बेटियां संस्कारों के साथ ही आगे बढ़ पाएंगी – मंजू तिवारी 

क्योंकि यह पुरुष प्रधान समाज है।,,,,

पापा सबके घर में केवल कनेक्शन है। आप भी घर में केवल का कनेक्शन करवा लो उसमें बहुत सारे देखने वाले प्रोग्राम आते हैं डीडी नेशनल पर कुछ भी नहीं आता,,,,, बोर हो जाते हैं।

 बोर क्यों हो जाते हो,,,, समाचार लिया लगा लिया करो ,,, उसमें सारी दुनिया की खबरें आती हैं।,,, जिससे तुम्हारी जानकारी बढ़ेगी,,,, पापा हमें तो मूवी भी देखनी होती है और सीरियल भी देखने होते हैं कक्षा में बच्चे बताते हैं जिनके यहां केबल कनेक्शन है। बहुत सारी नई मूवी और सीरियल आते हैं।,,, डीडी नेशनल पर भी तो बहुत अच्छे प्रोग्राम आते हैं जब भी खोलो कुछ ना कुछ आता ही रहता है।,,,, पापा ने अंजू से कहा ,,पहले अपनी पढ़ाई पर फोकस करो फिर पूरी जिंदगी आराम से प्रोग्राम देखना,,,,,

दादा पापा को न्यूज़पेपर पढ़ने के बहुत शौकीन थे इसलिए अंजू के घर में न्यूज़पेपर दादा के जमाने से आ रहा था,,,, अंजू के पापा ने टीवी में न्यूज़ व न्यूज़ पेपर पढ़ने की बचपन से ही आदत डलवा दी,,,,,, न्यूज़पेपर घर में आते ही अंजू और अंजू की बहन और पापा की नजर न्यूज़पेपर पर ही रहती कि कौन सबसे पहले पढ़े।  अंजू के पापा को जब कोई काम करवाना होता तो कहते पहले काम करके आओ उसके बाद न्यूज़पेपर पढ़ने को मिलेगा,, अंजू जल्दी-जल्दी से काम निपटाती और पापा से न्यूज़पेपर ले लेती,,,

उसे न्यूज़ पढ़ने और सुनने दोनों में रुचि पैदा हो गई,,,,, मम्मी न्यूज़पेपर खुद तो नहीं पढ़ पाती थी लेकिन अंजू पढती और मम्मी सुनती उसको,,,,,, कभी-कभी डीडी नेशनल पर भी प्यार मोहब्बत वाले सीरियल आ जाया करते थे,,,, पापा अंजू को कहते क्या यह सीरियल सामाजिक हैं क्या यह तुम्हें देखने चाहिए,,,,, अंजू को जवाब ना देते बनता,,,, धीरे-धीरे मूवी और सीरियल बहुत पीछे छूट गए अब अंजू का पूरा फोकस अपनी पढ़ाई पर,,,

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आज भी अंजू को अच्छे से याद है जब उसका स्कूल चेंज करवाया गया था 9वी कक्षा में बड़े स्कूल में एडमिशन कराया गया,,,, स्कूल घर से काफी दूर था इसलिए साइकिल दिलवाई गई,,, स्कूल के पहले दिन साइकिल पर अंजू और मोटरसाइकिल पर उसके पापा धीरे-धीरे उसको स्कूल तक छोड़ने गए,, जैसे ही स्कूल के सामने पहुंचे गर्ल्स कॉलेज था इसलिए जो लड़कियों में खाने पीने की रूचि होती है इस तरह के ठेले बहुत सारे लगे थे जिन पर इमली  कैथा अमरख इत्यादि खट्टी चीजें बेचने वाले खड़े थे पापा ने कहा

अंजू यह चीजें स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है इन चीजों से पेट में एसिड बनता है इनको कभी मत खाना अगर तुम्हें कभी भूख लगे तो सेव अमरूद लेकर खा लेना यह स्वास्थ्य के लिए भी अच्छे होते हैं पापा का यह कहना था कि अंजू ने गांठ बांध ली कभी भी इन चीजों को हाथ नहीं लगाया,,,,  घर से दूर साइकिल से स्कूल जाने लगे थे तो अंजू की सहेली भी एक थी दोनों घरो में एक जैसा ही माहौल था अंजू की मम्मी हमेशा कहती अंजू अगर तुमसे कोई लड़का कुछ कहे तो घर में आ कर बताना,,,,, डरने की जरूरत नहीं खींच के थप्पड़ लगा देना बाकी पापा देख लेंगे,,,,,,

जैसे कोई लड़का कभी कुछ कहता भी तो अंजू और उसकी सहेली अनसुना कर देती,,,, होगा यार मरने दे क्या करना है।,,,, अंजू और अंजू की सहेली अपने ही धुन में रहती इस तरह से कॉलेज से डिग्री कॉलेज तक का सफर हो गया कई बार अंजू और उसकी सहेली अपने साथ की लड़कियों को प्यार मोहब्बत की बातें करते सुनती तो उन दोनों को बड़ा आश्चर्य लगता यह तो पढ़ने लिखने का टाइम है। यह क्या बेकार की चीजों में पड़ी है और दोनों सहेलियां पर्याप्त दूरी बना लेते ऐसी लड़कियों से क्योंकि अब उन्हें समाज की भी समझ आ चुकी थी

