ये कैसी नादानी – डॉ संगीता अग्रवाल : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : “अरे सुनती हो….” विजय ने तेज़ी से आवाज लगाई…शुभी टॉवल से हाथ पोंछती बाहर आई।

“क्यों शोर मचा रखा है आपने जी!कौन सी आफत टूट पड़ी घर में…” मजाक करती वो कहने लगी।

“सुनोगी तो उछल जाओगी….अगर नहीं मन तो न बताऊं,छेड़ा था उसने शुभी को….।”

“अब कहो भी….सौ काम पड़े हैं मेरे…वो जाने को हुई…”

“भाव मत खाओ बाबा…बता रहा हूं” ,विजय बोला।

“वो सुनील याद है तुम्हें….”

“जो विदेश सैटल हो गया था…वोही…” शुभी की आंखों में चमक आ गई।

“हां….आज आ रहा है वहां से लौटकर….सुना है बहुत पैसा कमा लिया उसने,बड़ा आदमी बन गया है और अब यहीं इंडिया में बसना चाहता है..।”

“तुम्हारी बात हुई उससे…?”

“और नहीं तो क्या?खुद उसका फोन आया था,कह रहा था पुराने दोस्तों में बस तुम्हीं याद आ रहे हो…।”

“ये तो बड़ी अच्छी बात है…उससे मेलजोल बढ़ाते हैं,हो सकता है खुश होकर बिजनेस पार्टनर ही बना ले…” शुभी ने विजय से कहा।

तभी अंदर से विजय के पिताजी  दयाशंकर बाहर निकले….

“कौन आ रहा है बेटा?” उन्होंने विजय से पूछा।

“कोई नहीं” ,उसने रुखाई से जबाव दिया और शुभी को देखकर बुरा सा  बनाते  अंदर जाने लगा।

“इन्हें हर बात की पंचायत है सुबह से शाम तक सारा चिट्ठा जानना चाहते हैं… कोई खाली है क्या?” कहती हुई वो अंदर चली गई।

दयाशंकर हतप्रभ से उन्हे देखते रह गए…तभी उनकी धर्मपत्नी सुरेखा बाहर निकलीं,पतिदेव का उतरा मुंह देखकर समझ गई…फिर बहु बेटे में से किसीने कुछ कह दिया लगता है..।

“क्या हुआ जी…मुंह क्यों लटकाए हो?कुछ कहा क्या किसीने?”

“जब जानती हो तो पूछती क्यों हो?” वो चिड़चिड़े से होते हुए बोले।

“इनकी बातों को दिल से ने लगाया करो आप….या तो जब समय था तब निर्णय लेते…कितना समझाया था रिटायरमेंट के वक्त…अपना सारा पैसा लडके के हाथ मत सौपों,कोई एक कमरे का ही सही अपना घर अलग बना लेते हैं पर तब आपने मेरी एक न सुनी।”

“बस भी करो…अब सारी रामायण मत दोहराओ… मानता हूं कि बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे…”

तभी, विजय का बेटा ,आरव दौड़ता हुआ वहां आया…”दादा जी…आप क्या कर रहे हैं?मेरा होमवर्क करा दीजिए न…देखिए ये एडिशन का सम मुझसे सॉल्व ही नहीं हो रहा।”

“दिखाओ ,दिखाओ मेरे राजा बेटे!अभी सॉल्व किए देते हैं….।”

दोनो दादा पोते,थोड़ी देर में ही पहले सवाल करने में, फिर चेस की चाल खेलने में बिजी हो गए।

सुरेखा उन्हे देखकर बड़बड़ाई…कौन कहेगा कि मिनट भर पहले दुखी हो रहे थे…अब देखो कितने मस्त होकर आरव के साथ खेल रहे हैं।

बच्चो का मोह,खुद की उनपर अधीनता,उम्र की लाचारी,इन सबने उन दोनो को अपने बहु बेटे के पास रहने को मजबूर किया हुआ था।बाकी उन दोनो का व्यवहार बहुत बुरा था उनके साथ।

हर वक्त दोनो इस जुगाड में रहते कि किस तरह उनसे छुटकारा पा सकें…बात बात में उन्हें नीचा दिखाना,टोकना,उनकी बात काटना दोनो का रोज का काम था।

आरव को अपने मम्मी पापा का ये व्यवहार जरा न भाता…उसे उनपर बहुत गुस्सा आता पर छोटा था अभी इसलिए चुप रह जाता।

अगले दिन,सुनील,उसकी वाइफ रीना डिनर पर घर आने वाले थे।सुबह से ही,शुभी कुछ इटालियन और चाइनीज बनाने में जुटी हुई थी।

सुरेखा जी ने कहा…”मुझसे कोई हेल्प चाहिए बहु?”

वो व्यंगत्मक लहजे में हंसी…”ये आपकी दाल चावल नहीं उबालना है,जो कोई भी कर ले….आप अपना और पापाजी का खाना बना लेना जब वो लोग चले जाएं…।”

“क्या??हमे उनके सामने नहीं पड़ना है इसका मतलब…”, वो आश्चर्य से बोली।

“अब ये भी क्या मुझे बताना पड़ेगा?” वो आंख नचाती सी बोलीं।

सुरेखा जी का दिल टूट गया…अपने समय की मैं भी ग्रेजुएट हूं…कोई अनपढ़ नहीं,फिर पढ़ाई लिखाई का इन बातों से कोई मतलब ही नहीं … हमने इन्हें जन्म दिया है, पाला पोसा है…ये खुद को समझती क्या है?विदेश से मेहमान आ रहे हैं तो हम बूढ़े बुढ़िया को कमरे में बंद कर देंगे क्या?

