देखा दीदी कैसे इसका मुँह सूज गया, हमलोग के मायके आते ही, इसीलिए हमलोग यहां नहीं आना चाहते, लेकिन जब तक माँ पिताजी हैं हमलोग आयें भी ना…महारानी तो यही चाहती हैं हमलोग ना आयें, नीलिमा की तीन नंबर वाली नंद अपने से बड़ी बहन से खुसूर पुसूर कर रहीं थी नीलिमा के चाय नास्ता लाते ही चुप हो गई और हंस कर बात बदल गई… नीलिमा ने आते हुए सब सुन लिया था अब चोर सी बनी वहीं बैठी रही।
नीलिमा की पांच नंदें थीं… दो तो इसी शहर में थीं, गांव से सटे छोटा सा टाउन था, वो दोनों मार्केट निकलती तो अक्सर घूमते हुए आ जातीं।
कभी चाय पानी तो कभी नीलिमा के कहने पर खाने पे रुक जातीं।
तीन नंदे बड़े शहरों में रहतीं थीं… कभी कभार आना होता और जब वे आतीं तो फिर पांचो इकट्ठा होतीं,
और जब पांचों इकट्ठा होतीं तो नीलिमा की घीघी बंध जाती…पाँच बहनों के इकलौते दुलारे छोटे भाई पर की गई प्यार की बरसात को नीलिमा से सूद समेत वापस लिया जाता… पांचों बहनें जब बैठती दुनिया ज़माने की बुराईयां ऐसा लगता जैसे सबसे दयालू वहीं हैं।
नीलिमा को तो जैसे ज़माने भर की सीख दी जाती… जैसे उसे कुछ पता ही ना हो…
नीलिमा रोटी को तेज़ आंच पे पकाने से रोटी नर्म होती है।
नल को ऐसे साफ़ किया जाता है।
मैं ऐसे फ्रिज साफ करती हूँ।
मेरा बाथरूम तो चमकता है।
पहले तो जब हम थे यहां इतनी गंदगी नहीं रहती थी।
गंदगी वाली बात पे जैसे नीलिमा के मिर्चे लग जाते मन होता कह दे मैं तो खुरचती ही रहती हूँ, पर ये मकान मेरी सफाई से ज्यादा रिपेयरिंग मांग रहा हैं सालों से मार्बल की घिसाई नहीं हुई…
ना ही उसके आने के बाद कभी घर की पुताई हुई… एक कमाई ख़र्चे मुँह फाड़े खड़े उसमे कभी इस बहन को कर्जे तो कभी उस बहन को कर्जे दो।
नीलिमा खुद भी कमाती थी पर उसकी सैलरी कम थी फ़िर भी कम पड़ जाता… मध्यम वर्गीय कितना भी मेहनत कर ले ऊपर नहीं उठ पाता।
पर नीलिमा कुछ कह ना पाती एक तो जवाब देना उसके स्वभाव मे ना था दूसरे इस घर की बहू को गूँगा बहरा बन के रहना था आखिर सब उसके पति पे जान न्योछावर जो करते थे,
कभी एक नंद कहती भाभी के आ जाने के बाद कभी महीने दो महिने आके रह नहीं सकते मायके…ये बात वो वाली ननदें कहती जिनके तीन तीन बच्चे मायके मे ही हुए सालों साल मायके रहीं।
नीलिमा अपराध बोध से ग्रसित हो जाती… लेकिन वो भी क्या करती… उसकी अपनी नौकरी, बच्चे, सास-ससुर… हफ्ता दस दिन के लिए आती ही रहतीं उसकी बात अलग थी अब महीनों के लिया आना ये बात नीलिमा को समझ ना आती।
नीलिमा की सास ननदें एक बात बार बार कहतीं मेरा भाई जैसा था वैसी सुन्दर दुल्हन उसे नहीं मिली… कई बार सुनी बात पे नीलिमा चुप ना रह सकीं बोल पड़ी…
क्यूँ जिज्जी यूँ ही उठ के तो नहीं आ गई आपके घर, आखिर आप ही लोग पसंद कर के लाए हैं…
उसके इतना कहते ही सास बोल पड़ी…कभी कभी पसंद की हुई सब्जी भी घर लाने के बाद सड़ी निकलती है,
इतना सुनते ही नीलिमा के आँखों मे आँसू आ गए,
ऐसी कितनी सारी बातें वह अक्सर सुना करती…
कई सालों तक ये सारी बातें बर्दाश्त करते वह मौन रहने लगी थी… जब भी ननदें आती वह गूंगी बहरी बन जाती… ये देख नन्दों को सुनाने का नया बहाना हाथ लाग गया था…अब तो यही तकिया कलम बन गया था कि हमारा आना इसे अच्छा नहीं लगता मुँह सूज जाता है इसका…!
अब उसका मुँह ना सुजे नंदो के आते ही वह डर जाती कि अब कमी निकाली जाएगी उसमें और उसके हर काम में….
पीठ झुका के चलती है…
सिर्फ मोबाईल चलाती है….
काम धीरे धीरे करती है…
ऐसी कितनी बातें….
