मंदाकिनी अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थी। बड़ी ही मधुर स्वभाव की लड़की थी। आमतौर पर एकलौती सन्तान लाड़-प्यार में थोड़े बिगड़े होते हैं, किंतु मंदा (सब प्यार से उसे यही बुलाते थे) के साथ यह बात न थी। जब वह 12 वीं में थी तभी एक दिन रात को जब वह मां के साथ ही सोई थी तो नींद खुलने पर देखा
मां बिस्तर के नीचे पड़ी थीं। पूछने पर मां ने बताया कि तबियत ठीक नहीं लग रही इसलिए जमीन में सोई हैं। तुरन्त मंदा ने पापा को जगाया और पड़ोस के अग्रवाल अंकल से बोलकर उनकी कार से लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। पर वहाँ पहुँचने पर डॉ ने मां को मृत बताया। डॉ की बात पर उसे यकीन ही न हो रहा था। ऐसा कैसे हो सकता है,मां को तो कुछ न हुआ था।
वो कैसे उसे छोड़कर जा सकती हैं। उसके पिता की तो और बुरी स्थिति थी। वो सदमे में चुप से हो गए थे। तब मंदा ने ही उन्हें संभाला था। एक मां की तरह उसने पिता को संभाला। अचानक से वह बड़ी हो गयी। ग्रेजुएशन के बाद उसके पिता ने विवाह के लिए वर ढूंढना शुरू कर दिया। एक साल के भीतर ही उसकी मौसी ने राजीव का पता बताया। मंदा के पिता और चाचा जाकर लड़के को देखने गए। लड़का देखने में बड़ा ही स्मार्ट था। उसकी रेडीमेड गारमेंट्स की दुकान थी। सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखता था। दो भाई व एक बहन थी उसकी। रिश्ता उन्हें पसन्द आया
। छह माह बाद मंदा विवाह बंधन में बंध गयी।
ससुराल में उसने खुद को समर्पित कर दिया। लगभग दो साल तक उनका वैवाहिक सम्बन्ध ठीक-ठाक चला। तब तक नन्हा अनुराग जन्म ले चुका था। कुछ महीनों से मंदा को यह महसूस होने लगा था कि अब राजीव की उसमें रुचि कम होने लगी है। उसने आत्ममंथन किया और अपनी कमियां याद करने लगी। अपनी जानकारी में तो वह पूरी निष्ठावान व एक सहनशील पत्नी थी। तब उसने एक रोज पति से फुरसत में बड़े प्यार से पूछा -“राजीव जी!…एक बात पूछूं?”
“हाँ पूछो न।”
“मुझसे कहां कमी हो रही है जो आप मुझसे दूरी बना रहे हैं।”
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“अरे नहीं …तुम्हें ऐसा कैसे लगा। बस जरा बिजिनेस को लेकर कुछ दिनों से थोड़ा परेशान हूँ।” – कहकर राजीव एक जरुरी काम याद आने का बहाना कर निकल गए। मंदा ने न मानते हुए भी इसी को सच माना और आनेवाले दिनों में राजीव का रवैया बदलने की प्रतीक्षा करती रही। इसीतरह दो साल और निकल गए। अब मंदा की गोद में मासूम अनुज भी आ गया था।
परिवार बढ़ता रहा और राजीव दूर होता चला गया। अपने माता-पिता की बात भी न सुनता था। रात को घर देर से आने लगा। एक रोज वह अपने पिता से बोला कि बिजिनेस में उसका नुकसान हुआ है इसलिए उसे दस लाख रुपए चाहिये। पिता के असमर्थता जताने पर उसने प्रोपर्टी में अपने हिस्से की मांग की। कई दिनों तक घर में तनाव बना रहा। अन्ततः प्रोपर्टी के नाम पर घर को बेचकर मिलने वाले पैसे उसे दे दिया गया।
अब मंदा सास-ससुर के साथ किराए के मकान में आ गयी। इस सदमें से उसके सास- ससुर तीन साल के भीतर दुनिया छोड़ गए। मंदा और अकेली पड़ गयी। राजीव को रास्ते पर लाने की हर कोशिश बेकार हो रही थी। एक दिन उसने राजीव से जवाब- तलब किया तो उसने कहा डाला -“तंग आ गया हूं तुमसे। जोंक की तरह चिपक गयी हो। तुम्हें समझ नहीं आता..…अबतक तो तुम्हें ये घर छोड़कर चले जाना चाहिए था।”
ये सारी बाते कहते हुए उसके चेहरे पर कोई अपराधबोध न दिख रहा था। कमरे में घूमते हुए उसने जग से पानी लेकर इत्मीनान से पिया और पुनः कहा -“मेरे जीवन में मेरा मनपसंद साथी मिल चुका है। मैने उसके लिए घर भी ले रखा है, अब वही रहूंगा। तुम अपना देख लो…कहां रहोगी?”
