पहला थप्पड़  –  स्मिता सिंह चौहान

“आज भी कुछ हुआ है भाभी जी “रिंकी शालिनी की कामवाली उससे पूछती है ,”कुछ नहीं हुआ ,तू अपना काम कर”शालिनी कहते हुए रसोई से बहार चली गयी ।उसकी आँखे लाल और सुजी हुई थी ,जिस मुँह को उसने दुपट्टा से पल्ला रखके ढक रखा  था ,उसमे से उसके गालो पर पड़े निशान उसकी कहानी बया कर रहे थे । उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था ,जैसे थक गया हो ,फिर भी उसने घरवालों का नाश्ता बनाया।

     शालिनी सोफे पर बैठकर अपनी ८ साल की बेटी को एकटक देख रही थी ,लेकिन आज उसकी आँखों के सामने अपनी बेटी की वह तस्वीर बार बार उभर रही थी ,जब कल रात उसे पीटते देखकर उसकी बेटी ,रोते हुए इधर उधर भाग के कह रही थी ,”दादी आप पापा को बोलो न मम्मी को न पीटे ,बुआ आप चलो ना,पापा मम्मी को बहुत मार रहे है “फिर वह विवेक {शालिनी का पति }से बोली “पापा प्लीज मम्मी को छोड़ दो।” लेकिन विवेक को अपने गुस्से में कहा किसी की सुनता है ,उसकी आँखों में आंसू आ गए और वह फफक के रोने लगी ,तभी रिया के छोटे छोटे हाथो ने उसे समेट लिया। “मां ,आप मत रो,जब में बड़ी हो जाऊंगी ,मै पापा  को बहुत डाँठूगी ।

       शालिनी कुछ देर उसे गले लगा के रोती  रही ,फिर अपने को सँभालते हुए बोली ,”जाओ ,अपने कमरे में बैठ कर पढ लो। “रिया के वहाँ से जाते ही शालिनी अतीत की यादो में खो गयी।

                                                          कितने अरमानो से शालिनी की शादी ,उसके माँ बाप ने विवेक के साथ की ।शालिनी के माता पिता बहुत ही संस्कारी थे ,और उतने सीधे भी ।शालिनी को विवेक ने एक शादी में देखा था ,जिसके बाद से ही वह २ साल तक उसके घरवालों के पीछे पड़ा रहा शादी के लिए ।शालिनी उस वक़्त ऍम ए फर्स्ट ईयर में गयी ही थी ,वह अपनी पढाई  पूरी करना चाहती थी ,इसलिए उसने शादी के लिए मना कर दिया था । विवेक अपने घरवालों को भेजता रहा रिश्ते को हां करवाने ।

      यह सब देखकर कई बार शालिनी की माँ बोल पड़ती “कितना पीछे पड़ा है वह तेरे ,अभी मना करने के बावजूद भी कही शादी नहीं करना चाहता ,भई हमें तो लड़का भा गया ।तू हां करे तो हम भी हां कहे ,खुश रखेगा वह तुझे। “शालिनी की पढ़ाई पूरी होते ही रिश्ते को हां कर दिया।



                          शादी के १० दिन बाद ही उसको गाल पर पहले थप्पड़ ने ही उसे उसके प्रति विवेक के प्यार का इज़हार कर दिया था ।छोटी सी बात तो थी जब विवेक की माँ ने कहा “भई ,पता नहीं विवेक हमारी गुड़िया {ननद }इतना काम करती है ,लेकिन पता नहीं लोग अपनी लड़कियों  को काम करना नहीं सिखाते  क्या ?तेरी ज़िद की वजह  से शादी कर दी तो अब  हमें बहु का सुख भी नहीं मिलेगा। “

    विवेक बोला “शालिनी माँ क्या कह रही है ?ऐसा कौन सा काम है ,घर में जो तुम से नहीं हो पाता।”इससे पहले शालिनी कुछ बोलती सासुमा बोली “अब ये तो कहेगी ,मैं काम करती हूँ ,और तू भी इसकी ख़ूबसूरती पर लटटू  होकर हां मैं हां मिला देगा ।चल गुड़िया काम शुरू  करे हम तो ,आह मेरे पैरो का दर्द। “

