बहू नहीं बेटी हूँ मै

सलोनी ब्याह करके  अपनी ससुराल पहुंच गई थी.  ससुराल पहुंचते ही अपने मां के दिए हुए संस्कारों के अनुरूप घर के सारे लोगों के छोटे बड़े सारे काम करके उनके दिल में जगह बनाने में जुट गई थी उसकी मां का कहना था कि अगर तुम्हें अपने ससुराल में एक अच्छी बहू बनना है तो सबके दिलों में जगह बनानी पड़ती है

सबकी मान मर्यादाओं और उनकी जरूरतों की ख्याल रखना एक अच्छी बहू का धर्म होता है।  

वैसे तो सलोनी एक आजाद ख्यालों की लड़की थी लेकिन शादी के बाद एक बहू का धर्म भी तो निभाना था, वह अपने सोच और ख्यालों को कुछ दिनों के लिए किसी तिजोरी में बंद करके रख दी थी।

पूरे दिन सिर पर घूंघट लिए घूमती थी और हाथों में भरी-भरी चूड़ियां खनकाती हुई, पायल पहन कर पूरे दिन घर का हर काम करती रहती थी, घर के हर सदस्य से उनकी पसंद का खाना पूछना, बनाना उसके आदतों में शुमार हो गया था।  ऐसा करके धीरे-धीरे वह सब की लाडली बहू बनी गई थी। 



अब तो सलोनी की इस संस्कारी बहू वाले कैरेक्टर की चर्चा पूरे मोहल्ले में होने लगी।  सारे मोहल्ले वाले सलोनी की दाद देते थे की बहू हो तो सलोनी जैसी।  लेकिन सलोनी भी कब तक अपने आप को एक कैरेक्टर में जीती, आखिर वह भी तो इंसान है। सुबह से लेकर शाम हो जाता था, घर के सारे लोगों की सेवा करते हुए उसे अपनी खुद की भी चिंता नहीं होती थी। कि उसने नाश्ता या खाना खाया या नहीं कई दिन तो उसका हस्बैंड महेश उसे कह देता था मुझे तो समझ में ही नहीं आता है कि मैंने शादी करके अपने लिए एक पत्नी लेकर आया हूं

या नौकरानी।  इतने पर सलोनी का जवाब होता था आप भी कैसी बातें करते हैं अगर मैं घर के सारे लोगों की सेवा करती हूं तो नौकरानी थोड़ी हो गई यह तो एक बहू का कर्तव्य होता है यही तो मेरी मां ने सिखाया है।तो महेश कहता तो क्या तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया है कि अपने पति के लिए भी थोड़ा सा टाइम निकाल लिया करो, सलोनी  बोली हां हां बाबा, बस मैं ,अभी फ्री होकर आई। सलोनी के आने के इंतजार में महेश कब सो जाता पता भी नहीं चलता, फिर सुबह होता और ऑफिस के लिए निकल जाता।

डूब मरना – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

एक दिन महेश ने अपनी मां से बोला, ” मां टीचर का फॉर्म निकला हुआ है मैं चाहता हूं कि सलोनी इसको भरे क्योंकि पढ़ने में भी वह काफी तेज है उसने आखिर B.Ed किया हुआ है वह आसानी से यह  एग्जाम क्वालीफाई कर सकती है”

सलोनी को जब यह बात पता चला तो वह भी बहुत खुश हुई  क्योंकि वह अपनी जिंदगी इस किचन मे नहीं बिताना चाहती थी उसे भी उड़ना था, खुले आसमान में उसको कुछ  कर दिखाना था अपनी लाइफ में लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल रहा था अगर अब यह मौका उसके हाथ आ रहा था तो वह इसे गवाना नहीं चाहती थी। लेकिन सबसे बड़ी बात थी कि उसकी सासू मां को यह बात पसंद हो।  सलोनी की सास ने कहा कि देखो बेटा मुझे बहू की नौकरी करने जाने में कोई दिक्कत नहीं है मैं तो खुद चाहती हूं कि सब अपने पैरों पर खड़े हो कोई किसी पर निर्भर ना हो चाहे तुम हो या मेरा छोटा बेटा रमेश सब अपने पैरों पर खड़े हैं।  लेकिन सोचो अगर बहुत नौकरी करने लग जाएगी कल को तुम्हारे बच्चे होंगे तो उनकी देखभाल कौन करेगा और वैसे भी तुम इतना पैसा तो कमा ही लेते हो कि तुम अपने बीवी और बच्चे का जीवन यापन अच्छी तरह से कर सको।

