थोड़े से इंसान बने रहिए – लतिका श्रीवास्तव

….ट्रेन की रफ्तार और कानों में लगे ईयर फोन पर म्यूजिक की रफ्तार …. आहा लगता है मानो जिंदगी यही है बस यहीं थम जाए….सच में यात्रा करने में एक सुख तो यही मिल जाता है  ऑफिस जाने तैयार होने मेट्रो पकड़ने का कोई टेंशन नहीं …आराम से आराम ही करते रहो…!

आकाश बहुत मगन था अपने ही खयालों में कि यकायक लगा कोई उसकी बेडशीट पकड़ के खींच रहा है …उसकी लोअर सीट थी।… सिमी ट्रेन में भी आ गई मेरी नींद खराब करने.!!अपनी पत्नी को याद करते हुए  झुंझलाते हुए अपने ईयर फोन को बहुत दुखी हृदय से थोड़ा सा हटाते हुए सुनने की कोशिश की तो समझ में आया कि मैं घर में नहीं ट्रेन में हूं और कोई सहयात्री मुझे उठाने की कोशिश कर रहा है…!

“क्या है कौन है बोलते हुए बहुत अनिच्छा और बेरुखी दिखाते हुए आकाश ने पूछा तो पाया एक बुज़ुर्ग हैं और कुछ कहना चाह रहे हैं…अंदर की इंसानियत थोड़ी सी जाग उठी उसने ईयर फोन पूरी तरह निकाल सीट पर बैठते हुए उनसे विनम्र स्वर में पूछ लिया “…क्या बात है कुछ कहना चाह रहे हैं क्या आप मुझसे बताइए..!”

मेरी आवाज सुन कर ही मानो उन्हें सुकून सा मिल गया था”..अरे बेटा भगवान तुम्हें सुखी रखे तुमने मेरी तरफ ध्यान तो दिया मैं तो इस पूरी बोगी में लगभग सभी के पास गया पर किसी के पास मेरी बात सुनने का भी समय नहीं है जाने यहां ट्रेन में भी किस काम में सब व्यस्त हैं…!काफी दयाद्र स्वर में बोल उठे थे वो।

किसी ने ध्यान नहीं दिया सुनकर मुझे अचानक एहसास हुआ मैं ही बेवकूफ हूं जो ध्यान दे रहा हूं ट्रेन में किसी की तरफ ध्यान देना ही नहीं चाहिए दोस्त हमेशा समझाते हैं ज्यादा किसी पर ध्यान नहीं देना और खुदा ना खास्ता ध्यान देना भी पड़ जाए तो किसी की बातों पर तो बिलकुल यकीन नहीं करना।

लेकिन अब तो मैं गलती कर ही चुका था उनकी तरफ ध्यान देने की इसलिए बहुत ही अनमने मन से उन्हें लगभग टालने  वाले अंदाज में मैं उनकी बातें सुनने को विवश था।

वो बोल रहे थे

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बेटा मेरी बर्थ ऊपर मिली है मुझे चढ़ने में भी बहुत ज्यादा दिक्कत होती है …बस इतना सुनते ही मैं समझ गया मेरी लोअर बर्थ हथियाने का तरीका ढूंढ रहे हैं।इस बार बहुत लंबे समय के बाद नीचे की बर्थ मिल पाई थी बहुत पहले ही आरक्षण करवाया था शायद इसीलिए।नीचे की बर्थ मिलना मेरे लिए उसी तरह थी जैसे भीषण गर्मी की तपन में एक गिलास ठंडी ठंडी लस्सी।

अब इनको देख लो …इतनी बेशकीमती मेरी लस्सी के ही पीछे लग गए….अपने भावनात्मक और नैतिक दबाव के झटकों को तत्काल परे झटकते हुए मैने “….अरे तो सफर करते ही क्यों हैं घर पर रहिए आराम से शौक भी तो पूरे करने रहते हैं आप लोगों को अब घर से बाहर निकलेंगे तो ये सब दिक्कतें तो आएंगी ही .. फिर अकेले ही घूमने निकल पड़े हैं…किसी से घर में आपकी बनती भी नहीं होगी अपने अनुसार जीने की आदत जो है आपकी तो जाइए जो सीट आपको मिली है उसी में गुजारा कीजिए …

.ट्रेन से भी तेज रफ्तार से मैने उन पर गुबार निकाला तो वो फिर असहाय भाव से कह उठे…” सुनो तो बेटा मैं ऊपर की सीट से जाने कैसे नीचे गिर पड़ता हूं इसीलिए डर रहा हूं कहीं नींद में ऊपर से गिर ना पड़ूं!!

