” दीपा…! तू यहाँ कैसे? तेरे मियाँ जी का ट्रांसफर हो गया है क्या?” शाॅपिंग माॅल में अचानक अपनी पुरानी सहेली को देखकर नेहा खुशी-से उछल पड़ी।
” आं…हाँ…, कुछ ऐसा ही समझ ले।” दीपा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया।
” वाह यार! माथे पर लाल बिंदी, माँग में सिंदूर,गले में मंगलसूत्र और हाथों में खनखनाती हरे रंग की चूड़ियाँ, कितनी प्यारी लग रही है तू।चल,बैठकर कॉफ़ी पीते हैं और बातें भी…”
” नहीं नेहा, फिर कभी।अभी मुझे बेटे को लेने उसके स्कूल जाना है।” घड़ी देखते हुए दीपा बोली तो नेहा बोली, ” चल कोई ना, अपना फ़ोन नंबर दे।” फिर दोनों एक-दूसरे को अपने फ़ोन नंबर देकर अपने-अपने रास्ते चलीं गईं।
नेहा और दीपा बचपन की सहेलियाँ थीं।स्कूल की पढ़ाई दोनों ने एक साथ पूरी की,फिर काॅलेज़ में भी दोनों ने एक ही विषय ‘गृह विज्ञान’ लिया।दोनों साथ मिलकर ही अपने प्रक्टिकल करतीं और खाली समय में काॅलेज़ की कैंटिन में एक साथ ही चाय पीते हुए खूब बातें करतीं।फ़ाइनल की परीक्षा से पहले दोनों को ही अलग होने का बहुत दुख हो रहा था,तब दोनों ने एक-दूसरे को पत्र लिखने और फ़ोन करते रहने का वादा किया था।
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शादी के बाद दोनों अपने-अपने ससुराल चलीं गईं।दोनों के बीच पत्र लिखने और फ़ोन करने का सिलसिला एक वर्ष तक चला,फिर धीरे-धीरे कम और बंद हो गया।एक ही शहर में मायका होने के बावज़ूद भी दोनों का मिलना नहीं हो सका क्योंकि जब दीपा आती तब नेहा नहीं आ पाती थी और जब नेहा आती तो दीपा के पति को छुट्टी नहीं मिल पाती।इसीलिए आज जब नेहा ने बरसों बाद दीपा को अपने शहर में देखा तो चौंक उठी थी।
अब दोनों सहेलियाँ फ़ोन पर खूब बातें करतीं,कभी ससुराल की तो कभी पति-बच्चों की।बचपन की यादें ताजा करके दोनों खूब हँसतीं।
एक दिन नेहा ने दीपा को अपने घर पर बुलाया, अपने पति से भी मिलाया।उसने दीपा को बताया कि मेरे पति बैंक में काम करते हैं,ये तो तुझे मालुम ही है। बच्चे दो हैं।बड़ी बेटी आठवीं में और छोटा बेटा तीसरी कक्षा में पढ़ रहें हैं।तब दीपा बोली कि मेरे पति का टूरिंग ज़ाॅब था।हर वक्त बाहर रहना उन्हें रास नहीं आया तो अब अपना बिजनेस करते हैं।काम के सिलसिले में इन दिनों शहर से बाहर गये हुए हैं।एक बेटा है जो चौथी कक्षा में पढ़ता है।
दीपा कई बार नेहा के घर जा चुकी थी लेकिन नेहा ने उसका घर अभी तक नहीं देखा था।एक दिन उसने पूछ लिया कि दीपा,अपने घर कब बुला रही हो तो हँसते हुए दीपा बोली, ” घर में थोड़ा रिपेयरिंग का काम चल रहा है,पूरा होते ही मैं तुम्हें बुलाती हूँ।”
इस बात को दो-तीन महीने बीत गए।जब भी नेहा दीपा से घर बुलाने को कहती तो दीपा कोई न कोई बहाना बनाकर टाल जाती।एक दिन नेहा के एक परिचित ने उसे बताया कि उसने दीपा को एक टूर-ट्रैवल के ऑफ़िस में काम करते देखा है।पहले तो नेहा ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया लेकिन जब स्वयं दीपा को ऑफ़िस में काम करते और वहाँ से निकलते देखा तो वह हैरत में पड़ गई।सोचने लगी कि दीपा ने मुझे अपने जाॅब के बारे में क्यों नहीं बताया? आखिर क्या बात हो सकती है?