सलोनी की सास ने एक साथ ही दो तीर मार  दिए थे, उसने जॉब करने से मना भी नहीं किया और एक तरह से इन डायरेक्टली मना भी कर दिया, सलोनी को बता दिया कि ठीक है जॉब करने जाना है तो तुम जाओ लेकिन हम तुम्हारी कोई सहायता नहीं करेंगे कल को तुम्हारे बच्चे होंगे तो तुम उसे  खुद देखना, घर का भी काम तुम्हें खुद ही करना पड़ेगा हमारी तरफ से तुम्हें कोई भी मदद नहीं मिलने वाला है।

महेश को अपनी मां की बातों को विरोध करने का साहस नहीं था वह बचपन से ही अपनी मां की हर बात सर आंखों पर लगाता था क्योंकि महेश की बापू नहीं थे और उसकी मां ने बहुत मेहनत करके आज महेश को इस लायक बनाया कि वह सरकारी जॉब कर रहा था। महेश ने बोला ठीक है माँ आपकी जैसी इच्छा मैं तो सोच रहा था कि सलोनी जॉब कर लेगी तो इसका भी मन लग जाएगा और घर में  दो पैसे भी आ जाएंगे।

सलोनी ने भी अपने मन को समझा लिया था कि अब उसकी जिंदगी यही है जितना उड़ना था वह  उड़ लिया। उसे समझ आ गया था कि वह जितना भी कर ले ससुराल कभी मायका नहीं बन सकता है और ना ही सास कभी मां बन सकती है।  सलोनी मन ही मन समझा रही थी। अपने आपको कि सलोनी अब तुम्हारी यही जिंदगी है सब की सेवा करो और अपनी जिंदगी इतनी सी छोटी सी दुनिया में गुजार दूं इसके अलावा तुम्हारे पास और कोई चारा नहीं है।धीरे-धीरे समय चक्र चलता रहा सलोनी मां भी बन गई थी अब वह पहले से और ज्यादा ही व्यस्त जीवन जीने लगी थी बच्चों के लालन पालन। सच में उसके पास अब इतना समय नहीं होता था कि वह कुछ और करने के बारे में भी सोच सके।

चहकता घर-आंगन- सुभद्रा प्रसाद : Moral stories in hindi




कुछ दिनों बाद ही सलोनी के छोटे देवर की शादी होने वाली थी।  सलोनी को ऐसा लगा कि चलो छोटी देवरानी घर पर आएगी तो उसे घर के कामों से मुक्ति मिलेगी और वह फिर से कुछ अपने लिए और अपने बारे में सोच पाएगी ऐसे ही सपने सँजोने लगी। सलोनी का देवर,  सॉफ्टवेयर इंजीनियर था इस वजह से उसकी शादी भी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर लड़की से ही तय हो गई थी लड़की वाले भी काफी अच्छे खासे अमीर थे उन्होंने तो शादी सिर्फ उसके देवर के जॉब को देखते हुए तय किया था।  वरना कोई भी इस घर में इतने अमीर आदमी अपनी लड़की नहीं ब्याहता। सलोनी की देवर की शादी हो गई, देवरानी भी घर आ गई उसकी देवरानी का नाम गीता था।  गीता दहेज में इतना सारा सामान लेकर आई थी कि सबकी आंखें फटी की फटी ही रह गई इतना सामान भी कोई दहेज में देता है क्या? 

गीता भी अपने मां बाप की इकलौती बेटी थी और खुद भी पहले से सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी तो पैसे की कोई कमी थी नहीं उसके मां-बाप ने खुलकर दहेज दिया था।

घर में आते ही गीता सब के लिए स्पेशल गिफ्ट  पैक लेकर आई थी।  उसने अपने इस मोह माया जाल में सारे घरवाले को बांध लिया था।

सलोनी को यह बात समझ आ गया था कि गीता के आने से उसके जीवन में कोई बदलाव नहीं आने वाला है।

सुबह होते ही मेरी सासू मां ने आवाज लगाई कि सलोनी एक चाय का कप गीता के कमरे में भी रखा आओ। यह बात  सलोनी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।  क्योंकि थी तो आखिर वह भी जेठानी उसकी भी कुछ पद-प्रतिष्ठा थी। लेकिन यह क्या यहां तो छोटी बहू को आगे सारे घरवाले आगे-पीछे घूमने लगे, जैसे वह इस घर की कोई बहू नहीं बल्कि महारानी हो।  सुबह सोकर जगने के बाद  सिर  पर घूंघट रखा था और ना ही साड़ी पहनी थी वह नाइटी में ही कमरे से बाहर निकल गई थी लेकिन किसी को भी इस बात से ऐतराज नहीं था कि गीता ने साड़ी क्यों नहीं पहना है।  बल्कि सब उसकी और तारीफ करने में लगे थे वाह भाभी क्या नाइटी है ऐसी नाइटी हमें भी दिला दो।

