसे अपना पाऐंगे. परेशान न हो और मन पर बोझ न रखै.मैंने आपको मीनू की चाहत का मान रखने के लिए हर हाल में स्वीकार किया है,
मगर एक बोझ मेरे मन पर भी है क्या आप उसे उतारने में मेरी मदद करेंगे?’ राज ने आश्चर्य से उसे देखा वह फफक कर रो पड़ी.राज ने बढ़कर उसे सहारा दिया.तो वह बोली – ‘राज आप मेरी भी चाहत थे, मगर जब पता चला कि आप और मीनू एक दूसरे को चाहते हैं, तो मैंने कभी इजहार नहीं किया.और मैं यही चाहती थी कि आप दोनों हमेशा खुश रहैं.मुझे एक प्रश्न परेशान कर रहा है कि कहीं मेरी नजर तो नहीं लग गई , प्यारी मीनू हमें छोड़कर चली गई.’ राज ने कहा ‘ऐसा कुछ नहीं है. उसे जाना था चली गई….पर मैं न तो उसे दिया वचन तोड़ सकता हूँ, और न दिल से तुम्हें अपना पा रहा हूँ.क्या करूँ समझ में नहीं आ रहा है. हमें उसकी चाहत का मान रखना होगा, कैसे? ये बाद में सोचेंगे.अभी तो हमें मीनू के घर जाकर उसके मम्मा-पापा को सम्हालना चाहिए, क्या सोच रहै होंगे कि मीनू के जाते ही सबने साथ छोड़ दिया.राज की चेतना लौटी और वह चारू के साथ मीनू के घर गया, उसके माता पिता को हिम्मत बंधाई और पूरे तेरह दिन के कार्यक्रम में उनके बेटे की तरह कार्य किया.
तेरह दिन बाद फिर एक सूनापन आ गया उसके जीवन में, वह सोता तो नींद में उठकर बैठ जाता, मीनू को दिया वचन याद आता उसे लगता की मीनू उससे नाराज है. उसका प्यार भीयाद आता.और फिर एक दिन मीनू की चाहत जीत गई और चारू और राज विवाह सूत्र में बंध गए.आज राज को लग रहा था कि मीनू अपनी चाहत पूरी कर उसके दिल में बैठी मुस्कुरा रही है.
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक