अनचाही नही हमारी चाहत है हमारी बेटी – संगीता अग्रवाल 

” सुनो इस महीने मुझे पीरियड्स नही आए मुझे डर लग रहा है !” सुगंधा अपने पति नवल से बोली।

” ऐसे कैसे पर …हमने तो .. खैर तुम डॉक्टर के पास जाओ हो सकता है कोई हार्मोन्स के बदलाव के कारण हो ये सब !” नवल  पत्नी से बोला।

” नही तुम मुझे किट ला दो मैं घर में चेक कर लूंगी !” सुगंधा बोली।

” ठीक है !” नवल ये बोल ऑफिस को निकल गया।

अगले दिन चेक करने पर सुगंधा हैरान रह गई उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव जो थी। नवल और सुगंधा हैरान रह गए क्योंकि 10 और 12 साल के दो बच्चे ( एक लड़का एक लड़की ) पहले है उनके अब इतने सालों बाद ये … जबकि वो पूरी एहतियात बरतते थे। दोनो ने घर में इस बात का जिक्र भी नही किया और डॉक्टर के पास गए जिससे वो इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पा सकें पर …!

” नवल जी बच्चा गिरवाने में रिस्क है आपकी पत्नी की जान को खतरा भी हो सकता है !” डॉक्टर के इतना बोलते ही दोनो पति पत्नी के होश उड़ गए। अब कुछ हो नहीं सकता था तो दोनो ने घर में ये बात बता दी।

” मैं तो पहले ही कहती थी एक पोता और हो जाने दो पर तुम लोगों को पड़ी थी हम दो हमारे दो। लेकिन ये सच है जिसे आना हो आकर ही रहता है एक और पोता हो जायेगा तो बाद में दो भाई एक दूसरे का सहारा बनेंगे!” उनकी बात सुनकर सास निर्मला जी बोली।

” मां बात पोता पोती की है ही नही ..चलो सुगंधा तुम आराम करो थक गई होंगी !” नवल ये बोल पत्नी को ले कमरे मे गया। बच्चे खुश थे कि उनका भाई या बहन आयेंगे। तय समय पर सुगंधा ने एक बेटी को जन्म दिया बेटी हुई ये सुनकर तो निर्मला जी का मुंह ही बन गया।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

दावत और दादी मां – डा. मधु आंधीवाल





सुगंधा और नवल अपने तीसरे बच्चे को भी बाकी दोनो की तरह लाड़ प्यार देते थे पर निर्मला जी को वो फूटी आंख ना सुहाती। सुगंधा और नवल के बाकी दोनो बच्चे इस नए मेहमान के आने से बहुत खुश थे उन्हें स्कूल से आ खेलने को एक खिलौना जो मिल गया था।

” अरे निर्मला बहु को ये तीसरा बच्चा जनने की क्या सूझी आजकल तो दो ही बहुत हैं । हां लड़का होता तो भी चलो ठीक था लड़की तो वैसे ही एक ही काफी।” एक दिन नवल की ताई उसकी चाची और बुआ के साथ आकार बोली।

” क्या बताऊं भाभी जाने कैसे ये अनचाही औलाद हो गई !” निर्मला जी अफसोस करती हुई बोली।

” हां भाभी एक लड़की पहले ही थी दूसरी को जरूरी आना था क्या !” नवल की बुआ अफसोस जताती बोली।

” मांजी अनचाही नही है वो जैसे दो बच्चे हमे प्यारे ये भी प्यारी है इसलिए आप कृपा करके आज के बाद इसे अनचाही मत बोलना !” सुगंधा सबकी बात सुन बेटी को सीने से लगाती बोली।




” अरे जब खुद उसे गर्भ में नष्ट करने गई थी तब मोह नहीं था तब वो अनचाही नही थी।” निर्मला जी बहु की बात सुन तुनक कर बोली।

” मांजी माना हमें और बच्चे की चाहत नही थी इसलिए हम गर्भ नष्ट करवाने गये थे पर तब वो एक भूर्ण थी कुछ दिनों की अब नौ महीने इसे गर्भ में पाला है मैने इसको जन्म देने में भी वही कष्ट सहे जो बाकी दो की बार सहे फिर आप ही बताइए अब ये अनचाही कैसे हो गई !” सुगंधा बोली उसकी आंख में आंसू आ गए उसे रोता देख दोनो बच्चे उससे लिपट गए।

” सुगंधा सही कह रही है मां हमारी बेटी अनचाही औलाद नहीं है हमारे जिगर का टुकड़ा है आइंदा आप ऐसी बात जुबान पर मत लाना मैं नही चाहता मेरे दोनो बच्चों के मन में इस बच्ची को ले कोई दुर्भावना आए या ये बच्ची बड़ी होकर अपने होने पर अफसोस करे इसे मेरी विनती समझ लेना पर आज के बाद ये अनचाही शब्द इस घर में इस्तेमाल नहीं होगा अब ये भी हमारी चाहत है…सुगंधा लाओ इसे मुझे दो तुम चाय बनाओ !” तभी वहां नवल आकर बोला।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“अनोखा रक्षाबंधन ” – अनुज सारस्वत 

निर्मला जी को नवल की बात अच्छी तो नही लगी पर बेटे के सामने ज्यादा बोल नही सकती थी इसलिए चुपी लगा गई। नन्ही बच्ची पापा की गोद में आ मुस्कुरा दी मानो वो पापा को धन्यवाद दे रही थी ।

दोस्तों बच्चे दो ही अच्छे ये बात सही है पर ये भी सच है मां के लिए उसके कितने ही बच्चे हों पर कोई भी अनचाहा नही होता हां कभी कभी परिस्थितियों को देखते हुए गर्भ गिराने की सोच लेटी है पर एक माँ मां जब एक बच्चे को गर्भ मे नौ महीने रखती अपने गर्भ में कष्ट सहकर उसे जन्म देती तो वो उसके जिगर का टुकड़ा उसकी चाहत  बन जाती है । आपकी इस बारे में क्या राय है ?

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!