वाह ऐसे कैसे गिर पड़ेंगे…इतने बड़े है आप…. फिर सीट में ये पकड़ने का और नही गिरने के लिए ये बना तो है  …और कोई कारण आपको नहीं मिला मुझे सीट हथियाने का!! मुझे भी दिक्कत होती है ऊपर चढ़ने में मैं अपनी सीट बिलकुल नहीं बदल सकता …आप कृपा करके और किसी से अपनी मांग पूरी करवाइए कहते हुए मैंने उन्हें और उनकी बातों को हटाते हुए फिर से अपने ईयर फोन लगा लिए और अपने आनंद में मगन हो गया।

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कुछ देर तक वो मेरे पास ही खड़े रहे …आस लगाए थे कि अंततः मैं परहित सरिस धरम नही भाई ..”पर अमल कर  लूंगा …पर मैं भी प्रतिबद्ध था इस बार इनके चक्कर में फंसना ही नहीं है बहुत त्याग भावना दिखाने की जरूरत नहीं है ये ट्रेन है कोई हमारा परिचित नहीं है जो एहसान मानता रहेगा…सोचते हुए मैं उनकी तरफ करवट कर ली और आंखें बंद कर सोने का अभिनय करने लगा ताकि वो मेरे सिर पर ना खड़े रहें…!

थोड़ी देर में मैंने देखा वो अपनी अपर बर्थ के पास विवश से  खड़े हैं….बहुत अजीब इंसान हैं ये भी आकाश सोच रहा था इन्हें तो पहले से ही पता था कि इनकी सीट ऊपर वाली ही है फिर भी दूसरों के मत्थे थे कि कोई एक्सचेंज कर लेगा!!अगर इतनी ही दिक्कत थी तो यात्रा रद्द कर देनी थी…जब घर के लोग ही ऐसे बुजुर्गो का ध्यान नहीं रखते तो मुझे क्या पड़ी है कुएं में कूद कर इनकी जान बचाने की जाएं अपना निपटें..!मैंने भी अपने अंदर की सहायता को  आवाज को अपने तर्कों से सांत्वना देने की पूरी कोशिश कर ली।

तभी मैंने देखा टी टी आया और वो तुरंत उसके पास जाकर अपनी ऊपर की सीट दिखाकर फिर मुझे दिखा कर उससे कुछ आग्रह कर रहे हैं..”……लो ये तो मेरे पीछे ही पड़ गए थोड़ा सा ध्यान क्या दे दिया गले पड़ने लग गए…इसीलिए ध्यान ही नहीं देना चाहिए…मन ही मन कुढ़ते हुए आकाश सोच ही रहा था कि टी टी को अपने पास आकर कुछ कहते हुए देख उसने चिढ़ते हुए फिर से ईयर फोन निकाले !

“आप इनकी परेशानी समझिए आपको क्या दिक्कत है अभी आप युवा है ऊपर की बर्थ ले लीजिए आराम से सोते रहिएगा नीचे की बर्थ में तो बहुत डिस्टरबेंस होता रहता है फिर ये बुजुर्ग भी हैं अपने सहयात्रियों का सहयोग करना चाहिए…. टी टी बिना रुके मुझे इंसानियत का पाठ ऐसे पढ़ा रहा था था जैसे पूरी ट्रेन में मेरी ही जिम्मेदारी बनती थी बुजुर्गो की सहयता करने की बाकी लोग तो इस काबिल ही नहीं थे या मैंने इन बुजुर्ग का कोई कर्जा खाया हो ..!!

देखिए श्रीमान जी अच्छी जबरदस्ती है आपकी जब मैने एक बार मना कर दिया मुझे अपनी सीट नहीं बदलना तो फिर बार बार दबाव क्यों बना रहे हैं ऐसा लग रहा है मानो अपनी ही सीट की दावेदारी करके मैं कोई अपराध कर रहा हूं…अबकी क्रोध से मैने कहा तो टी टी भी सकते में आ गया और विवश सा उन बुजुर्ग के पास लौट गया था।

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रात काफी हो गई थी मेरा ध्यान ना चाहते हुए भी बुजुर्ग की तरफ चला जाता था क्योंकि वो ऊपर जा ही नहीं रहे थे…नींद आयेगी तो जायेंगे ही …ऐसे कैसे गिर जायेंगे ….मुझे क्या करना है और लोग भी तो है आस पास जब कोई नहीं देख रहा समझ रहा है तो मेरी भी क्या गरज!! तटस्थ रहने के दृढ़ संकल्प के बावजूद  आकाश की नैतिकता उसे इस तटस्थ व्यवहार के लिए कचोटने लग गई थी ।

यही सब सोचते वो कब गहरी नींद में चला गया उसे पता ही नहीं चला …!!

