“भाभी ये लो फोन मम्मी को कुश को दिखा दो।” कहते हुए ननद नित्या ने फ़ोन राशि की तरफ़ घुमा दिया
“ अरे बहू से क्या खिला रही है मेरे राजकुमार को… अरे कुछ अच्छा बना कर खिलाया कर.. ये नहीं जरा कुछ घर में पका कर बनाले..जब देखो ये मार्केट की चीजें ले आती है.. देखो मेरा लाल कितना दुबला हो गया है ।”सुनंदा जी ग़ुस्सा करते हुए बोली
“ माँ कुश ये मन से खा लेता है फिर ये सब प्रोडक्टस बने ही बच्चों के लिए होते हैं… मैं लाख दाल पानी खिला दूँ नहीं खाता और तो औरजो आपने सेब उबाल कर मैश कर देने को कहा जब दिया तो सारा उल्टी कर दिया .. इसलिए निकुंज ने भी कह दिया जो मन से खाता हैवही खिलाया करो।” राशि चम्मच से कुश के मुँह में खाना डालते हुए बोली
सुनंदा जी हर दिन फोन लगा देती और घंटो कुश को देखने और प्यार जताने में लगी रहती और साथ ही साथ राशि को सैकड़ों हिदायतेंदेती रहती।
एक दिन सुबह सुबह ही सुनंदा जी का फोन आ गया नित्या कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी वो फ़ोन राशि को देकर तैयार होनेचली गई….
राशि रसोई में सुबह का नाश्ता और टिफ़िन तैयार करने में व्यस्त थी।
“ ये क्या बना रही है बहू… अरे अच्छी तरह से सब्ज़ी पराठे बना कर दिया कर मेरे बच्चों को.. अपने बच्चे की तरह ही कुछ भी खिलातीरहती है..अब क्या पोहा खाकर जाएँगे मेरे बच्चे?” सुनंदा जी ने राशि को पोहा बनाते देख बोला
राशि कुछ नहीं बोली ग़ुस्सा भी आया पर वो सुबह सुबह अपना मूड ख़राब करना नहीं चाहती थी.. लगभग घंटे भर हिदायतें देती रही
निकुंज और नित्या के जाने के बाद वो कुश को खिला कर थोड़ा आराम ही करने जा रही थी कि कॉल बेल बज उठा
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“ अभी 11बजे कौन आया होगा?” कुश को गोद में लिए जैसे ही दरवाज़ा खोला सामने अपने बचपन की दोस्त को देख हैरान रह गई
जो किसी शादी में शरीक होने इस शहर आई तो जाने से पहले राशि को मिलने आ गई थी
“ अरे काव्या तुम .. आओ आओ।” राशि ने खुले दिल से उसका स्वागत किया
चाय नाश्ता के दौरान काव्या राशि की रसोई की व्यवस्था देख आश्चर्य कर रही थी…घर भी सलीके से सजा हुआ था
“ यार मैं तो बेटे के साथ इतना कुछ कर ही नहीं पाऊँ.. वो तो कभी ना कभी उसकी नानी तो कभी दादी आती रहती है सँभालने को..अभीभी मैं आई हूँ तो कान्हा दादी के पास ही है ।” काव्या ने कहा
“ पर तू ये बता इतना कैसे मैनेज कर लेती है ?” काव्या ने आश्चर्य से राशि से पूछा
सुन कर राशि हँसने लगी
“ मेरे घर में सीसी टीवी लगा हुआ है जिसका स्क्रीन मेरी सासु माँ के पास है…।” राशि ने मायूस हो कहा
“ मतलब..?” काव्या आश्चर्य से पूछी
“ यार क्या बताऊँ.. मेरी सासु माँ क़स्बे में रहती है.. जहाँ ससुर जी की परचून की दुकान है …वो यहाँ आ नहीं सकती पर उनके दो बच्चेमेरे पास रहते हैं मतलब मेरा पति और मेरी ननद… ननद यहाँ कॉलेज में दाख़िला लेकर हमारे साथ ही रहती है…पहले तो एक देवर भीयही रहते थे अब उनकी नौकरी लग गई तो वो यहाँ से चले गए हैं… मेरी सासु माँ को जरा भी चैन नहीं है पहले वो मैं क्या करती नहींकरती देवर को फोन कर पूछती रहती थी… घंटो विडियो कॉल कर हिदायतें देती रहती थी… बेटों को ये पसंद है ये बना कर दिया कर… मेरी प्रेगनेंसी के दौरान मुझे क्या करना चाहिए नहीं करना चाहिए कहती रहती..
