आजादी पर एक माँ, बहू और पत्नी का भी हक है… – सुल्ताना खातून 

मम्मी यूनीफॉर्म आयरन है ना…मुझे जल्दी निकालना है… ईन्डीपेन्डेंस डे है ना…

मम्मी मेरे जुते….

अनीता मेरी घड़ी नहीं मिल रही…मेरी टाई..

जल्दी नाश्ता लगा दो.. देर ना हो जाए…

बहू इस बार मुझे भी जाना है आजादी की जश्न मनाने इस बार रिटायर्ड लोग भी आमंत्रित है फैक्ट्री में… मेरी भी हेल्प कर दो …

अरे बहू मैं तो इस बार सत्संग के सहेलियों के साथ आजादी का महोत्सव मनाऊंगी… कुछ चाय पानी का इन्तेजाम कर लेना…

मम्मी मेरी बस आ गई, मैं जा रही हूं …

मम्मी मैं भी चलता हूं और गले लग के हैप्पी बर्थ-डे माँ… आइ लव यू …. बाइ

अनिता चाय ठंडी हो गई… मुझे नहीं पीना अब… ऑफिस में ही पी लूँगा… आशुतोष ने कहा और जाने लगे… अनिता ने एक बार उनके चेहरे पर नजर डाली… सपाट चेहरा…

आशुतोष आज मेरा बर्थ-डे है… कहते हुए अनिता ने ठंडी साँस ली…

अरे हाँ जन्म दिन मुबारक हो और वैसे भी अब  सब चीजों की उम्र नहीं रही… चलता हूं..

कहकर आशुतोष चले गये… सब चले गए आजादी का महोत्सव मनाने उसे छोड़कर उसने सोचा क्या उसे आजादी का एक दिन भी नहीं मिलेगा एक दिन भी वह वैसे नहीं जी सकती जैसे वह चाहती है…आज़ादी तो पूरे देश को मिली थी… क्या सिर्फ बहू… माँ…और पत्नी…छोड़कर….

सब चले गए घर खाली हो गया बिलकुल उसके तरह… कितना खालीपन है उसके वज़ूद मे चाह के भी उसे भरा नहीं जा सकता और अब वह उसे भरने की कोशिश भी नहीं करेगी…

यह खालीपन तो जैसे उसके जात का हिस्सा बन गया है उसी से उसे लगाव सा हो गया है… सोचते हुए वह अपने कामों मे लग गई…. घर समेटना… किचन के काम… झाड़ू… पोछा… बर्तन….



कपड़े धोना… हाँ और आज स्पेशल डिनर भी बनाना था आज उसका बर्थ-डे जो था… और शाम मे नंद को भी तो आना था…

यही थी उसके लिए जश्न ए आजादी….

पढ़ते पढ़ते उसने ठंडी साँस भारी और डायरी बंद कर दी…

उसे डायरी लिखने का शौक था पर घर के कामों में कभी लिख नहीं पाती.. .

फिर भी कभी कभार लिख लेती और डायरी छुपा दिया करती थी….

परसों पंद्रह अगस्त था और आज बैठी पिछले दो साल पहले लिखी डायरी के पन्ने पढ़ रहीं थीं उसके बाद लिखना ही छोड़ दिया था…

मम्मी…. आरव कमरे मे झांका…

हाँ बेटा… बोलो… उसने झट से डायरी छुपाई…

वो पापा आइस क्रीम लाए हैं आपने खाना है…

उसने पूछा…

नहीं बेटा मेरा गला खराब है मैं नहीं खाउंगी…. कहकर वह लेट गई…

आरव कमरे में आने लगा तो वह फिर उठने लगी…

वह आकर उसके गोद मे सर रख कर लेट गया..

वह अब 18 साल का होने वाला था और शादी के दस सालों बाद पैदा भी हुआ था… एक वहीं था जो उसके करीब था..! मानवी 12 साल की थी पर थोड़ा बचपना था उसमे… वह उसका सर सहलाने लगी…

मम्मी मुझे आपकी बहुत फिक्र रहती है मैं हायर स्टडी के लिए बाहर चला  जाऊँगा फिर मुझे आपकी फिक्र लगी रहेगी… वह उसका हाथ पकड़ के कहने लगा…



अरे मुझे क्या होगा… मैं बिल्कुल ठीक रहूंगी बस तुम किसी बात का टेशंन नहीं लेना दिल लगा कर पढ़ना…

अनिता अपने सास ससुर की पसंद थी व्याह कर आई तो शादी की पहली रात ही आशुतोष ने उसे जता दिया वह किसी और को पसंद करते थे पर माँ पापा को मना नहीं पाए… पापा तो मान भी जाते पर माँ मान के नहीं दे रही थी… वह एक विजातीय और अँग्रेजी मीडियम पढ़ी लड़की को हरगिज अपनी बहु नहीं बनाना चाहती थी और आखिर माँ की जिद जीत गई और आशुतोष का प्यार हार गया… पर आशुतोष ने कभी उसे दिल से नहीं अपनाया एक तो वह हिंदी मीडियम और ऊपर से माँ को पसंद आ गई थी अगर वह बीच मे ना आती तो शायद माँ मान जाती…. आशुतोष को यही लगता और इसी चक्कर मे उसने अपनी पूरी जिंदगी मोहब्बतों के रंग से खाली कर लिए… सास ससुर ठीक  थे  पर पति की जगह कोई नहीं भर सकता…

