शिवांगी रसोई से पसीना पोंछते हुए निकली ही थी कि उसे बगल वाले कमरे से फुसफुसाने की आवाज आई , शिवांगी ने कमरे में झाँका तो देखा कि सांस सविता जी अपनी बेटी से धीमी आवाज में फोन पर बात कर रही थी बेटा सुमन हमारा क्या हैं आज नहीं तो कल चले जाएँगे
मगर तेरी भाभी को इतनी समझ तो होनी चाहिए कि अपनी सांस को अच्छा – अच्छा खाना खिलाएँ , जब देखो रोटी – सब्जी , दाल – चावल यहीं बनाते रहती हैं , क्या रोज – रोज यह खाना भाता हैं ??
तेरी भाभी सुबह सात बजे उठती हैं , घर की लक्ष्मी को सुबह सुरज निकलने से पहले उठ जाना चाहिए मगर उसे कौन समझाए , कपड़े धोने के लिए मशीन लगाती हैं , झाडू- पोछा ,बर्तन सभी को बाई लगा रखी हैं , ठाँट – बाँट तो देखो महारानी के , हम तो हमेशा हमारे कपड़े हाथ से ही धोते थे और कामवाली बाईयों के काम भला किसे पसंद आते हैं ??
शिवांगी ने सब कुछ सुना और अपने कमरे में आकर बैठ गई , उसकी आँखों में आँसू थे और वह अतीत में खो गई जब वह शादी करके इस घर में आई थी , सविता जी और सुमन ने उसे कभी बहु वाला मान – सम्मान नहीं दिया और ना किसी को देने दिया !! पति शरद भी हमेशा शिवांगी को ही सुनाते , शिवांगी को इस बात का ज्यादा अफसोस होता कि पति भी साथ नहीं देते उल्टा माँ और बहन के बहकावे में आकर शिवांगी पर ही गुस्सा निकालते हैं !!
एक दिन तो सविता जी का पारा ऐसा चढ़ा कि उन्होने शिवांगी के माता – पिता तक को भला – बुरा कह दिया था मगर शरद या तो चुपचाप सुनते या फिर अपनी माँ का साथ देते , अब तो शिवांगी को आदत हो गई थी ताने और उलाहनों की , ऐसा नहीं हैं कि शिवांगी को गुस्सा नहीं आता था
मगर पलटकर जवाब देना उसके संस्कारों में नहीं था , शिवांगी मन ही मन कुढ़ती , मायके में भी नहीं बता सकती थी उसके माता – पिता की भी उम्र हो चली थी इसलिए वह उन्हें कोई टेंशन नहीं देना चाहती थी !!
पति शरद का तबादला दूसरे शहर में हो गया जिस वजह से दोनों वहाँ जाकर बस गए , दूसरे शहर आकर छः महिने ही हुए थे कि सासू मां सविता जी को हार्ट अटैक आया और सविता जी का ऑपरेशन करवाकर सांस और ससुरजी को शरद यहीं ले आए !! बेटी सुमन की शादी हो गई थी तो अब सविता जी फोन पर बेटी को सारी राम कहानी सुनाती थी !!
इस कहानी को भी पढ़ें:
मम्मा , मम्मा कहते हुए चार साल की सोनू जब कमरे में आई तो शिवांगी की तंद्रा टूटी उसने सोनू को गोद में भर लिया और उसके साथ खेलने लगी !!
सविता जी बोलीं शिवांगी खाना बन गया हो तो लगा लो !!
शिवांगी रसोई से दाल , चावल , सब्जी – रोटी ले आई उतने में शरद भी आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया !!
शरद को देखते ही सविता जी बोली मुझे तो आजकल खाने में कोई स्वाद ही नहीं लगता यह बीमारों वाला खाना रोज – रोज खाया नहीं जाता !!
शरद बोला माँ आपको तला हुआ और चटपटा खाना खाने के लिए डॉक्टर ने मना करके रखा हुआ हैं इसलिए शिवांगी रोज यह खाना बनाती हैं , पकोड़े, वड़ा, समोसे यह सब हम भी नहीं खा रहे हैं बल्कि आपको तो यह सोचना चाहिए कि मेरी वजह से घर में तला खाना बन ही नहीं रहा हैं और कोई नहीं खा रहा हैं !!
पिछले साल आपकी बाई- पास सर्जरी हो चुकी है , आपके हार्ट की समस्या की वजह से घर में तेल , घी का इस्तेमाल काफी कम हो गया है , हम भी नहीं खाते !!
सविता जी बेटे का जवाब सुनकर चुप बैठ गई , दूसरे दिन सुबह जब शिवांगी कपड़े धोने को मशीन लगा रही थी सविता जी बोली बहु यह रोज – रोज मशीन लगाती हो जानती हो बिल कितना आता हैं ??
शरद ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था वह सुनकर बाहर आया और बोला हाँ माँ जानते हैं बिल कितना आता हैं और वह बिल मैं भरता हुँ इसलिए आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं हैं और अगर शिवांगी दिन भर कपड़े, बर्तन यही करेगी तो दूसरे काम कब करेगी ??
सविता जी फिर चुप बैठ गई !!
इस कहानी को भी पढ़ें:
शिवांगी के लिए यह पल जिंदगी के खुशनुमा पल थे जब पति शरद उसका साथ देता !!
आज शरद पहली बार शिवांगी के लिए गजरा लेकर आया था और अपने हाथों से उसे शिवांगी के बालो में लगाते हुए बोला शिवांगी हो सके तो मुझे माफ कर देना ……
शिवांगी बोली क्यूं ??
शरद बोला एक रोज जब मैं अपने कमरे में ऑफिस का काम कर रहा था मुझे बगल वाले कमरे से माँ की आवाजें सुनाई दी वह सुमन को तुम्हारे खिलाफ बातें बता रही थी और मैं जब कमरे से बाहर आया तो मैंने तुम्हें यह सब सुनते देखा , तुम अपने कमरे में आकर रो रही थी तब मुझे पहली बार सब समझ आया था कि अब तक मैंने जाने अनजाने में कितनी बार तुम्हारा दिल दुखाया होगा !!
शिवांगी बोली आप सब समझ गए और आपने मेरा साथ दिया यह मेरी जिंदगी के सबसे खुशनुमा पल हैं मैं इन्हें कभी नहीं भुलूँगी !!
दोस्तों आपको यह स्वरचित कहानी कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें तथा मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करें !!
आपकी सहेली
स्वाती जैंन