तलाक हो गया तो दुनिया भर में बदनाम हो जाएगी…कह कह कर मेरे घरवाले मुझे ऐसे पति को झेलने के लिए मजबूर करते रहे जो तन मन धन से कभी मेरा रहा ही नहीं…शादी की पहली रात बस इतना जरूर बता दिया मुझे–मैंने शादी पारिवारिक दवाब में की है, परिवार की बहू तुम हमेशा रहोगी पर मुझसे पति के किसी भी कर्तव्य की उम्मीद मत रखना..। मेरे वैवाहिक जीवन की चांदनी छिटकते ही ग्रहण की आगोश में समा गई…।साल दो साल तो इस उम्मीद में जीती रही कि साथ रहते रहते तो इंसान को दीवारों से भी प्यार हो जाता है शायद इन्हें भी हो जाए…पर मेरी उम्मीदें झुठी ही सिद्ध हुई।
शादी के दो साल हो गए थे अब बच्चे ना होने का भी इल्जाम आने लगा था मुझ पर,किसको कहती कैसे कहती कि इतनी सिद्ध स्त्री तो हूं नहीं कि तपस्या करके बच्चा हासिल कर लूं…।पर मेरी जिंदगी पहले ही कम त्रासदी से भरी थी अब बांझपन का भी कलंक मेरे माथे पर चिपकाया जाने लगा…।बेचैनी जब दिल के रास्ते होते होते दिमाग पर हावी होने लगती और नसें फटने को होती तो निकल जाती घर से बाहर..कभी मंदिर में बैठ जाती कभी पार्क में तो कभी बेमतलब माॅल में घुमती रहती।
इससे मेरी कमियों के फेहरिस्त में एक और उपलब्धि जुड़ने लगी थी चरित्रहीनता की…और हद तो तब हुई जब ससुराल तो ससुराल मायके वाले भी उंगली उठाने लगे मुझपर..लग गया मुझे की अब बोलने का वक्त आ गया है…और जैसा मुझे पहले से पता था उन्होंने मुझे अपनी परिस्थितियों से तालमेल बिठाकर रहने का ही सुझाव दिया..और कहा तलाक हो गया तो सारी दुनिया में बदनाम हो जाएगी…मेरे जीने मरने से ज्यादा महत्वपूर्ण था बदनाम ना होना— महिमा अपनी राम कहानी बताते बताते बिल्कुल भूल ही गई थी कि सामने बैठा व्यक्ति पुरूष हैं और वो भी जिससे वो उंगली पर गिनने लायक बार ही मिली है ।
वैसे सोमेश को अक्सर वो पाॅर्क में बैठा पाती थी..पर बातचीत तब शुरू हुई जब एक दिन भाई से फोन पर बात करते करते वो चिल्ला उठी–मेरी परेशानी बांट नहीं सकते तो फोन करके उपदेश भी मत दो…जैसे काट रही हूं आगे भी काट लूंगी।
एक ही कश्ती पर सवार सोमेश को समझते देर ना लगी कि महिमा भी उनके जैसे हालात से गुजर रही है…अंतर सिर्फ इतना था कि सोमेश अपनी पत्नी को टूट कर चाहता था पर वो उसके साधारण रूप रंग और रहनसहन की वजह से उससे छुटकारा पाना चाहती थी..शायद एक दो मुलाक़ात में ही अपने जीवन के बारे में सोमेश का सबकुछ बता देना ही महिमा को इतनी हिम्मत दे गया था कि वो भी उससे आगे अपने जीवन की पोथी खोल बैठी थी।
दो दिन पहले ही तो लगभग धक्के देकर निकाल दिया था ससुराल वालों ने और सोचा होगा कि जाएगी कहां मुफ्त की नौकरानी शाम तक तो वापस आ ही जाएगी…मायके से पहले ही आदेश आ रखा था कि जान चली जाए तो चली जाए..इस चौखट पर कदम ना रखना..तो लाचार बेबस सी आ बैठी थी..दिन के बारह से शाम का पांच बज गए और सोमेश कब उसकी बेख्याली में उसे अपने घर ले आए पता भी नहीं चला और आज थोड़ी सामान्य हुई तो सारा किस्सा कह डाला।
उसके लिए सोमेश पानी लेने गया तो वो पेपर पलटने लगी.. आश्चर्य में डूब गई जब “पति” का उसके लिए इश्तिहार दिखा…
तभी ध्यान आया कहा था उसने एक बार दो तीन साल निभा लो..फिर घरवाले खुद मुझे तुम्हें तलाक देने कह देंगे,फिर मैं भी अपनी मर्जी से शादी कर पाऊंगा और तुम भी स्वतंत्र हो जाओगी..।तो मुझे उसी स्वतंत्रता का मुलम्मा देने के लिए ढूंढ रहा है ये कापुरूष !!
सोमेश जी…जब तक मैं अपने लिए कोई व्यवस्था नहीं कर लेती आप मुझे सहारा दे सकते हैं?
आपकी परिस्थिति मैं नहीं समझूंगा तो भला कौन समझेगा मैं पूरी तरह आपके साथ हूं..पर मैं नहीं चाहता कि मेरे साथ रहकर आपकी बदनामी हो और कल को लोग वो बोलें जो था ही नहीं… लेकिन आप परेशान ना हों मैंने एक संस्था से बात की है जो औरतों की मदद करतीं हैं आप वहां जबतक चाहे यह सकती है
एक ये पुरूष हैं जो अभी उसकी बेबसी का कोई भी फायदा उठा सकता था और एक उसका पति जिसने उसकी जिंदगी को बेबसी का पर्याय बना दिया,आदर से भर उठा महिमा का मन सोमेश के प्रति।
हैलो… सुनो मेरे नाम का इश्तिहार आज दिया तो दिया आगे देने की कोशिश भी मत करना और हां मैं इसी शहर में रहुंगी और तुम्हें तलाक भी नहीं दूंगी..सुना तुमने..जबतक अपनी हर त्रासदी का बदला नहीं ले लेती तुमसे तब तक तलाक नहीं दूंगी..तिल तिल कर मारा है तुमने मुझे..अब मेरी बारी…इतना हक तो तुम्हारा बनता है सो काॅल्ड पतिदेव जी..
–महिमा फोन पर अपनी भड़ास निकाल कर बहुत हल्का महसूस कर रही थी।
उसका सर्वस्व अब नए जीवन की ओर बढ़ चुका था।
#मर्यादा
मीनू झा