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जरा कुछ मन का खाने बैठ जाती और उन्हें दिख गयाफिर तो पूछो ही मत…अब हालात ये हैं कि मैं कुश के लिए उसकी पसंद का खिलाती उसपर भी टीका टिप्पणी करती रहती… मुझे कभीकॉल नहीं करती पर पति, और देवर को फोन लगा कर मुझसे बात करती थी …अब ननद को फोन कर कहती कुश को देखना है औरफिर कहना कि कितना दुबला है मेरा बाबू… लगता मम्मी ठीक से खिलाती नही… और तो और उनके बच्चों की फ़रमाइश भी पूरी करनेको कहती और बहाने से यहाँ की एक एक चीज पर नजर रखती …मैं सच में उनकी इस आदत सो थक गई हूँ ।” राशि ने हताश हो कहा
“ ये तो वाक़ई अजीब बात है… तू कहती क्यों नहीं आप ही आकर यहाँ अपने बच्चों को सँभालो… तो मैं अपने बच्चे को अच्छे से खिलापिला कर मोटा कर दूँगी…ये तेरी ननद बोर नहीं होती हर दिन अपनी माँ से बात कर ?” काव्या ने पूछा
“ होती होगी तभी तो फोन मेरे पास छोड़ जाती कुश किसी के साथ रहता नहीं तो वो कहती दादी पोते को देखना चाहती उसे दिखाने केबहाने फोन रख फ़्री हो जाती।” राशि ने कहा
“ राशि अब जो तेरी ननद सास का फोन लेकर आए तू कह दिया कर आप ही दिखा दो और तू काम की व्यस्तता जता दिया कर…नहींतो कह दे जब तू फ्री होगी फोन कर लेगी… जब तक तू कुछ बोलेंगी नहीं वो ऐसे ही करती रहेंगी.. ।” काव्या ने समझाते हुए कहा
कुछ देर बातचीत के बाद काव्या चली गई
“अब से सच में मुझे ऐसा ही कुछ करना होगा… सच में कभी कभी दोस्त भी सलाह अच्छी दे जाते हैं…” सोचते हुए राशि खुद ही मुस्कुरादी
रात को फिर जब ननद के फ़ोन पर सासु माँ का फ़ोन आया राशि ने कहा,“ नित्या आप बाबू को दिखा दीजिए.. मैं रोटियाँ सेंकने जा रहीहूँ..।“ कह राशि कुश को नित्या को थमा चल दी
अब राशि ने इसी तरह से टालना शुरू कर दिया… नित्या भी कितना फोन पर कुश को दिखाती या फिर निकुंज ही.. वो तो साफ कह देताफोन रखता हूँ माँ….देख लिया ना कुश को।
कुछ समय बाद सुनंदा जी के फोन आने कम हो गए… राशि ने भी चैन की साँस ली….
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अब बस नित्या को फोन कर सुनंदा जी हर दिन का ब्यौरा ले लेती थी… ।
दोस्तों कुछ सासु माँ सच में दूर रह कर भी बहू की गृहस्थी में दख़लंदाज़ी से परहेज़ ना करती… राशि भी इससे परेशान हो चुकी थी परकुछ सूझता नहीं था करें तो क्या करें… काव्या ने आकर एक सुझाव दिया और वो सफल भी रहा…आप ख़ाली बैठे हो सकते पर होसामने वाला.. वो भी आपकी तरह खाली हो ज़रूरी तो नहीं।
ये सोच कर ही किसी को फोन कर परेशान करें और किसी के घर का सीसी टीवी ना बनें ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
मौलिक रचना