कल पंद्रह अगस्त था उसने अलार्म सेट कर के रख दिया और सोने की कोशिश करने लगी आशुतोष सो रहे थे आज पहली बार उन्हें सुकून से सोते देख रहीं थी वर्ना सोते मे भी चट्टान सी सख्ती रहती उनके चेहरे पर… पता नहीं कब सोई थी…

उठी तो दिन निकल आया था वह हड़बड़ा गई … साइड टेबल पे देखा तो घड़ी गायब थी… वह नीचे भागी… आज तो सबको देर हो जाएगी…

नीचे आई तो देखा मानवी तैयार है और माँ जी उसके बाल बना रहीं हैं… पापा जी अखबार साइड पे रखे बिना चूं चरां किए चाय के साथ ब्रेड और अंडे खा रहे हैं…

उसने किचन मे झांका आरव और आशुतोष नाश्ता कर रहे थे… आशुतोष तैयार थे जबकि आरव घर के कपड़ों मे था…

वह हैरान होती हुई कुछ पूछती कि तभी बेल बजी,,, आरव ने ही दरवाजा खोला देखा तो सामने वाली की मासी थी,,, आरव समझा रहा था देखे आंटी टाइम पे आ जाएगा और झाड़ू , पोछा, बर्तन, और कपड़े इतना काम है आपका बल्कि काम आज ही से कर लें…

तभी मानवी की बस आ गई वह चली गई… आशुतोष अपना बैग उठाए और उसके तरफ आए और कहा…अनीता शाम को तैयार रहना रेस्टोरेंट चलेंगे तुम्हारा बर्थ-डे सेलिब्रेट करने… वह हैरान ही तो रह गई आशुतोष का ऐसा बदला रवैय्या…

हैप्पी इंडीपेंडेंस डे बहू..

पापा जी की नजर उसपे पड़ते ही बोल पड़े …

माँ जी भी बोलीं आज मैं तेरे साथ स्वतंत्रता दिवस मनाउंगी…

आरव भी आकर उससे लिपट गया हैप्पी बर्थ-डे मम्मी…और उसे हैरान देखकर बोला… देखिए मम्मी आज का सारा काम मैंने और पापा ने मिलकर किया है…



आप भी फ्रेश हो लें आपका नाश्ता भी तैयार है… वह चुपचाप कमरे मे जाने लगी…वैसे मासी का आइडिया पापा का था आरव ने उसे सुनाया…

वह कमरे मे आ गई… देखा तो डायरी गायब थी उसने ठंडी साँस ली… और नहाने चली गई… वापस आई तो आरव कमरे मे नाश्ते की ट्रे लिए मौजूद था आरव ने हाथ पकड़ कर उसे बेड पे बैठा दिया और सामने नाश्ता रख दिया… शादी के बाद का उसका पहला दिन था लगा जैसे उसे माँ ने खाना परोसा हो उसकी आँखे भीग गई..

वह बोली…. क्या कर रहे आरव और क्यूं कर रहे हो…

आरव बोला… वहीं कर रहा हूं जो पापा को बहुत पहले करना चाहिए था…. आपको इस घर मे अपनापन का एहसास दिला रहा हूं मम्मी..

आप जिसकी हकदार हैं… वैसे आप भी बहुत बुजदिल हैं आपने थोड़ी सी हिम्मत दिखाई होती तो सब कुछ बहुत पहले आज के जैसा होता…

मम्मी मैं आपके लिए बहुत परेशान था सॉरी मम्मी पर आपकी डायरी मेरे हाथ लग गई बस सबको डायरी दिखाई और एक इमोशनल लेक्चर दिया बस सब ठीक हो गया… वैसे मम्मी आपने किसी से कहा नहीं तो ये अच्छा किया लिख दिया… पर मम्मी अपने हक के लिए लड़ना सीखे वर्ना आपको आपकी बहू भी आपको बेवक़ूफ़ बना देगी आरव ने हंसते हुए कहा तो उसने उसका माथा चूम लिया…बेटे ने सरप्राइज़ ही ऐसा दिया था….

मुझे कोई फ़िक्र नहीं तुम जो होगे मेरे हक के लिए लड़ने को…

वह सोचने लगी बहुत अच्छे पल खोने के बाद भी जैसे लग रहा था उसने कुछ नहीं खोया इतना प्यारा बेटा जो माँ का सहेली बन गया…

शाम मे आशुतोष उसे रेस्टोरेंट ले गए कितने प्यारे पल थे जो बेटे के प्यार और सहयोग से मिले थे बर्फ अब पिघल रही थी… इस स्वतंत्रता दिवस उसने भी अपने खालीपन से आजादी पा लिया… और इस आजादी पर उसका हक था उसे समझ आ गया था और अपनी जायज आजादी लड़ झगड़ के… मांग के या छीन के जैसे भी हो लेनी चाहिए…  आज़ादी पर पत्नी… बहू… और माँ का भी हक है….

स्वरचित एंव मौलिक

सुल्ताना खातून 

साखियों यह कहानी आपको कैसी लगी कमेन्ट मे जरूर बताएं धन्यवाद…

 

 

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