बेटियां – गीता वाधवानी

सुबह जब कांता देवी सो कर उठी, तब उसके एक कान में बेहद दर्द हो रहा था। उसने सोचा कि शायद नहाते समय कान में पानी चला गया होगा, इसलिए उसने सरसों का तेल हल्का सा गर्म करके कान में डाला, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। धीरे-धीरे दर्द बहुत ज्यादा बढ़ गया तब उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा। डॉक्टर ने चेकअप करके कहा -” शायद कान के अंदर कोई दाना हो गया है। मैं दवाई लिख कर देता हूं 2 दिन के बाद फिर से दिखाइएगा।” 

दवाई खाने के बाद भी दर्द में कोई आराम नहीं आया बल्कि पेट का दर्द भी शुरू हो गया। कांता जी अपने पति के साथ दोबारा डॉक्टर के पास गई और अपना हाल बताया। डॉक्टर से उन्होंने कहा-“मुझे पेट दर्द और कान का दर्द तो है ही, साथ ही मुझे पिछले कई दिनों से भूख भी नहीं लग रही है।” 

डॉक्टर ने उन्हें एक परीक्षण लिख कर दिया और कहा कि इसे जल्द से जल्द करवा लेना। एक हफ्ते बाद कांता जी का कान का दर्द ठीक हो गया। उन्होंने अपना परीक्षण करवाया। उसकी रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने उन्हें बताया-“आपके लीवर में छोटी-छोटी कई  गांठे बन गई है इसीलिए अब आपको एक और टैस्ट करवाना पड़ेगा।।” 

कांता जी ने पूछा-“डॉक्टर साहब क्या कोई गंभीर बात है?” 

डॉक्टर ने कहा-“अभी कुछ नहीं कह सकते।” 

कांता जी ने टैस्ट करवाया। डॉक्टर ने रिपोर्ट देखकर बताया-“आपके लिवर में कैंसर हो चुका है, थर्ड स्टेज है।”कांता देवी और उसके पति के पैरों के नीचे से मानों जमीन ही निकल गई। 

कांता जी दोनों बेटियों का विवाह कर चुकी थी। पति बहुत बूढ़े हो चुके थे उन्हें यह चिंता सता रही थी कि अगर मैं मर गई तो मेरे पति की देखभाल कौन करेगा?  

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जब कांता जी परीक्षण करवाने के लिए जा रही थी तभी से लेकर उनकी दोनों विवाहित बेटियां ममता और विनीता और उनके पति यानी कि कांता जी के दोनों दामाद उनका पूरा साथ निभा रहे थे। इस गंभीर बीमारी के बारे में सुनकर दोनों बेटियों ने अपनी मां से कहा-“आप तुरंत अपना इलाज शुरू करवाओ, हम दोनों आपके साथ हैं और आपके दामाद भी आपके साथ हैं। आप बिल्कुल चिंता मत करो ,आप ठीक हो जाओगे। हम दोनों बारी बारी से आपके पास रहने आएंगे और आपको डॉक्टर के पास ले चलेंगे। हम आपकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं और आपको बिल्कुल ठीक करके ही हम चैन की सांस लेंगे। पापा की भी आप बिल्कुल चिंता मत करो।” 

उसके बाद उनकी बड़ी बेटी ममता अपने दोनों बच्चों को ससुराल में सास के पास छोड़कर कांता जी के पास 15 दिन रहने के लिए आई और उन्हें समय पर दवाइयां देना, कीमोथेरेपी करवाना, दवाइयों के कारण शुगर बढ़ जाने पर उसे चेक करना, माता पिता के लिए खाना बनाना सारी जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली। 

कीमोथेरेपी करवाने के चार-पांच दिन बाद तक कांता जी के शरीर में बिल्कुल ताकत नहीं रहती थी ।उसके बाद वह खुद को अच्छा महसूस करती थी। उन्हें अच्छा महसूस करता हुआ देखकर ममता अपनी ससुराल वापस चली जाती थी और फिर छोटी बहन विनीता कांता जी के पास रहने आ जाती थी। इसी तरह समय बीतता रहा और बेटियां अपनी जिम्मेदारी निभाती रही और इस मुश्किल घड़ी में दोनों के पतियों ने और उनकी ससुराल वालों ने भी पूरा साथ दिया। 

पूरी नौ कीमोथेरेपी करवाने के बाद कांता जी पूरी तरह से स्वस्थ हो गई। अब उन्हें खुलकर भूख भी लग रही थी और लीवर की गांठे समाप्त हो गई थी। 

अब उन्हें उनकी बेटियां डॉक्टर के कहे अनुसार हर महीने 7 दिन की दवाई दिलवाने के लिए डॉक्टर के पास ले जाती हैं और अब भी उनका पूरा ख्याल रखती हैं। ये हैं हमारी बेटियां। 

#जिम्मेदारी 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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