“राजीव जी!…मेरी गलती तो बता दीजिये।”- अवाक सी मंदा ने सूनी आंखों से पूछा।
“कुछ नहीं बस तुमसे मन भर गया है।”
यह कहकर राजीव उस रोज दूसरे कमरे में जाकर सो गया। मंदा सुबह उठी तो राजीव जा चुका था। 20 दिनों तक वह बच्चों को लेकर अकेली राजीव के लौट आने का इंतजार करती रही। अगले दिन मकान मालिक महीना पूरे होने पर किराया मांगने का गया। सेविंग से निकालकर उसने पैसे दे दिए। और एक ठोस निर्णय लेकर वह अपने पिता के घर आ गयी।
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यहां मंदा ने एक स्कूल जॉइन कर लिया। और अकेली दो बच्चों को लेकर जिंदगी की जंग लड़ती रही। अनुराग सातवीं कक्षा में था तो मंदा के पिताजी गुजर गए। इस बीच कहीं से राजीव के बारे में खबर मिली कि जिस लड़की से उसने शादी की थी, वह उसे पूरी तरह अपने वश में कर रखा है। उसके चक्कर में उसकी दुकान लगभग बन्द होने के कगार पर है।
कुछ सालों बाद अनुराग बैंक में क्लर्क की नौकरी पा गया। अनुज अभी बी.एस.सी कर रहा था। मंदा ने अनुराग के पसन्द की लड़की के साथ उसकी शादी कर दी। उसके परिवार में सबकुछ ठीक चल रहा था। एक दिन अनुराग जब बैंक से लौटा तो मंदा को ढूंढते हुए कमरे तक आया और बोला-“मां! आज पापा आये थे बैंक में मिलने। बहुत बुरी दशा थी उनकी। वो हमलोग के पास वापस आना चाहते हैं। उनकी दूसरी पत्नी ने उनकी सारी प्रोपर्टी अपने नाम करा उन्हें घर से निकाल दिया है।”
“नहीं!…वो इस घर में नहीं आएंगे। ये मेरा घर है। इसे मैने बड़ी मुश्किल से सँवारा है।”- निर्विकार भाव से मंदा ने कहा। बात यहीं खत्म हो गयी। अनुराग चुप हो गया गया। दो- तीन दिन बाद फिर अनुराग ने मां को पिता के सम्बंध में मनाने की कोशिश की तो मंदा ने कहा-“बेटे! मैं तुम्हें मना नहीं कर रही। वो इस घर में नहीं रह सकते। तुम्हें रहना है तो अलग घर में अपने पिता को लेकर रहो। पर यहाँ नहीं…।”
इस फैसले को सुनकर अनुज अपनी माँ के निर्णय पर गर्व कर रहा था। कुछ दिनों बाद अनुराग को बैंक के तरफ से मकान मिला तो मां की रजामंदी से पिता के साथ वहां शिफ्ट कर गया। मां की असफल वैवाहिक जिंदगी का अनुज पर इतना गहरा असर पड़ा कि आज 37 साल के होने के बाबजूद शादी न करने के फैसले पर वह अटल है।
–डॉ उर्मिला शर्मा।