Moral stories in hindi : आकाश.. आनंदी.. अमृत .. छोटी सी दुनिया तीनों की… अमृत, आकाश और आनंदी का लाडला.. राजकुमार।
समय कब कौन सा रंग दिखा दे.. कोई नहीं जानता… जाने कब कौन सी चूक हुई और एक पेट दर्द ने रातों रात आनंदी के प्राण हर लिए।
आकाश और अमृत.. आनंदी के बगैर अकेले से हो गए थे। अब आकाश को हर पल अमृत की चिंता लगी रहती आकाश की शादी के कुछ दिनों के बाद ही उसके माता पिता गुजर गए थे .. गाँव में उसकी बुआ थी.. स्वभाव की तेज होने के कारण उन्हें लाना नहीं चाहता था। लेकिन अमृत की देखभाल का कह कर वो खुद ही आ गई। अमृत सात साल का छोटा सा बच्चा था। अब आकाश निश्चिंत था कि घर पर अमृत अकेले नहीं रहा करेगा। दोस्त उसे दूसरी शादी की सलाह देने लगे थे। तभी वृंदा ने उसके ऑफिस में टीम हेड के रुप में जॉइन किया था। टीम हेड होने के कारण अक्सर वृंदा से मिलना होता था। उसका सौम्य स्वभाव आकाश को बहुत भाता था। ये जानने के बाद कि सिर्फ बेटा ना होने के कारण उसके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया और उसके पति ने तलाक ले लिया .. आकाश बहुत दुःखी हुआ। वृंदा अपनी बेटी अनाया के साथ रहती थी। ऑफिस की एक पार्टी में घर के सदस्यों के साथ जाना था। आकाश अमृत के साथ और वृंदा अनाया के साथ आई थी। अमृत और अनाया में हमउम्र होने के कारण दोस्ती हो गई। वृंदा दोनों बच्चों का ध्यान रख रही थी.. अमृत को इतने दिनों के बाद इस तरह खिलखिलाते… अनाया के साथ वृंदा की गोद में बैठने की जिद्द करते देख आकाश को सुखद अनुभूति हो रही थी।
पार्टी से आने के बाद और अमृत के मुँह से हमेशा वृंदा और अनाया का नाम सुनते उसने सोच लिया कि वृंदा से शादी के लिए पूछेगा। दोनों बच्चों को परिवार मिल जाएगा… वृंदा को भी कोई आपत्ति नहीं हुई… बच्चे तो एक ही घर में सब रहेंगे.. सुनकर बहुत खुश थे। कुछ खास दोस्तों और बुआ की उपस्थिति में मंदिर में दोनों की शादी संपन्न हुई। एक होटल में छोटी सी पार्टी भी रखी उन्होंने। बुआ को वृंदा की बेटी का होना पसंद नहीं आया। अपना बच्चा जिसे है.. वो क्यूँ अमृत का ख्याल रखेगी.. ये सोच उन पर हावी हो गई थी।
उनकी पैनी निगाह वृंदा के व्यवहार को हमेशा बिंधती रहती। अमृत को हमेशा ये एहसास दिलाने की कोशिश करती.. वृंदा उसकी सौतेली माँ है.. इसलिए उसका ध्यान नहीं रखती.. अपनी बेटी अनाया में लगी रहती है। अमृत छोटा बच्चा था.. वृंदा के निश्छल प्यार को बखूबी महसूस करता था। लेकिन बच्चा ही तो था… पड़ोसी भी अक्सर अमृत को बेचारा कह कर दया दिखाते। एक दिन शैतानी करने पर वृंदा दोनों बच्चों को डाँट लगाती है। बुआ के लिए वृंदा को नीचा दिखाने और अपनी बात सही सिद्ध करने का मौका मिल गया था। वे अमृत को यह समझाने में सफल हो जाती हैं कि उसकी कोई गलती नहीं थी। फिर भी वृंदा ने अपनी बेटी अनाया की अपेक्षा उसे ही ज्यादा डाँटा क्योंकि वो उसका पेटजाया जो नहीं है। अब अमृत वृंदा से कटा कटा रहने लगा था।
बुआ के सामने वृंदा अमृत से कुछ पूछ भी नहीं सकती थी.. बुआ हाय तौबा मचा देती.. जिससे घर का माहौल बिल्कुल ही बिगड़ जाता। एक दिन संयोग से किसी पड़ोसी के घर पूजा रखी गई थी.. बुआ भी वही गई हुई थी.. वृंदा ने बच्चों की पसंद का पिज्जा बनाया और दोनों के साथ खाने बैठी। आज अमृत को कई दिन के बाद गोद में बिठाकर खिला भी रही थी और चुहल भी कर रही थी.. बातों बातों में उसने अमृत से सारी बातें जान ली थी।
उसी समय वृंदा ने अमृत से वादा लिया कि कोई कुछ भी बोले। वो अपनी माँ से सारी बात बताएगा…अपनी माँ और बहन से अलग अलग नहीं रहेगा और अगर उसे अपनी माँ की कोई बात खराब लगे , तो खुद ही आकर बताएगा, जिससे वो सॉरी बोल सके। साथ ही वृंदा ने अपनी तरफ से भी वादा दिया कि उसे कभी नहीं डाँटेगी… अमृत ने बहुत मासूमियत से कहा.. अनाया पर भी गुस्सा नहीं करना। वृंदा हँसकर प्रॉमिस करती है… उसे और उसकी बहन पर कभी गुस्सा नहीं करेगी।
लेकिन एक बात जो वो समझ जाती है.. सौतेली माँ जितनी बुरी नहीं होती.. उसे समाज बुरी बनने पर शायद मजबूर कर देता है…बनाने के वजाए बिगाड़ने में लोगों को इतना मजा क्यूँ आता है…
उसके मन में एक ही बात आ रही थी .. ये राह नहीं आसां…इतना समझ लीजिए.. आग का दरिया है.. डूब कर जाना है..
उसने सोच लिया.. किसी को भी ये अधिकार नहीं देगी कि उसके और उसके बच्चे के बीच खाई तैयार करे। घर,परिवार, बच्चों को अपना बनाने के लिए वो सौतेली माँ की धारणा के साथ ही अब एक लंबा सफर तय करने के लिए तैयार थी।
आरती झा आद्या
दिल्ली
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