       “लेकिन “कहते ही शालिनी के कान और दिमाग सुन्न  हो गया ,उसे समझ नहीं आया क्या हुआ ?विवेक बोला “सुबह ,सुबह दिमाग ख़राब कर दिया ,सिर्फ ख़ूबसूरती से काम नहीं चलेगा मैडम ।अपनी ज़िम्मेदारिया समझो ,और आज के बाद ये सब कलेश नहीं चाहिए मुझे “कहते हुए विवेक ऑफिस चला गया। वह पहला थप्पड़ था जो उस दिन शालिनी को गाल पर नहीं  उसकी आत्मा पर पड़ा था।

                                          शालिनी पूरा दिन रोती रही,घर का काम भी करती रही ,यु ही निढाल सी ,लेकिन किसी ने उसे यह भी नहीं पूछा  की  खाना खाया की नहीं ।किसी ने दो शब्द प्यार के भी नहीं बोला ,उसके घर में काम करने के बाद भी यह जताते  रहे  की “थप्पड़ मारके उनके लड़के ने अपने को जोरू के गुलाम के लेबल  से बचा लिया ,आज उसने मर्द होने का प्रमाण दिया।

          “शालिनी ने शाम को अपनी माँ को फ़ोन किया लेकिन जैसे ही वह बोली “माँ ,यह घर हमारे घर से बिलकुल अलग है ,क्या पापा ने कभी आपको थप्पड़ मारा है? ” तभी वहाँ से माँ  सकपकाहट के साथ  बोली “शालिनी ,बेटा यह सब छोटा मोटा तनाव हर घर मैं होता है ,अभी नयी नयी गृहस्थी है धीमे धीमे सब ठीक हो जायेगा ।तेरे पापा का स्वभाव नरम है ,लेकिन कहासुनी तब भी हो जाती है ।दामाद जी अच्छे है ,गलती से हाथ उठा दिया होगा ,बेटा थोड़ा सहन करना पड़ता है गृहस्थी के लिए ।हमने तुम्हे डोली मैं भेजा है लेकिन ——-“यह सुनते ही शालिनी ने फ़ोन काट दिया ,उसे समझ आ गया था ,की माँ आगे क्या बोलेंगी।

                           आज १० साल मैं उसे अब याद भी नहीं की वह हर छोटी बात के लिए कितना पिटी ,आज भी विवेक वैसा ही है किसी बात का सोल्युशन सिर्फ थप्पड़ ,२ -३ दिन बाद सॉरी बोल दिया ,बाहर डिनर कर लिया ,चलो तुम्हरी पसंद की ड्रेस ले लेते है।



           “अरे यार ऑफिस का प्रेशर था “तुम तो जानती हो माँ को ,वो तो ऐसी ही रहेंगी ,लेकिन तुम तो समझदार हो गुड़िया तुम्हारे रहते भी काम करे तो भाभी होने का क्या मतलब “यही सब कहता था बाद में,  अपनी बात को ऊपर रखने के लिए ,लेकिन उस थप्पड़ का ज़िक्र भी नहीं होता था । उसके बाद  शालिनी क्या महसूस करती थी? इस बात का कोई मतलब नहीं था।

    शालिनी भी कुछ नहीं कहती ,उसे डर लगता की अभी बात सम्भली है ,कही मेरे कुछ कहने से फिर किसी बात पर विवेक नाराज़ हो जाए तो ,या फिर मार पीट हो जाए तो। लेकिन उस थपपड की गूँज आज भी उस के कानों में गूँजती हैं, अभी वह यह सब सोच ही रही थी की आवाज़ आयी “शालिनी नाश्ता नहीं बना क्या? अभी ,भूख लग रही है ।गुड़िया का पकोड़े खाने का मन है ,पकोड़े बना दो ।”सासुमा बोली ।