उनकी बातेँ नीलिमा को बार बार अपराध बोध से ग्रसित करतीं, कहां कमी रह जाती उसके कर्तब्यों में जो ये बातेँ सुनाने को मिलती…पति से कुछ भी कहना बेकार था… शुरू मे तो वे माँ बहनों के विरुद्ध कोई बात बर्दाश्त नहीं कर सकते, अब तो कुछ बाते कह लिया करती थी पर उनके आगे बोलना जैसे भैंस के आगे बीन बजाना।
नीलिमा के पति तो जैसे बहनों के लिए जीते…. कहीं दूसरे शहर घूमने भी जाना हो तो एक दो बहन और उनके बच्चे साथ जरूर जाते… पति पत्नी के बीच गोपनियता नहीं उनकी बहनें ही थीं… नीलिमा और बच्चों के साथ पारिवारिक समय में भी बहनों को वीडियो कॉल कर देते।
कभी कभी नीलिमा माँ पर गुस्सा निकालती… पाँच बहनों के भाइयों के जगह पाँच भाइयों के आँगन में व्याह दी रहती कभी ना कभी सब अलग हो जाते ये तो जिंदगी भर का रोना तो ना रहता,
इस बार पांचो बहनें इकट्ठा हुई तो एक अलग ही बात पर बहस होने लगी। पांचों बहने और बीच में दुलारे भाई…. नीलिमा किचन में लगी पड़ी थी… और उधर उसकी ही बुराइयाँ चालू थीं… नीलिमा भी जाकर वहीं बैठ गई…इस बार का मुद्दा था जब से इस घर में बहू आई थी, आगे ही नहीं बढ़े… नीलिमा के तो जैसे आग लग गई….
वह बिलबिलाते हुए बोली क्यूँ जिज्जी इस घर की तरक्की मैंने ही रोक दी क्या…
हाँ तो और क्या अभागिन ही तो हो… एक नंद दांत पिसते हुए बोली…. नीलिमा ने पति की तरफ़ देखा वो चुप थे… नीलिमा फट पडी और हाथ उठाते हुए बोली….
बस जिज्जी बहुत हुआ सारी बातें सुन लेती हूँ तो इसका मतलब क्या हुआ आप लोग कुछ भी बोलिएगा अभागिन मत कहिएगा ये तिरस्कार मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी,जब से इस घर में आई हूँ अपने पेट भर की रोटी कमाई है मैंने घर मे तरक्की नहीं हो रही इसमे मेरा दोष नहीं… लाखों लाख तो आपलोग कर्जे लेकर बैठी हैँ भाई से…अपने हिसाब से कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं फिर भी आपलोग कहने से नहीं चूकतीं… माँ पिताजी की दवाईयों की लंबी लिस्ट है बिना दवा के एक कदम भी ना चल सकें….
नीलिमा…. पति रितेश ने इतना तेज़ चिल्लाया की नीलिमा की आधी बातें मुँह में ही रह गईं…
तुम्हें किसने बुलाया है यहाँ , जाओ यहाँ से…. रितेश ने डपटा तो वह रोनी सुरत बनाए वहां से चली आई लेकीन आज ठान लिया था के आज चुप नहीं रहेगी।
रात को सबका बिस्तर पकड़ लेने के बाद रितेश आए तो नीलिमा मुँह फुलाते बैठी थी… ये भी उस घर के नियम था जब तक बहनें सोने चली ना जाएं रितेश कमरे मे ना आते…दो बच्चों के पिता बन जाने के बाद भी… रितेश के आते ही नीलिमा ने दो टूक बात कर ली मुझे अब आपके साथ नहीं रहना, अब मैं इतना हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकती, ना ही आजीवन अपराध बोध से ग्रसित होकर जी सकती हूँ….औऱ हाँ आज तो मेरे उपर चिल्ला दिया आज के बाद बर्दाश्त नहीं करुँगी आपका चिल्लाना भी… नीलिमा वार्न करते हुए बोली।
मुझे छोड़ दें या अलग घर लेकर दें… नीलिमा के अटल फैसले को देख रितेश समझ गया अब बात डांट डपट से नहीं बनेगी… तो वह नर्मी से समझाने लगा….
देखो नीलिमा मेरे अलावा मेरे माँ बाप और बहनों का कौन है मैं उन्हें नहीं छोड़ सकता… हाँ तुमको जैसे रहना है रहो… और उन सब की बातों को एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो … अब मैं अपनी तरफ़ से कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा और रहीं दीदी लोग कि बात तो आज का तुम्हारा रूप देख के अब शायद ही कुछ कह पाएँ….
रितेश के समझाने पे नीलिमा संतुष्ट तो नहीं हुई पर हिम्मत आ गई थी कि अब सही बात के लिए लड़ेगी, चुप रह कर घुटेगी नहीं, ना ही तिरस्कार बर्दास्त करेगी… वैसे भी घरेलु बाते छोड़ दिया जाए तो रितेश अच्छे स्वभाव का आदमी था… और फिर उसके दो प्यारे बच्चे भी तो थे उन्हें एक स्वस्थ्य जीवन भी देना था, रितेश को छोड़ने की बात बस उसे सबक दिलाने के लिए कही थी।
#तिरस्कार
मौलिक एवं स्वरचित
सुल्ताना खातून
मौलिक एवं स्वरचित
सखियों क्या नीलिमा गलत थी या उसके नंदो का उसके जीवन में हस्तक्षेप सही था अपनी राय जरूर दीजिए… धन्यवाद