अगले दिन सुबह-सुबह ही उसने दीपा को फ़ोन करके पूछ लिया कि जाॅब का क्या चक्कर है? तूने मुझे क्यों नहीं बताया? जवाब में दीपा ने उसे अपने घर का पता दिया और शाम को घर आने को कहा।
दीपा के बताए पते जब नेहा पहुँची, एक कमरे वाला छोटे-से फ़्लैट को देखकर वह दंग रह गई।उसने तो सोचा था कि दीपा का बहुत बड़ा घर होगा,गार्डन होगा और नौकर-चाकर होंगे लेकिन यहाँ तो…..।अंदर जाकर देखा तो दीपा ने न मंगलसूत्र पहना था और ना ही चूड़ियाँ।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
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दीपा ने अपने बेटे को एक तरफ़ खेलने को कहा और नेहा का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए बोली, ” आ बैठ, तेरे मन में उठ रहे सभी सवालों का ज़वाब मैं देती हूँ।तुझे याद है, मैंने तुझे पत्र में लिखा था कि टूरिंग ज़ाॅब होने के कारण मेरे पति अक्सर बाहर ही रहते हैं।”
” हाँ, याद है।तो..”
” दरअसल वो एक बहाना था।”
” बहाना था…!, क्या मतलब?” नेहा ने आश्चर्य-से पूछा तो दीपा कहने लगी, ” शादी के एक महीने बाद से ही ये(पति) मुझसे खिंचे-खिचे रहते थें।पूछने पर टाल जाते।फिर ज़ाॅब के कारण अक्सर बाहर रहना या फिर देर से घर लौटना।साथ रहते हुए भी उनका अजनबियों जैसा व्यवहार मुझे बहुत खलता था।मैंने अपनी तरफ़ से रिश्ते मधुर बनाने की बहुत कोशिश की और सफ़ल भी हुई।फिर मेरा बेटा पैदा हुआ।सब कुछ अच्छा चल रहा था,फिर न जाने क्या हुआ।उन्होंने फिर से मुझसे दूरी बनानी शुरु कर दी।बेटे को भी इग्नोर करने लगे,तब मुझे गुस्सा आया और मैंने पूछा कि आखिर बात क्या है?मुझसे कोई भूल हुई है क्या?इतनी दूरी क्यों?
तब वे बोले, “मेरा किसी के साथ अफ़ेयर है।कुछ दिनों के लिए उसने मुझसे नाराज़ होकर किनारा कर लिया था तब मेरा झुकाव तुम्हारी तरफ़ हो गया था लेकिन अब फिर से वह मेरी ज़िंदगी में आ गई है।उससे विवाह करना चाहता हूँ लेकिन तुम बाधक हो।” वह रुक गई।उसकी आँखें नम हो आईं।एक लंबी साँस लेकर बोली,” नेहा, वो तो अपनी रौ में बोलते जा रहें थें और मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन निकलती जा रही थी।मेरा अंकित ढ़ाई बरस का था।मैं सबकुछ कैसे….।उस रात मैं फूट-फूटकर रोई।अगली सुबह मैंने पूछा कि अब आप चाहते क्या हैं?उन्होंने तपाक-से कह दिया कि आपसी रज़ामंदी से तलाक हो जाए तो..।
मैंने हामी भर दी।झूठे रिश्तों को आखिर कब तक ढ़ोती।साल भर के अंदर ही तलाक हो गया।मम्मी-पापा रहें नहीं, उस समय तो भाई का घर ही मेरा आश्रय था।अंकित की परवरिश के लिए कोर्ट द्वारा तय की गई एक निश्चित रकम हर महीने मेरे अकाउंट में आ जाती थी जिससे गाड़ी चल रही थी।
कुछ महीनों के बाद भाभी के तेवर बदलने लगे,मेरा किसी से बात करना उन्हें खलने लगा।उनके पड़ोसियों को भी लगता कि जैसे मैं उनके पतियों पर डोरे डाल रही हूँ।फिर एक दिन भाभी ने भईया से कह दिया कि इसके लच्छन ठीक नहीं दिखते।हमारी नाक तो….।आगे मैंने कुछ नहीं सुना और उसी रात भईया के नाम एक चिट्ठी छोड़कर यहाँ चली आई।सोचा,नये शहर में नये तरीके से जीने का प्रयास करुँगी पर अपना सोचा हुआ कब पूरा होता है।” वह चुप हो गई।नेहा की जिज्ञासा तो अभी भी बनी हुई थी, पूछी, ” तो फिर..?”