     शालिनी कुछ नहीं बोली, १५ मिनट बाद सासुमा अपने कमरे से बाहर निकली ,रसोई मैं झाकते हुए “रिंकी पकोड़े तू क्यों बना रही है ,शालिनी कहा है ?” सासुमा बोली ।

     “भाभी की तबियत ठीक नहीं है ,मैं बना रही हूँ ,वो भी आराम से खा लेंगी माँजी”रिंकी बोली।

        “अब बताओ ,ये तो नखरे है इसके ,”ड्राइंग रूम की तरफ आते हुए ,शालिनी को देख के बोली “क्या बात हो गयी ?अब सोफे से नहीं उठोगी ,क्यों गुस्सा दिलाती हो विवेक को ?”___विवेक ,विवेक कहा है ?”विवेक के कमरे की तरफ जाते हुए ,{आज संडे है ,विवेक देर  से उठता है }उठजा बेटे ,तू उठेगा शायद तभी नाश्ता मिले है हमें। महारानी सोफे मैं बैठी है ,तेरी तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी ,रोज़ की कीच कीच है इस घर मेँ।”

        विवेक बिस्तर से उठा ,”इसकी तो “गुस्से मेँ कमरे से बाहर निकला ही था, की तभी शालिनी की नज़र रिया पर पड़ी जो अपने कमरे के दरवाजे से छुप के देख रही थी ।जैसे उसकी आँखे उससे कह रही हो माँ मुझे भी डर लग रहा है अब तो ,शालिनी रिया की आँखे देख कर सिहर उठी ,एक अजीब सा अहसास था वह ।

  विवेक ने जैसे ही हाथ उठाया तभी ,शालिनी ने अपना मोबाइल टी वी पर पटका ।उसका यह रवैया देख कर  विवेक बोला “क्या पागल औरत है ,टी वी तोड़ दिया ।अब क्या इसका पैसा तेरा बाप देगा “उसकी तरफ से हटा और टूटा मोबाइल और टी वी देखने लगा हाथो मेँ उठा के।



   “हे राम! कितना नुक्सान हो गया ,कुछ अक्ल है की नहीं तुझे शालिनी “सासुमा  बोली ,लेकिन जैसे आज तो शालिनी कुछ और ही थी ।

  चिल्ला कर बोली “बस कीजिये ,आप लोग ,१० साल मे आज आपका   टी .वी टूटा तो नुक्सान हो गया ,१० साल से इस घर मे मेरे  शरीर से   लेकर आत्मा तक टूट के बिखर गयी ,वह नुक्सान नहीं है। वह आज तक किसी ने नहीं गिना ,मेरी बेटी के आंसुओ और उसके छोटे से मन पर जो ज़ोर पड़ा वह किसी ने नहीं गिना ।जिस दिन विवेक ने मुझे पहला  थप्पड़ मारा ,तब आपकी आह नहीं  निकली ।जैसे आज टी वी के टूटने में निकली तो आज कुछ और ही कहानी होती मेरी ,और विवेक तुम ,तुमने जैसे इन टुटी हुई चीज़ो को देखा वैसे एक जीते जागते इंसान का टूटना तुम कैसे नहीं देख पाए?तुम्हरे टुटी हुई चीज़ो की कीमत तो मेरे पापा मांगने पर दे भी देंगे लेकिन मेरे टूटने की कीमत कौन देगा ?तुमहारी माँ ,दे पाओगे तुम ।मेरी माँ ने कहा था धीमे धीमे सब ठीक हो जायेगा ,और उस ठीक होने का इंतज़ार होने का १० साल इंतज़ार करती रही ,कितनी बेवकूफ थी मै।तुम्हे तो  मुझे मार पीटकर अपने मर्द होने का अहसास मिलता हो ,लेकिन मुझे अब और सहन करके तुम्हारे घर की अच्छी बहु होने का ख़िताब नहीं चाहिए। में अपनी बेटी के सामने अपने को कमज़ोर दिखाकर उसे कमज़ोर नहीं बना सकती। अगर अब मैंने सहन कर लीया  तो कल को रिया भी किसी आदमी से पीटने को अपना भाग्य मान लेगी ।”

