माँ का अधिकार – संगीता त्रिपाठी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सुबह खाने की टेबल पर सबको पराठे परोसते उमा बेटे से बोली, “रात तुम लोग देर से आये हो..”

      “तो क्या हुआ मम्मी जी, पार्टी में गये थे, थोड़ा देर हो जाना स्वाभाविक है…”बहू ने चिढ़ कर जवाब दिया.।

       “हाँ.. मै कुछ कह नहीं रही, ऐसे ही पूछ रही थी..”पति सुजय की घूरती आँखों को देख उमा घबरा गई..।

    बेटे बहू को लंच बॉक्स पकड़ा कर मुड़ी ही थी बहू की आवाज सुनाई दी,”मम्मी जी हर समय टोका -टाकी करती है.., हमारी अपनी लाइफ है, हम कब आये, कहाँ जा रहे, किसके घर जा रहे, सब अपडेट उनको चाहिए,,”मुँह बनाते रूपा बोली,

  “छोड़ो यार ये सब, मम्मी खाली रहती है, यही सब उनका टाइम- पास है “आदित्य ने बाइक स्टार्ट करते पत्नी रूपा से कहा।

    उमा जी सन्न रह गई, बिना बोले अंदर आई तो सुजय भी ऑफिस जाने को तैयार थे,”हो गई तुम्हारी इन्क्वायरी…, कितनी बार कहा, अपने काम से काम रखों…खाली दिमाग शैतान का घर होता है “सुजय बोले..।          

        पति की बात सुन आज उमा की सहनशक्ति जवाब दे गई…. पति के जाते ही अपमान की पीड़ा अपनी सीमा तोड़ आँखों के रास्ते बह गये…।

   क्या सच में उनकी कोई कीमत नहीं है, क्या शादी के बाद बेटे -बहू की चिंता करना अब उनका हक़ नहीं है,.बच्चों पर माँ का अधिकार सिर्फ तब तक है जब तक उनकी शादी ना हुई हो.. उसके बाद सिर्फ पत्नी का ही अधिकार होता है…. क्या शादी के बाद रिश्ता सिर्फ पति -पत्नी का ही रह जाता, बाकी रिश्तों की अहमियत खत्म हो जाती है…, मन के ढेरों प्रश्न उमा को परेशान कर रहे थे.., उनका मन ये मानने को तैयार नहीं, उनका अधिकार अब बेटे पर नहीं रहा…।

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       अभी कुछ दिन पहले उमा ने बेटे आदित्य की पसंद का सूजी का हलवा बनाया, हलवा देख कर रूपा बोली,”मम्मी जी सुबह -सुबह घी से तर ये हलवा कौन खाता है…”पत्नी की बात सुन, हलवे की तरफ बढ़ते आदित्य ने अपने हाथ पीछे खींच लिया..।

      शाम बेटी का फोन आया तो माँ की भारी आवाज सुन पूछ लिया “सब ठीक है मम्मी..”

      उमा जी सबकुछ बेटी से कह गई, सब सुन बेटी बोली, “तुम चिल्ल करो माँ, अपनी खुशी देखो, हम सब की चिंता छोड़ो अब .., अपनी जिंदगी जीयो…!!

      बेटी की बात सुन उमा जी सोच में पड़ गई… जिन बच्चों के इर्द -गिर्द जिंदगी गुजर गई, जिनकी खुशी में उनकी खुशी थी, आज उनको छोड़ कर कौन सी खुशी ढूढ़ेगी…।

     एक दिन पक्की सहेली रैना आई और उमा के बुझेपन को भाँप कर कारण पूछा तो उमा ने अपना दिल खोल कर रख दिया।

         “देख उमा, हमारा जमाना चला गया, जब बेटा बूढा भी हो जाये तो भी पिता के आगे जुबान नहीं खोलता था…,अभी की पीढ़ी को टोका -टाकी पसंद नहीं आती, तू भी पूछना बंद कर दे,..”

      “पर मै माँ हूँ अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती हूँ “उमा बोली

       “भावनाओं को प्रकट कर जब घर की शांति भंग हो रही तो क्या फायदा उन्हें दिखाने का, एक बात और गांठ बांध लो जो चीज सरलता से मिलती उसकी कीमत कोई नहीं समझता, उतना ही कर जितना जरुरी है ..”रैना तो उमा को समझा कर चली गई…, अब बारी थी उमा की, अपने को सीमित करने की..।

     सुबह -सुबह बिट्टू और रूपा की चीख -पुकार से उमा भाग कर रूपा के कमरे में गई,रूपा बिट्टू को डांट रही थी,”कुछ भी कहना नहीं सुनता, जवाब देने में माहिर हो गया., बड़ो से जुबान लड़ाते हो..”

      रोते बिट्टू ने कहा, “तुम और पापा भी दादी और दादू का कहना नहीं मानते हो,मम्मी तुम तो दादी को जवाब देती हो, वो भी तो तुमसे बड़ी है…,वो तो तुम्हे नहीं मारते., मै आप लोगों के साथ नहीं रहूँगा…”।

    बिट्टू की बात सुन जो जहाँ था वहीं सन्न हो गया,थोड़ी देर बाद आदित्य ने चुप्पी तोड़ी, “माँ मुझे माफ कर दो, मुझसे गलती हो गई,”

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   “हाँ माँ आदित्य सही कह रहे, आप की चिंता हमें टोका -टाकी लगती है,मुझे लगता आप अनावश्यक अधिकार जता रही.जबकि आदित्य पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है…. इसी वजह से  मै आपसे चिढ़ कर बात करती हूँ, मै भूल गई, आदित्य पर मुझसे पहले आपका अधिकार है, आप माँ है तो बच्चों की चिंता स्वाभाविक है..,मुझे भी माफ़ करना माँ…”रूपा ने उमा जी के पैरों पर झुकते हुये कहा..।आज रूपा ने उन्हें सास से माँ का दर्जा दे, माँ का अधिकार दे दिया….।

   बिट्टू ने रूपा को वो आईना दिखा दिया, जो वो देखना नहीं चाहती थी, भूल गई वो भी माँ है,एक माँ होकर दूसरी माँ का अधिकार कैसे छीन सकती…। आदित्य को भी समझ में आ गया बच्चे जो देखते है वही ग्रहण करते है,।

   यही नहीं, सुजय जी को भी अपनी गलती का आभास हो गया, उन्होंने भी क्षमा मांग ली…।

    समस्या बहुत छोटी है, अक्सर बच्चों को माँ -बाप का ये पूछना,”कब आओगे, कहाँ जा रहे हो, देर मत करना ..आदि..अनावश्यक लगता है, ऐसा नहीं है, आप भाग्यशाली है कोई आपकी परवाह करने वाला या पूछने वाला है…, जिन्हे कोई पूछने वाला नहीं, उनके मलाल को आप समझ नहीं सकते…।माना पति -पत्नी का रिश्ता सबसे खास होता है, लेकिन उसे खास माँ -बाप का आशीर्वाद ही बनाता है…, इसलिये बड़ो की इज्जत करें अवहेलना नहीं…।

                                     —संगीता त्रिपाठी

    #अधिकार

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