एक विरोध ऐसा भी – अनीता चेची

नहर पार के गाॅंव में कालू का सिक्का चलता। उसका सबसे ज्यादा हस्तक्षेप वहां के सरकारी स्कूल में था।  वह हमेशा सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 10वीं 12वीं कक्षा का

 सेंटर ले आता ।ताकि वहां धड़ल्ले से नकल हो सके ।कई गैर सरकारी स्कूल भी अपना सेंटर उसी स्कूल को भरते और कालू को मोटी रकम देते ।कालू सांठगांठ से पूरा बंदोबस्त करता और बच्चों की नकल करवाता। उस स्कूल का रिजल्ट हमेशा 100% आता और जो सेंटर उसमें आते उनका रिजल्ट भी 100% आता। इस तरह से दोनों मिलकर माता-पिता और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे थे। परंतु अब के मार्च की परीक्षाओं में इतिहास प्रवक्ता गौतमी केंद्र अधीक्षक के रूप में उस सेंटर के लिए नियुक्त हुई। पहले दिन ही सेंटर पर हड़कंप मच गया। गौतमी नकल रहित परीक्षा करवाने के पक्ष में थी। उसने सेंटर पर पूरी सख्ती की। स्कूल संचालक नकल के लिए गौतमी पर तरह-तरह के दबाव बनाने लगे। कोई पैसे देने की बात करता तो कोई जान से मारने की धमकी देता। गौतमी के पति से भी सिफारिश की गई कि वह केंद्र पर ढिलाई बरते। गौतमी का पति सभी का विरोध झेलना नहीं  चाहता था। इसलिए वह भी चाहता था कि वह व्यवस्था के साथ चले और बिना बात के झंझटों में ना फंसे। गौतमी के मन में ‘अनीता चेची’ की कविता बार-बार गूंज रही थी।

 

माना कि सत्य की है

कठिन डगर ,कठिन डगर

खड़ा रहे तू सत्य पर

निडर, निडर, निडर, निडर

मूर्खों के झुंड में

खुद को तन्हा पाएगा

केसरी सी गर्जना

तभी तो कर पाएगा।

 

 सत्य की राह पर गौतमी खुद को अकेला महसूस कर रही थी। फिर भी वह कर्तव्य पथ पर अडिग रही। क्योंकि वह जानती थी कि विद्यार्थी राष्ट्र के निर्माता हैं यदि आज यह नींव खोखले आधारों पर रखी गई तो कल इसके भयंकर परिणाम देखने को मिलेंगे। वह अपने सिद्धांतों पर अड़ी रही। अनेकों विरोध के बावजूद वह नकल रहित परीक्षा करवाने में सफल रही।

 

अनीता चेची ,मौलिक रचना

 

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