  “ऐसा है ,ज्यादा बोल रही है ,न तो निकल जा इस घर से ,अभी “विवेक बोला ।”मैं घर से निकल जाऊँ,क्यों ?अगर मैं एक बार अपनी आवाज़ को बुलंद कर दू ,तो तुम्हे इस घर से निकलना पड़ेगा। बाहर निकलने की देर है ,तो बोलो मैं बाहर जाऊ या तुम लोग अपनी गलतियों का पश्च्याताप करोगे ,और आज के बाद अगर मुझे किसी ने हाथ भी लगाया तो मजबूरन मुझे कानूनी अधिकार मांगने पड़ेंगे ।शायद जो आप जैसे पड़े लिखे ,समाज मैं शरीफ बनकर रहने वाले लोग नहीं चाहेंगे। ” शालिनी बोली।

           विवेक को शालिनी का  यह सब कहना अच्छा  नहीं  लगा ,उसका मेल ईगो कैसे उसका बोलना बर्दाश्त करता? ,,उसने शालिनी का हाथ खींचा ।

            विवेक का दिमाग और कान सुन्न हो गए,जोर की एक आवाज़ से कमरा गूँज उठा, सास और ननद के मुँह से भी आवाज़ नहीं निकली, शालिनी के तेवर देखकर आज तो  सब का ईगो, जुबान, ताने सब एकाएक शान्त हो गये।शालिनी ने आवाज़ लगाते  हुए कहा “रिंकी पकोड़े ले आना मेरे और रिया के लिए ,भूख लगी है ।”शालिनी आज समझ चुकी थी की ,अत्याचार करने वाले से ज़्यादा उसको सहने वाला बुरा होता है ।वह वैसे भी सब अच्छा  करने के बाद भी एक बुरी बहु और बुरी पत्नी ही रही लेकीन आज  एक बुरी बहु बुरी पत्नी  बनना स्वेच्छा  से उसे मंजूर था  ,लेकीन उसे एक बुरी माँ बनना मंजूर नहीं था जो अपने  लिए नहीं लड़ सकी।

      दोस्तों ,कई बार हम अपने का कमज़ोर मानकर किसी की ज़्यादतियों का बढ़ावा देते है की शायद हमारे सहने से वह हमारी अच्छाई  को  समझ जायेगा और  एक दिन सब ठीक हो जायेगा। सहने का मतलब यह नहीं होता की हम किसी को अपनी आत्मा को छलनी करने का अवसर दे।  कभी कभी हमे उसी भाषा मे ही जवाब देना पडता हैं, जिस भाषा मे वह हमसे सवाल करते हैं।हमारी लड़ाई हमें खुद ही लड़नी होती है। मेरी यह कहानी अगर आपके दिल को छुए तो अपनी कमेंट ,कमेंट बॉक्स मैं ज़रूर दे।

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

 

 

 

 

5 thoughts on “पहला थप्पड़  –  स्मिता सिंह चौहान”

  1. Maza aa gaya. Sahi bar h pahle hi thappad pe awaz buland kar lo to same wala agli bar sochega hath uthane k pahle.

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  2. बहुत ही अच्छी लगी, यही काम थोड़े पहले करने चाहिए थे।

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  3. कहानी बहोत अच्छा हैं. जब पहला थप्पड पडा तब हि शालिनी आवाज उठाती तो कहानी कुछ और होती, लेकीनं देर आये दुरुस्त आये. 👌👌🙏😊

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  4. Maine bhi iss Bar apne liye stand liya or mujhe iss bat ka koi regret nhi h kyuki Mene 8 Saal tk sbki seva sb kch Kiya lkn jis din Mene juban kya kholi sb mere khandan or mere upr case krne k liye aa gye Mera mere husband se divorce krane pr aa gye Mene bhi soch liya ki itna krne k bad buri ki buri hi Rah gyi to phr ache se hi bura bna jaye

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