छोटी सी बात – अभिलाषा कक्कड़

आज सरिता बहुत दिनों के बाद चंडीगढ़ दीदी अर्चना के घर आईं थीं । शादी से पहले तो बहुत आना जाना लगा रहता था ,सारी ख़रीदारी की भी एकमात्र वहीं जगह थी ।दो चार दिनों के लिए दीदी अकेली थी । जीजा जी अपने किसी काम से शिमला गये थे और बहु बेटा और पाँच साल का पोता सुमि सभी बहु के मायके किसी शादी में गये थे । सरिता दीदी का अनुरोध टाल ना सकी और फिर उसे थोड़ा शापिंग का भी लालच आ गया तो चली आई चंडीगढ़ दो दिनों के लिए दीदी के पास ।

सुबह सुबह दोनों बैठ कर चाय पीते हुए गप्पें लड़ा रही थी कि दीदी का देवर का बेटा रवि अपनी चार साल की बेटी के साथ आ गया । प्रणाम करके बोला चाची चार पाँच घंटे निकी को छोड़कर जा रहा हूँ । दुकान के लिए सामान ख़रीदना है इसकी माँ कीं तबीयत ठीक नहीं इसलिए साथ लाना पड़ा ।

दीदी ने कहा तू चिन्ता मत कर आराम से अपना काम कर हम चार बजे के बाद ही बाज़ार जायेगी । दीदी ने घर के दूसरे माले पर एक कमरे का मकान किराए पर दे रखा था । साधारण सा परिवार था पति पत्नी और उनका पाँच साल का बेटा नील … थोड़ी सी आमदनी में गुज़ारा चलाने वाली ज़िंदगी थी उनकी! निकी कीं आवाज़ सुनकर नील नीचे खेलने आ गया । दोनों बच्चे बड़े प्यार से खेल रहे थे । दोनों बहनें घटों बैठी बतियाती रही ।

सरिता ने दीदी से कहा यह नील तो आपके सुमि को भी अच्छी संगति देता होगा खेलने में वर्ना आज कल तो वक़्त ऐसा आ गया दूसरे घरों मे बच्चों को भेजने में भी डर लगता है । दीदी ने कहा यह तो सारा दिन यही रहता है । माँ भी इसकी जल्दी से नहीं बुलाती । अपने कपड़े सिलने का काम इतमीनान से जो कर लेती है । बीच में दो बार रवि का भी फ़ोन आया बिटिया का पता करने के लिए तो दीदी ने बताया कि किराये दार के बेटे के साथ खेल रही है ।

तीन चार घंटे बाद रवि वापिस आया तो उसके हाथ में एक गुड़िया और एक मोटर कार थी… होगी उस खिलौने की क़ीमत सौ डेढ सौ के आसपास, शायद वो उस बच्चे को प्यार के साथ आभार भी देना चाहता था । दीदी ने बताया कि वो तो अपने घर चला गया और तेरी बेटी भी सो रही है । उसने कहा ठीक है मैं उपर जा कर दे आता हूँ । वो अभी दो कदम ही बढ़ा था कि दीदी ने उसके हाथ से खिलौना ले लिया और बोली कोई ज़रूरत नहीं देने की .. चार घंटे से ए सी वाले कमरे में खेल रहा है ।

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खाया पीया अलग माँ भी एक बार नीचे नहीं आई देखने । अपने सारे काम आराम से निपटा लिए होंगे । इतना कम है उपर से खिलौने भी दे ,रख दें मेरा सुमि आकर खेलेगा । रवि के लिए चाची पहले थी । खिलौना दीदी के हाथ में देकर वो अपनी बेटी को लेकर चला गया । सरिता चुपचाप बैठी यह सब देख रही थी और सोच रही थी कि दीदी ने जो किया वो एकदम से ग़लत था । किसी को ख़ुशी देने और लेने के बीच सिर्फ़ एक तंग सोच आकर खड़ी हो गई थी । यह बात उसे तंग कर रही थी कि दीदी से कैसे बात करे । दीदी का मन अच्छा है तो वो शांति से सुन लेगी ।



वर्ना दीदी हज़ार बातों से उसका मुँह भी बंद करवा देगी । शाम को फ़ुरसत निकाल कर दोनों बहनें ख़रीदारी करने निकली । एक खिलौने वाला ज़मीन पर चादर बिछाये बैठा बेच रहा था तो सरिता वहाँ रूक गई । दीदी ने कहा यहाँ से क्या लेना है ?? दीदी मैं सुमि के लिए कुछ नहीं लेकर आई सोच रही हूँ एक खिलौना यहीं से ले लूँ ।

दीदी बोली तू पागल हो गई है क्या ? तूने उसके खिलौने देखे नहीं है शायद..  हज़ारों की क़ीमत वाले खिलौने लेकर देते हैं मेरे बहु और बेटा !! तेरे यहाँ से लिए खिलौने का तो वो एक मिनट में कचूमर कर देगा । सरिता तो जैसे इस मौक़े की इन्तज़ार में थी ,बड़े प्रेम और सहजता से उसने अपने मन की बात कहनी शुरू की ….दीदी मैं यही बात आपको भी कहना चाहती हूँ ,जो आपने कल रवि को ग़रीब बच्चे को ख़ुशी देने से रोका ,आपका पोता खेलेगा या नहीं यह तो बाद की बात है ।लेकिन उसे इससे ख़ुशी जरा भी नहीं मिलेगी ।

वो इसे पल में तोड़ भी सकता है । क्योंकि उस पर उसका नाम ही नहीं लिखा और जो खेल सकता है उस तक आपने जाने ही नहीं दिया ।एक की देने और एक की लेने दोनों की ख़ुशी छीनने का भार अलग आप पर आया और वो भी एक तुचछ सी वस्तु के लिए ,दीदी चुपचाप सुन रही थी ।

अगले दिन सरिता जाने के लिए तैयार खड़ी थी तो दीदी ने कहा मैं वो मोटर कार उपर जाकर नील को दे आई हूँ और थैंक्यू जो तूने मुझे इतने अच्छे ढंग से समझाया कि एक अनजाने में ही ग़लत काम करने से रोक दिया । है तो यह छोटी सी बात लेकिन उस नन्हे से बच्चे के चेहरे की रौनक़ देखकर मैं तो जैसे सर से पाँव तक ख़ुशी से नहा गई । बिना मन्दिर गये जैसे मन्दिर भी हो आई।तू सही कह रही है ख़ुशी दे कर ही ख़ुशी मिलती हैं । लेकिन हम यह बात समझने में बड़ी देर लगा देते हैं  ।सब हमारी तंग सोच ही है और कुछ नहीं जिसे बदलना भी हमारे ही हाथ में है अगर हम चाहे तो … सरिता मुसकरा रही थी कुछ नहीं बोली बस कस कर दीदी को गले लगा लिया

स्वरचित रचना

अभिलाषा कक्कड़

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