और उन दोनों को अच्छे से पता हो गया था अगर बेटियां भटकती है तो माता-पिता आनन-फानन में चट मंगनी पट ब्याह कर देते हैं। बेकार की प्यार मोहब्बत से खुद का तथा माता-पिता का भी नाम खराब होता है। तो दोनों अपनी धुन में मस्त रहती पढ़ती लिखती खूब सारी बातें करती,,,, बाहर भी अकेले पढ़ने गई कभी भी कोई समस्या नहीं हुई ‌ मम्मी पापा ने इस तरह से अंजू की मजबूत चरित्र की नींव रखी,,,,, अपने छात्र सहपाठियों से हमेशा इज्जत और सम्मान ही प्राप्त हुआ,,,, और अपने माता-पिता की विश्वास की पात्र भी बनी उसके ऊपर कभी भी कोई बंदिशे नहीं लगाई ,,,,, उच्चतर शिक्षा प्राप्त की,,,,, इसलिए अच्छे विवाह प्रस्ताव चॉइस भी उसके हाथ में थी,,,, और अंजू का वैवाहिक जीवन भी बहुत ही सफल है। क्योंकि अंजू ने अपने चरित्र को एक दर्पण के समान सहज कर रखा,,,,

जो संस्कार मम्मी पापा ने अंजू को दिए वही संस्कार वह अपने बेटों को देना चाहती हैं। अंजू के बच्चे भी न्यूज़ चैनल डिस्कवरी या कार्टून देखना ही पसंद करते हैं। जो अंजू देखती है। अंजू नहीं चाहती कि टेलीविजन की अश्लीलता का असर उसके बच्चों पर पड़े और परिपक्व होने से पहले ही परिपक्व हो जाए हर चीज का एक समय होता है।,,,, ऐसे संस्कार डालने के लिए अंजू अपने माता-पिता को बारंबार प्रणाम करती है। ‌जिसके कारण उसका जीवन आज सुखद है।

 

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यहां पर मैंने यह बताने का प्रयास किया है यदि अंजू के संस्कार बिगड़ जाते,,, उसकी मम्मी पापा सबसे पहले उसका विवाह करते शायद पढ़ाई लिखाई तो पूरी ही नहीं हो पाती कैरियर की तो बात बहुत दूर है।,,,,,,, जब एक बेटी के चरित्र पर दाग लगता है। वह जिंदगी भर नहीं धोया जा सकता उसे हर पल सुनना पड़ता है उसके मां-बाप का जीना दूभर कर देता है समाज,,, जिंदगी बिल्कुल नर्क बन जाती है माता-पिता और उस बच्ची की,,,, लेकिन वही समाज बेटे के संस्कार बिगड़ने पर उसके माता-पिता और उस पर उंगली नहीं उठाते जबकि दोनों ही बराबर के दोषी हैं।,,,, क्योंकि यह पुरुष प्रधान समाज है।,,, 

 अपनी बेटियों में ऐसे संस्कार डालें जो पत्थर की लीक बन जाए अपनी शिक्षा पूरी करें कामयाबी की बुलंदियों को छुएं,,, पुरुष वर्ग से कंधे से कंधा मिलाकर चले,,, एक से एक अच्छे रिश्ते उनके सामने पड़े होंगे और चॉइस बेटियों की होगी,,,, 

समय कोई सा भी हो पुराना हो या नया हो चरित्रवान स्त्री की इज्जत हमेशा हुई है और होगी,,,, अगर चरित्र बिगड़ गया तो समाज कभी भी बेटियों को बक्सेगा नहीं,,,, इसलिए समय है पढ़ने का और आगे बढ़ने का,,,, 

बच्चे अक्सर किशोरावस्था में ही भटकते हैं यह समय उन पर ध्यान देने का होता है फिर उसके बाद वह आराम से आगे बढ़ जाते हैं इसलिए आप अपने बच्चों पर ध्यान दें उनके अच्छे आचरण बनाएं घर में भी अच्छा माहौल बनाएं बच्चों को एक उद्देश्य दें खुद भी मर्यादा में रहे क्योंकि बच्चे जो घर में देखते हैं वही उनके संस्कार बन जाते हैं बेटा और बेटियां दोनों के लिए ही संस्कार बहुत जरूरी है। लेकिन अगर बेटी के संस्कार डगमगा ते हैं तो उसका पूरी पढ़ाई लिखाई कैरियर चौपट हो जाता है बेटियां अपने संस्कारों के साथ ही आगे बढ़ पाएंगी,,,, इसलिए बेटियां संस्कारों के साथ उन्नति के पथ पर अग्रसर हो नए कामयाबी के आयाम स्थापित करें,,,,

#संस्कार

मंजू तिवारी गुड़गांव

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