आज शाम को जब पतिदेव के आफिस से आने पर उन्हें चाय बना कर दी तो विचार आया कि चाय पर चर्चा कर लूं। पर किस चीज पर? राजनीति पर पूरा देश कर रहा है।मी टू पर सारी दुनिया में घमासान मचा है। तो ऐसा करती हूं अपने बारे में चर्चा ठीक रहेगी। मैंने शुरू किया मेरा मन ऐसी जिंदगी से भर गया है मैं अब जीना नहीं चाहती हूं।मेरी किसी को परवाह नहीं है मैं तो फुल टाइम नौकरानी बन गई हूं।
पतिदेव बोले यार अभी मैं बहुत थक गया हूं। बाद में बात करता हूं।फ्रेश होने के बाद।अब तो मुझे बेहद गुस्सा आ गया कि यहां जिंदगी और मौत का सवाल है और तुम्हें फ्रेश होने की पड़ी है। तो वो हंस कर बोले हमारी शादी को इतने साल हो गए हैं तुम थ्योरी तो हर तीसरे दिन रिपीट करती हो ये बताओ प्रैक्टिकल कब होगा?
मैंने भी चाय का कप छीन कर एक तरफ रख दिया। कोई जरूरत नहीं है मेरी बनाई चाय पीने की अब तो मुझे शक हो रहा है कि शायद तुम चाहते हो कि मैं मर जाऊं। वो बोले हर दूसरे दिन मरना कौन चाहता है। मैं तो तुम्हारी हैल्प करना चाह रहा था।मेरी तो आंखे भर आई अच्छा आज तक तो किसी काम में कभी मदद नहीं की मरने में हैल्प करोगे।तब तक बिटिया की आवाज आई मम्मा आज खाने में पनीर बना दो ना प्लीज़।
मैंने आंसू पोंछे उसके पास गई उसका माथा चूम कर कहा ठीक है अभी बनाती हूं। खाना बनाया पतिदेव दिखाई नहीं दिए। खाना बना कर बर्तन पटक पटक कर संकेत दे दिया कि खाना बन चुका है।खाने की टेबल पर बैठ कर अपनी जहरीली मुस्कराहट फैला कर बिटिया से बोले अच्छा आज मम्मा ने पनीर बनाया है।किसका फेवरेट है पापा का। मन तो कर रहा था कि कहूं तुम्हारे लिए नहीं चिंकी के लिए बनाया है। पर चुप रही। खाने से निबट कर किचन समेट कर बेडरूम में आई तो देखा महाशय बुक पढ़ रहे हैं।
मुझे देखा हंस कर मेरा हाथ पकड़ खींच कर अपने पास बैठा लिया कब का प्रोग्राम है मरने का।मेरा तो पारा हाई हो गया ऐसे नहीं मरूंगी। इतनी जल्दी छुटकारा पाना चाहते हो। मरूंगी तो तुम्हें साथ ले कर।अरे तुम तो बड़ी हिंसक होती जा रही हो दिन प्रतिदिन छोड़ो ये मरने मारने की बातें चलो साथ में जीते हैं।
अरे भई अच्छी बातें किया करो भला ये भी कोई उम्र है मरने की साथ जियेंगे हंसी-खुशी से।“जीना यहां मरना यहां” तुम्हारे सिवा जाना कहां कहते हुए पतिदेव ने बांहो में समेट लिया।
लेखिका © रचना कंडवाल