अचानक जोरो की आवाज से आकाश की नींद खुल गई थी   उसका ध्यान उन्हीं बुजुर्ग की तरफ ही चला गया था …”उसने देखा वो ऊपर की बर्थ से नीचे गिर पड़े हैं दोनों बर्थ के बीच में उसकी आंखों के ठीक सामने वो वयोवृद्ध व्यक्ति निष्प्राण औंधा पड़ा था …आकाश की तो मानो सांसे ही रुक गईं थीं…क्या हुआ आपको आप ठीक तो हैं ना जोर की चीख उसके मुंह से निकल पड़ी थी।

“……….हां हां बेटा मैं ठीक हूं तुम्हें क्या हो गया कोई बुरा स्वप्न देख लिया क्या!!मेरा बेटा भी ऐसा ही है बहुत स्वप्न देखता है मेरी बहुत चिंता करता है …पर क्या करे उसका एक्सीडेंट हो गया है वो हॉस्पिटल में पड़ा है उसको देखने उससे मिलने मैं जा रहा हूं ईश्वर उसे मेरी उमर बख्श दे…कहते हुए …अपने अशक्त हाथों में  भी और अपनी आंखों में भी पानी लिए  वो बुजुर्ग मेरे सामने सही सलामत खड़े थे ये सत्य जानते ही आकाश की सांसे वापिस सी आ गईं थी वो तत्काल उठ कर बैठ गया था।

आप आइए यहां मेरे पास बैठिए … हां अच्छा ही है कि मैं एक स्वप्न ही देख रहा था ईश्वर उस स्वप्न के माध्यम से मुझे एक सही काम करने को प्रेरित कर रहे थे ताकि आगे कभी अपनी जिंदगी में पलट कर कभी इस घटना को सोचूं तो मुझे अपने किए का कोई पछतावा ना हो….आकाश को इतना सुकून भरी खुशी जिंदगी में कभी महसूस नहीं हुई थी।

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आपका बेटा बिलकुल अच्छा हो जायेगा आप चिंता मत करिए आराम से लेटिए …आप सो जाइए बहुत देर से आप परेशान हैं खड़े हैं… मैं हूं ना आपका एक और बेटा ….. सुबह आपको उठा दूंगा और सामान भी उतरवा दूंगा…. मैंने अपनी नीचे वाली बर्थ में उनके लिए बेडशीट बिछाते हुए कहा तो उन्होंने झट से मुझे गले से लगा लिया ईश्वर तुम्हें सुखी रखें बेटा…खूब तरक्की करो…मेरे कारण तुम्हे परेशानी हो रही है ….ईश्वर तुम्हारी सब परेशानियां दूर करें….

वो आशीर्वादो की झड़ी लगा रहे थे सिर्फ एक बर्थ की खातिर वो भी बदले में एक बर्थ देकर।

और मैं अपने आपको लानत भेजते हुए ईश्वर को कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था कि सही समय पर मुझे जगा दिया अनैतिकता की नींद से और एक गुनाह करने के जिंदगी भर के पछतावे से मुझे बचा लिया।

दोस्तों ये बात सच है कि आज इस व्यक्तिवादी समाज में कई बार दूसरो की देख देखी में और अपने निजी सुख और आनंद की पूर्ति हेतु हम भी अपनी आत्मा की आवाज को दबाते रहे हैं सार्वजनिक स्थानों पर या कहीं भी किसी की भी सहायता नहीं करने के कई सारे बहाने गढ़ कर अपने आपको सही साबित करते रहते हैं।

आपकी जिंदगी है …सब कुछ करिए पर थोड़े से इंसान भी बने रहिए ताकि आपको ऐसी किसी भी बात का पछतावा ना करना पड़ा जिसके लिए आप और किसी को नहीं खुद अपने आपको जवाब ना दे पाएं।

#पछतावा

लतिका श्रीवास्तव

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