ऐसे  शब्द अपने ननद के मुंह से सुनते हुए मुझे भी जलन सी महसूस होने लगी।

मुझे याद है आज भी वह दिन जब मैं 1 दिन सिर्फ सलवार सूट पहन ली थी घर में ऐसा लगा जैसे कोई भूकंप आ गया हूं मैंने कोई अजीबोगरीब ड्रेस पहन लिया हो सासू मां सबसे पहले ही टोक  दिया कि बहू यह तुम्हारा ससुराल है मायका नहीं कोई देखेगा तो क्या कहेगा कि तुम ससुराल में साड़ी की बजाय सलवार सूट पहन कर घूम रही हो। लेकिन यहां तो गजब हो रहा है देवरानी नाइटी पहन के भी घूम रही है फिर भी सब तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं।  मुझे समझ आ गया था दहेज की ताकत। शादी के 1 सप्ताह बाद ही  गीता की ऑफिस की छुट्टी समाप्त हो गई थी।  वह अगले मंडे से अपने जॉब जाने के लिए सासू मां से बात कर रही थी।

सासू मां ने उसे एक बार भी नहीं कहा कि तुम अभी जॉब क्यों करोगी तुम्हें पैसे की क्या कमी है मेरा बेटा तो इतना पैसा कमाता ही है।  बल्कि उसे और प्यार से बोली हां हां बेटी तुम जरूर जाओ। वैसे भी घर में इतने सारे लोग हैं तुम्हें किसी भी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं है और हां नाश्ता और लंच में जो ले जाना हो वह सलोनी को बता देना वह तुम्हारे लिए तैयार कर देगी।

“मां का आँचल”- top 10 moral stories in hindi

सलोनी ऐसा देखकर  मन में यही सोच रही थी कि क्या यह वही  मम्मी है जब मेरी बारी आई थी तब तो उन्होंने साफ मना कर दिया था जॉब जाने के लिए और एक गीता को कितनी सपोर्ट कर रही हैं।  मुझे समझ आ गया था कि दहेज वाली बहू के इज्जत भी ससुराल में कुछ ज्यादा ही होता है।गीता सचमुच की सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी  वह दिमाग से इतना तेज थी कि मम्मी को प्यार से हर बात भी मनवा लेती थी और उनको पता भी नहीं चलता था।

गीता जींस टॉप पहन कर अपने ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर जैसे ही कमरे से बाहर निकली,



 सबने उसके तारीफों के पुल बांध दिए। सलोनी की सास ने आवाज लगाई बहू गीता की लंच पैक हो गया क्या जल्दी से दो देर हो जाएगा जाने में.  मैं भी बिना कुछ सोचे समझे आदर्श बहू की तरह लंच बॉक्स गीता को पकड़ाते हुए बोली.  गीता बोली थैंक यू भाभी आप इतना सपोर्ट करती है मुझे भगवान करे सब के जेठानी ऐसी ही मिले. वह अपने सास को पैर छूने के बजाय गले मिल कर चली गई.  सासू मां ने भी कुछ नहीं कहा कि इतना कहा उसके जाते वक्त की बहू हो तो छोटी बहू जैसी लगता ही नहीं है कि वह अपने ससुराल में है. सलोनी को बिल्कुल  समझ नहीं आता कि वह जो भी करती है सबको उसमें एक संस्कारी बहू  की गुण चाहिए। और यह गीता तो सब काम भी कर लेती है और इसे कोई प्रॉब्लम भी नहीं। शाम को ऑफिस से भी लेट नाईट ही आती थी बस आते वक्त बाहर से कुछ खाने पीने की चीजें खरीद कर ला देती थी उसी से घर वाले सारे खुश हो जाते थे।