वो कुछ कहने को हुई कि दया शंकर जी ने उन्हें अंदर बुला लिया….”क्या गजब करती हो तुम…क्यों बुरा मान रही हो?आखिर हम पुरानी पीढ़ी के लोग इन नई पीढ़ी के साथ कहां फिट बैठते हैं…हमारे खाने,सोचने,रहने सहने सबके ढंग अलग हैं न… ।”

“तो अब बच्चे…मां बापो से ऐसा व्यवहार करेंगे…दोनो की सोच में अंतर तो पहले भी होते थे पर क्या ये सुलूक करते थे हम लोग अपने बुजुर्गो से?” वो रोने लगी थीं।

“क्यों दिल छोटा करती हो …तुम्हीं तो हमेशा मुझे समझाती हो,आज खुद..  …।”

उस दिन शाम को घर में बहुत चहल पहल थी,सुनील और रीना दोनों टाइम पर आ गए थे,उनकी हंसने बोलने की आवाजे आ रहीं थीं और दयाशंकर और सुरेखा का मन बाहर जाकर उनसे बात करने का हो रहा था।मन मसोस कर दोनो बिल्कुल चुपचाप थे।

थोड़ी देर में बाहर से खाने की खुशबू फैलने लगी और दयाशंकर परेशान हो उठे …

“मुझे भूख लग रही है,जाओ मेरा खाना लाओ…” उन्होंने पत्नी को आदेश दिया।

“नहीं,अभी नहीं…डरी हुई वो बोलीं…बहु ने मना किया था अभी…बिगड़ जायेंगे वो दोनो हमे वहां देखकर…थोड़ी देर भूखे नहीं रह सकते आप?”वो उन्हें डांटने लगी थी।

“ये खाने की महक मुझे मार डालेगी…मुझसे यहां नहीं रहा जा रहा….क्या मुसीबत है!सारी जिंदगी कमाया…इस लडके की छोटी छोटी डिमांड पूरी करने के लिए क्या नहीं किया मैंने…कितने गलत ढंग से पैसे भी कमाए पर इसने क्या किया?मेरे सारे पैसे पर कुंडली मार कर बैठ गया, हमें कैद कर दिया हमेशा के लिए…।”

तभी विजय के दोस्त को शायद कुछ आभास हुआ कि कमरे से कुछ आवाज़ आ रही हैं….।

“वहां कौन है?कोई है क्या उस कमरे में…”सुनील ने कहा तो विजय सकपका गया।

“वो ओल्ड पेरेंट्स हैं…बीमार थे,उन्होंने  आप सबसे देर रात तक बैठने,मिलने से मना कर दिया तो खा पीकर सो गए थे शायद….शुभी देखो…उन्हें क्या चाहिए?” उसने अपनी पत्नी से कहा।

“नहीं,हम भी मिलेंगे उनसे…अगर वो

जाग रहे हैं तो….” सुनील और रीना बच्चो से मचल गए।

थोड़ी ही देर में,वो कमरे में आ गए…दया शंकर और सुरेखा थोड़ा डर गए थे कि अब बहु बेटे जी नाराजगी सहनी पड़ेगी…।

सुरेखा कहने लगीं…”विजय बेटा ,गुस्सा मत होना,तेरे पिताजी को बहुत तेज भूख लगी थी,इन्हें एसिडिटी होने लगी थी,इसलिए आवाज़ हो गई जरा….”

“क्या??आपने अभी खाना नहीं खाया?”सुनील चौंका ,उसने पलट कर विजय को प्रश्नात्मक नजर से देखा।

अगले ही मिनट वो सब समझ गया था…”ओह!तो ये बात है…. हाउ मीन!तुम अपने बुजुर्ग मां बाप को इस तरह सता रहे हो….डिसापोइंटिंग…”

तभी आरव जल्दी से एक थाली लगाकर लाया और दादा दादी को अपने हाथों से खिलाने लगा।

विजय को भी अपनी गलती महसूस हो रही थी।उसे लगा कि सुनील विदेश में रहकर भी अपने भारतीय संस्कार नहीं भूला और एक वो है जो चंद अंग्रेजी शब्द बोलकर,अपनी पत्नी को वहां की संस्कृति के अनुसार छोटे कपड़े पहना कर खुद को सभ्य और आधुनिक सिद्ध करता रहता है।कितना गिर गया था वो…जिस तरह उसका बेटा आरव दादा दादी से प्यार करता है और उन लोगों से दूर होता जा रहा है,इस बात की क्या गारंटी है कि कल को वो उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार न करे जो अपने वृद्ध मां बाप के साथ कर रहे हैं।

उसने अपनी मां और पिता जी से माफी मांगी… मैं भटक गया था पिताजी,मुझे माफ कर दें…आज सुनील ने मेरी आंखे खोल दीं…अब आपको कभी मुझसे कोई शिकायत न होगी।

वो मुस्कराने लगे थे और कृतज्ञता से सुनील और उसकी पत्नी रीना को देखने लगे।

समाप्त

#उपेक्षा

डॉ संगीता अग्रवाल

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