दीपा हल्के-से मुस्कुराई, बोली, ” किराये का घर ढूँढने निकली तो सौ सवालों का सामना पहले करना पड़ा,पति का नाम, क्यों छोड़ दिया?,वगैरह-वगैलह।बड़ी मुश्किल से सिर छिपाने के लिए एक छत मिली, अंकित स्कूल जाने लगा।उसके जाने के बाद मैं बोर होने लगी तो मैंने कंप्यूटर क्लास ज्वाइन कर लिया।लेकिन नेहा… छोड़ी हुई औरत को आज भी हमारा समाज तिरस्कार की दृष्टि से ही देखता है।महिलाएँ उसे देखकर दस तरह की बातें करती हैं और पुरुष उसे अपनी जागीर समझने लगते हैं।कितनी ही घूरती नज़रों से मैंने खुद को कैसे बचाया है,ये तो मैं ही जानती हूँ।
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कंप्यूटर कोर्स करते-करते ही मैंने ज़ाॅब के लिये भी कई जगहों पर आवेदन दे दिये थें।फिर ट्रैवल वाले ज़ाॅब को मैंने ओके कर लिया और इस घर में आ गई।यहाँ से बेटे का स्कूल और मेरा ऑफ़िस नज़दीक है।”
नेहा की आँखों में अभी भी एक प्रश्न था जो वह दीपा से पूछने वाली थी कि तभी दीपा ने कहा,” चल काॅफ़ी पी, ठंडी हो रही है।तेरे आखिरी प्रश्न का ज़वाब अब देती हूँ।इतने धक्के खाने के बाद एक बात तो मुझे समझ आ गई थी कि शादीशुदा स्त्री ही समाज में सम्मान पूर्वक जीवन जी सकती है।बस उसी दिन से मैंने अपना गेटअप चेंज कर लिया।माथे पर बड़ी-सी बिंदी,माँग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र और हाथों में चूड़ियाँ देखकर तो मुझे घर आसानी से मिल गया और ऑफ़िस में भी मिसेज दीपा कहकर सम्मान दिया जाने लगा।प्रश्नों के उत्तर में मैं वही कहती हूँ जो शाॅपिंग माॅल में तुमसे कहा था।नेहा, विवाहिता होने का दिखावा करना मेरा शौक नहीं, मेरी मजबूरी है।अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए ही मुझे बिंदी-सिंदूर लगाकर विवाहिता होने का दिखावा करना पड़ रहा है,वरना तो… “
” और बेटे के स्कूल में….?” नेहा ने पूछा।
” प्रिसिंपल साहिबा को सच मालूम है और वो मेरे इस दिखावे को स्वीकार भी करती हैं।रही बात बेटे की,तो वो समय के साथ समझ जायेगा।अंकित बड़ा होगा तो मैं भी बूढ़ी हो जाऊँगी,तब मुझे यह सब…..।” दीपा की आँखों में एक हल्की-सी चमक थी पर ओंठों पर एक फ़ीकी मुस्कुराहट।
माफ़ी माँगते हुए नेहा बोली, ” साॅरी दीपा,थोड़ी देर के लिए तो मैंने तेरे बारे में न जाने क्या-क्या सोच लिया था।यह तो सच है कि तलाकशुदा या विधवा स्त्रियों का समाज में जीना बहुत मुश्किल होता है।रही बात दिखावे की, वो तो सभी करते हैं।एक पिता अपने बेटे के ऐब को छिपाने के लिए उसकी झूठी प्रशंसा करने का दिखावा करता है तो एक पत्नी अपने पति की झूठी बड़ाई करके उसकी गलतियों पर परदा डालती है।पर तू जो दिखावा कर रही है दीपा,उसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए।तुझे सैल्यूट!,चलती हूँ..।” तभी अंकित आकर उससे लिपट गया,बोला, ” नेहा मौसी, फिर कब आओगी?” सुनकर उसका मन भर आया।उसे चाॅकलेट देती हुई बोली, ” जल्दी ही अंकित।” और दोनों को ‘बाय’ कहकर वह बाहर निकल गई।
#दिखावा विभा गुप्ता
स्वरचित
यह सच है कि अपनी झूठी शान दिखाने के लिए लोग बढ़-चढ़कर बोलते हैं,अनाप-शनाप खर्च करके दिखावा करते हैं परन्तु कभी-कभी महिलाओं को अपनी आत्मरक्षा के लिए भी कुछ दिखावा करना जरूरी हो जाता है जैसे कि दीपा को करना पड़ा।