मैंने भी अब ठान ही  लिया था कि मैं कोई इस घर की नौकरानी नहीं हूं जो  सब की सेवा खातिरदारी करती रहूं मुझे भी हक है जीने का कुछ अपने मन की करने का।  एक दिन डिनर के समय  मैंने आखिर अपने सासू मां को बता ही दिया था कि देखिए सासू मां गीता को आए हुए भी अब  6 महीने से ज्यादा हो गए इसे घर के भी काम कुछ तो करना चाहिए। गीता उसी समय तुरंत बोली,”भाभी आपने एक बार भी बताया क्यों नहीं कि आपको किचन में तकलीफ होती है मुझे लगा आपको अच्छा लगता है इस वजह से मैं आपको डिस्टर्ब करने के लिए किचन में नहीं आती थी ठीक है शाम को कल से सबके डिनर हम ही  बनाएंगे। “ गीता ने उस दिन तो अपनी वाहवाही लूटने के लिए यह बोल दिया था कि अगले दिन वह डिनर खुद ही बनाएगी लेकिन वह आज तक अपने लिए कभी चाय तक नहीं बनाई थी वह सबके लिए खाना क्या बनाएगी।  रात को सोते वक्त अपने पति से कहने लगी कि देखो मैंने बोल तो दिया है कि कल से डिनर बनाऊंगी लेकिन तुम्हें तो पता है कि मुझे तो चाय भी नहीं बनाने आता है। तुम कल ऑफिस से जल्दी घर आ जाओगे और किचन में मेरी मदद करोगे खाना बनाने में  गीता के पति ने बोला हां ठीक है मैं आ जाऊंगा। अगले दिन शाम को किचन में गीता और उसका पति खाना बनाने में लगे हुए थे तभी सासू मां ने आवाज दी बेटे तुम किचन में क्या कर रहे हो खाना बनाना औरतों का काम है तुम बाहर आओ। इतना सुनते ही गीता के होश ठिकाने आ गए थे कि अगर उसका पति नहीं रहेगा तो वह इतने लोगों का खाना कैसे बना पाएगी।

गीता परेशान होकर किचन में इधर से उधर घूम रही थी सलोनी दूर से ही सारी नजारा देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। लेकिन उससे भी रहा नहीं गया सलोनी के अंदर के संस्कारी बहू आखिर जाग ही गया  वह किचन में आकर गीता को बोली चलो मैं भी तुम्हारे साथ, हाथ बटा देती हूं।  गीता ने सलोनी को इतना सपोर्ट करते हुए देख गले लगा लिया और बोला कि भाभी सच में आप बहुत महान हैं। 

तू मेरी सहेली है ना – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

गीता को जब यह पता चला सलोनी को टीचिंग करने का बहुत शौक है लेकिन वह अपने सास के आगे कुछ बोल नहीं पाती है। गीता ने सलोनी से बोला कि भाभी जरूरी थोड़ी है कि आप स्कूल में ही पढ़ाने जाओ अपने छत के ऊपर का कमरा तो वैसे ही खाली पड़ा रहता है उसमें सिर्फ  कबाड़ी ही तो रखे हुए हैं। क्यों ना उसे हम साफ-सफाई कर दें और आप उसमें ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दो। 

सलोनी बोली लेकिन ऐसा मम्मी करने देंगे तब तो गीता बोली इस बात की चिंता भाभी आप मुझ पर छोड़ दो मैं मम्मी को मना लूंगी। अगले दिन गीता अपने सास के बगल में आकर बैठ गई और अपने सास से बोलने लगी कि सासू मां मेरा सर दुख रहा है प्लीज थोड़ा सा मालिश कर दीजिए ना।

ऐसा देख सलोनी के तो होश ही उड़ गए की गीता ऐसा कैसे कर लेती है। गीता की बातों को भी सासू मां मना नहीं कर पाती हैं सासू मां बोली ठंडा तेल लेकर आओ अभी कर देती हूं। बातों बातों में ही इतने सासू मां से ऊपर वाले कमरे में मेरे पढ़ाने वाले की बात भी कर दी और वह तैयार भी हो गई। अब मुझे समझ आया कि गीता सासू मां के पास तेल लगवाने क्यों गई थी।

धीरे-धीरे गीता ने ससुराल के सारे नियम कायदे कानून भी बदल दिए थे और किसी को कानो कान खबर भी नहीं हुआ। कुछ दिनों के बाद तो गीता ने अपनी सास को भी सलवार सूट पहनाना शुरु कर दिया था सिर्फ यह बोलकर कि मम्मी जी आप इसे पहनने के बाद कितना खूबसूरत और जवान लग रही हैं।   

गीता को फैमिली के हर सदस्य का जन्मदिन याद रहता था वह सबके जन्मदिन काफी अच्छे तरीके से मनाती थी और सब को गिफ्ट देना भी नहीं भूलती थी।  गीता ने मुझे बहू और बेटी का फर्क होना समझा दिया था।अब सलोनी को ये भी पता चल गया था कि अगर ससुराल मे सास से माँ का प्यार पाना है तो पहले खुद बेटी बनना पड़ेगा।  लेकिन सलोनी तो सिर्फ एक संस्कारी बहू बनकर रह गई थी।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!