दिल की कील – ज्योति व्यास

ननद रानी आज भात रखने आई है।बड़े बेटे की शादी है यानी परिवार में इस पीढ़ी की पहली शादी ।धीरे से एक लिस्ट भी दे गई कपड़ों और गहनों की  भात में रखने की!

बेचारे भाई -भाभी !स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी  लिस्ट में दिए गए कपड़ों ,गहनों की व्यवस्था कर शादी में खुशी खुशी पहुँच गए।

आज मंडप  में भात पहना दिया।।ननद रानी सहित घर के सभी लोग बहुत खुश थे इतना सामान पा कर।

लेकिन जैसे देव की वैसी ही पूजा होती है।सभी मेहमानों के लिए विशेष कमरों की व्यवस्था थी भाई -भाभी को छोड़कर!किन्तु कोई शिकायत नहीं थी ।अपनी बहन के घर में नखरे दिखाता है कोई?यह सोचकर दोनों चुप थे

शाम को बारात लगने में देर थी सो वे दोनों पास ही के प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने चले गए।


लौटने पर ननद रानी के देवर ने सब मेहमानों के सामने अपमान की शरशैय्या पर आखिरी तीर मारा यह कहते हुए,

‘ भाईसाहब ,क्या पिकनिक पर आए हो ?चलिए

पिकनिक ही मना लीजिए।’

भरे आंसुओं के साथ अपमान का घूँट पीकर बिना एक दाना मुँह में डाले वहाँ से निकल आए।

रोम रोम दर्द से कांप रहा था !आखिर कहां कमी रह गई?

दो दिन बाद ननद रानी सफ़ाई और ससुरालियों के नाम की दुहाई देते हुए देवर की तरफ से माफ़ी मांग कर चली गई।


अब किसी भी अवसर पर उनके यहाँ न जाने के निश्चय पर  ननद रानी का कहना होता है

‘हमने माफ़ी मांग  ली न! बात खत्म ।’

लेकिन जिस का दिल टूटा है उससे पूछो।

क्या वो आपको माफ़ कर पाए ?

‘दीवार में से कील निकाल देने के बाद छेद तो रह जाता है न!’

ज्योति व्यास

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!