जश्न_CompetingOneself – Dr Ashokalra

आपको ये किस्सा सुना रहा है, मेरा एक किरदार— आकाशगंगा!

आज मेरे पापा का जन्मदिवस है, और मैं, आकाशगंगा, अपने पति के साथ जश्न मनाने आई हूँ। मैंने बैंक से हाफ-डे लीव ली है, अपने पति, आकाश, को भी बोला था हाफ-डे में ही घर आने के लिए। कारण उन्हें नहीं बताया था, बस बाद में बताने के लिए बोल दिया था। ससुराल में सब यही जानते थे कि बहू का मन है, पति के साथ बाहर जाने का, बात खत्म। उन्हें यह बताना कि पापा का जन्मदिन मनाना है, जो संसार में ही नहीं हैं, मुझ नई सदस्या को उचित नहीं लगा!

“बोलो, क्या ऑर्डर करूँ? आकाश ने पूछा, उनके मन में उमड़ता, यूँ औचक रूप से बाहर आने का कारण, उनके चेहरे पर परिलक्षित हो रहा था।

“आपको अगर एक जश्न मनाना हो, तो उसके लिए आप जो ऑर्डर करेंगे, कर दीजिए,” मैं अभी मुट्ठी बंद रखने का मज़ा लेना चाहती थी।

“जश्न? कैसा जश्न, यार, कुछ बताओ भी?” आकाश राज़े-उलझन में जकड़े जा चुके थे।

“पहले ऑर्डर तो कीजिए,” मुझे उनकी जकड़न में आनंद आ रहा था।

“लो बाबा, लो!” आकाश ने कहा और बेहतरीन ऑर्डर प्लेस कर दिया।

“बहुत बढ़िया, पता है, शादी के खाने का मुझे टेंशन के कारण आनंद नहीं आया था, जबकि सबने तारीफ़ की थी कि बहुत शानदार और स्वादिष्ट खाना था, मैंने कुछ याद किया।

“सच में! चलो कुछ और चाहिए तो वह भी ऑर्डर कर दो,” आकाश ने राज़ जानने की इच्छा को और दो पल के लिए दबा लिया।

“नहीं, आपने कोई कमी नहीं रखी, आप बहुत अच्छे हैं,” मैंने आकाश की तारीफ़ की, जिसे उन्होंने मक्खन लगाने जैसा समझा लेकिन मुस्कुरा दिए, अपनी सबसे कातिल मुस्कुराहट से।



फिर जानबूझ कर कुछ ख़ामोशी सी पसर जाने दी मैंने। जिसे दो पल का इंतज़ार भी गवारा न हो, उसें इंतज़ार करवाने का मज़ा ही कुछ और होता है।

“अब कहो भी,” आकाश के कहते ही मैं उनका धैर्य उड़ता देख कर हँस पड़ी।

“ये जश्न है, हार का। आपकी बीवी की हार!” मैंने ठहाका लगाया, तो ऑर्डर सर्व करने आया वेटर भी मुस्कुरा दिया।

“यार तुम तो पहेलियाँ बुझाती जा रही हो, खुल कर बताओ मुझे,” आकाश की मुस्कुराहट खिली, बुझी फिर खिली।

“बैंक पीओ के इम्तहान में मेरी दूसरी असफलता का जश्न मनाया था पापा ने”।

“असफलता का जश्न?” पतिदेव की उलझन अब चरम पर थी।



“हाँ, कमाल की बात है न! उनका कहना था की मैंने पिछली बार से अधिक अंक पाए थे, सलैक्शन नहीं हुआ तो क्या”।

“सच कहा था उन्होंने। फिर तुम तीसरी बार में सलैक्ट हो गई थीं, है न?” आकाश ने दिमाग पर ज़ोर दिया।

“हाँ, ये तो मैंने आपको बताया था,” अब मैं उनकी आवाज़ में कुछ राज़ होने वाला पुट महसूस करने लगी।

“पता है, तुम्हारे पापा ने क्या सोच कर ऐसा कहा था?” आकाश ने भी राज़ का बदला राज़ से लेने की ठान ली थी।

“नहीं, बताओ न मुझे,” मैं अधीर हो उठी।

“खाना तो खा लो, फिर बताऊँगा,” बंद मुट्ठी का मज़ा अब वह भी लेने लगे।

“प्लीज़, मैं इंतज़ार नहीं कर सकती इतना!” मैंने हार मान ली।

“क्योंकि वह तुम्हारा मुक़ाबला तुमसे ही करवाना चाहते थे, किसी और से नहीं। तुमने बात समझ ली और अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। नतीज़ा, तुम्हारी मंज़िल तुम्हें हासिल हो गई,” आकाश ने अपने भीतर के दार्शनिक से परिचय करवाया।

“वाह, कितनी गहन बात समझा दी, आपने,” मेरे चेहरे पर हृदय का सारा प्रेम उमड़ आया।

“हम हमेशा, हार का ये जश्न यूँ ही मनाया करेंगे,” आकाश ने भी शाब्दिक प्रेम वर्षा की

हार का ये जश्न किसी भी जश्न से बढ़ कर था तो मैंने घर वालों के लिए भी मिठाइयों का ऑर्डर कर दिया। मिठाई खिलाने के लिए किसी को कारण बताना जरूरी तो नहीं।

—Dr📗Ashokalra

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