Moral stories in hindi : “बहू आ गई! बहू आ गई!” के शोर से सारा दालान गूँज उठा। घर में जितने भी रिश्तेदार थे,सभी ड्योढी पर आ खड़े हुए। मानसी आदित्य के साथ दरवाजे के दूसरी तरफ खड़ी थी। नया घर, नया माहौल, नए लोग, सोच सोच कर ही मानसी की हालत ख़राब हुई जा रही थी कि न जाने कैसे होंगे सब लोग। जब से होश सँभाला था तबसे पास-पड़ोस,रिश्तेदारों,बड़े बुजुर्गों को यही कहते सुना था कि ससुराल में बहुत सँभल-सँभल कर चलना पड़ता है।अपनी विवाहित सखियों के शादी से जुड़े खट्टे-मीठे वाक़यात सुनकर मानसी के मन में शादी को लेकर उमंग भी जागती थी और चिंता भी।
मन में कुछ पूर्वाग्रह लिए मानसी आज ससुराल की डयोढी पर खड़ी थी। यूँ रिश्ता होने से लेकर अभी तक ससुराल पक्ष के सभी लोगों का व्यवहार बहुत अच्छा बना हुआ था पर फिर भी कहीं न कहीं एक डर सा बना हुआ था।
अचानक पायल की छन-छन से मानसी की तंद्रा टूटी, देखा तो सामने से हाथ में आरती की थाली लिए मुस्कुराती हुई सासु माँ सुलभा उन्हीं की और बढ़ रही थीं।सुलभा ने मानसी और आदित्य की नज़र उतारने के बाद उन्हें भीतर आने को कहा तो ननद रानी छिटक पड़ी,”ऐसे कैसे मम्मी?पहले नेग निकालो तब ही अंदर आने का लाइसेंस मिलेगा।”
सुनकर मानसी को हल्का सा झटका लगा।वह उँगली में पहनी अपनी सबसे बड़ी अँगूठी निकालकर देने लगी।,” वाह भाभी!भैया के पैसे बचा रही हो।भई,हम नहीं लेंगे सोने की अँगूठी।हम तो भैया से नगदी लेंगे। चलो भैया, जेब ढीली करो।”ननद पूजा ने कहा तो आदित्य ने जेब से एक लिफाफा निकाल कर पूजा को थमा दिया ।मानसी ने अपनी अँगूठी वापिस पहन ली। फिर तो कंगना खिलाई,देवर की गोद बिठाई,पैरों पड़ाई जैसी सभी रस्मों में नेग तो सभी को दिया गया पर मानसी को अपने पर्स में हाथ तक नहीं डालना पड़ा।
सासु माँ ने सारे इंतज़ाम पहले से ही कर रखे थे। बक्सा खुलाई के समय जब मानसी ने अपनी ननद से मनपसंद साड़ी लेने को कहा तो सुलभाजी ने कहा,
इस कहानी को भी पढ़ें:
“मानसी तुमने सभी साड़ियाँ बहुत मन और चाव से अपने लिए खरीदी होंगी और सभी के ब्लाउज भी सिलवाए होंगे।है न!” मानसी ने सहमति में सिर हिलाया तो सुलभाजी ने आगे कहा,”इसलिए तुम पूजा को वही साड़ी दो जो तुम पूजा के लिए आई हो न कि अपनी साड़ी क्योंकि बेटा जब कोई लड़की दुल्हन बनती है तो अपने जीवन के लिए कुछ सपने देखती है और उन सपनों में खुद को एक राजकुमारी जैसा देखती है जिसमें उसके माता-पिता और अन्य सभी परिजन भरपूर प्रेम और सहयोग के साथ उसे उपहार देते हैं और उन उपहारों को लेकर मैं उस प्यारी सी राजकुमारी के सपने नहीं तोड़ना चाहती।”
“हाँ, भाभी! मेरी रानी माँ ने भी मुझे यानी उनकी राजकुमारी को बहुत सारे तोहफ़े दिलाए हैं तो यह राजकुमारी दूसरी राजकुमारी के तोहफ़े तो बिल्कुल नहीं लेगी।हम राजकुमारी हैं और राजकुमारियाँ किसी का हक नहीं मारती।वो वही लेती हैं जिस पर उनका हक होता है तो हम वही साड़ी लेंगे जो आँटीजी ने हमारे लिए भेजी है।क्यों रानी साहिबा?” पूजा ने नाटकीय अंदाज में अपनी साड़ी का पल्ला लहराते हुए कहा तो सब हँस पड़े मानसी सोचने लगी कि जहाँ ससुराल वाले जरा-जरा सी बात पर बहुओं को ताने मारा करते हैं,वहीं ऐसे लोग भी हैं जो इतनी प्यारी सोच भी रखते हैं। वाकई एक ससुराल ऐसा भी होता है।””
मौलिक सृजन
ऋतु अग्रवाल
मेरठ
#ससुराल