इतने लंबे अरसे के बाद गांव आकर विनय को बहुत अच्छा लग रहा था। यहां की ताजी हवा और स्वच्छ वातावरण उसमें मानो एक नई ऊर्जा का संचार कर रहे थे।
दरअसल विनय के पिता का पैतृक घर यही गांव में था। परंतु बाद में पिता की नौकरी शहर में लग जाने के बाद उन्होंने मकान भी वहीं बनवा लिया। शुरू में कुछ दिनों तक दादा दादी गांव में ही रहते थे, पर बाद में समय के साथ जब उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो पिताजी उन्हें अपने साथ शहर ले आए। अब कभी कभार ही घर की देखभाल के इरादे से ही वे लोग बस गांव जाया करते थे।
मगर इस बार तो दादी ने मन्नत मांग रखी थी कि अगर अभियांत्रिकी की पढ़ाई में विनय को अच्छे अंक आए तो वे वसंत पंचमी में गांव में मूर्ति स्थापित कर सरस्वती पूजा करवाएंगे। और इसी उद्देश्य से अभी विनय का पूरा परिवार गांव आया हुआ था।
सुबह की ताजगी विनय को बहुत अच्छी लग रही थी। वह घर से टहलने को निकल पड़ा और गांव की गलियों में टहलते टहलते वह गांव के मुहाने तक चला गया। यह इलाका गांव से थोड़ा अलग पड़ जाता था। यहां पर अब एक पुराना कुआं था और उसकी दूसरी तरफ बेर की झाड़ियां थीं। वह वहां से वापस आने ही लगा था उसे झाड़ियों में कुछ सरसराहट सी सुनाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा कर लो तो कुछ दिखाई नहीं दिया पर थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा गांव की वेशभूषा में भोली भाली से दिखने वाली एक लड़की बेर की ऊंची टहनी को कूद कूद कर खींचने का प्रयत्न कर रही थी, टहनी बहुत ऊंची थी इसलिए उसका हाथ बस टहनी को छू कर रह जाता था। उसकी सादगी और भोलेपन का कुछ ऐसा असर हुआ कि विनय सम्मोहित सा उसे देखता रह गया। जब उसे प्रयत्न करते हुए काफी देर हो गई और वह सफल नहीं हुई तो वह थक कर यूं ही कमर पर हाथ रखकर खड़ी हो गई। बरबस मुस्कुरा पड़ा विनय…. उसने आगे बढ़ कर हाथ बढ़ाकर टहनी नीचे कर दी। उसके इस अप्रत्याशित हस्तक्षेप से वह लड़की बिल्कुल चौंक सी गई, मगर टहनी में लटके बेरों को देखकर उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने खूब सारे बेर तोड़कर अपने दुपट्टे में बांध लिए।
विनय ने हंसकर कहा “-नाम क्या है तेरा? तू भी इन्हीं बेरों की तरह खट्टी मीठी दिखती है।”
उसकी बात सुनकर लड़की का मुंह लाज से लाल हो गया। झट से वापस जाने को पीछे मुड़ गई। इस पर विनय ने पता नहीं किस सम्मोहन के वशीभूत होकर उससे कह दिया “-कल फिर आएगी न बेर लेने, मैं इंतजार करूंगा…….अब कम से कम मेरा धन्यवाद तो कर दे…. अभी गांव में कुछ दिन रहूंगा मैं…”
तभी जाने किस ने उसे आवाज लगाई “-चंदा…ओऽ चंदा….”
“आईऽऽ” कहती हुई चंदा वहां से भाग निकली।
घर लौट कर पूरे दिन विनय खोया खोया सा रहा। उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था। जैसे तैसे दिन बिताकर रात में सोने भी गया तो उसे नींद नहीं आ रही थी। उसकी आंखों के सामने तो चंदा का वही भोला भाला मुखड़ा घूम रहा था। वह बेसब्री से सुबह होने की प्रतीक्षा कर रहा था। सुबह होते ही वह फिर टहलने के बहाने बेर की झाड़ियों तक जा पहुंचा। वह काफी देर प्रतीक्षा करता रहा मगर चंदा नहीं आई। थक हारकर वह घर वापस आ गया। पूरे दिन उसका चेहरा उतरा रहा । उसने ठीक से खाना भी नहीं खाया। सब उसे बार-बार पूछ रहे थे पर वह सर दर्द का बहाना बनाए लेटा रहा। रात को भी उसने हल्का सा खाना खाया और सो गया। सुबह फिर वह टहलते टहलते वहीं बेर की झाड़ियों के पास पहुंच गया कि शायद कहीं आज चंदा आए। बहुत देर हो गई मगर चंदा आज भी नहीं आई। वह हार कर लौटने ही वाला था कि किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा तो देखा चंदा खड़ी थी। दांतो से दुपट्टे को दबाए दृष्टि झुकाए खड़ी थी। विनय कुछ पल तो अपलक उसकी प्यारी सी सूरत देखता ही रह गया, फिर जैसे उसने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर बेर से लदी हुई एक टहनी नीचे कर दी। चंदा मौन बेेर तोड़ रही थी मगर उसके हाथों की कंपकंपाहट बता रही थी कि उसके भी हृदय में उथल-पुथल मची हुई है।
विनय ने हौले से पूछा “- कल क्यों नहीं आई?”
चंदा ने दृष्टि नीचे किए हुए ही उत्तर दिया “-मोहे लाज आ रही थी..”
इसके इस भोले और ईमानदार उत्तर पर हंस पड़ा विनय। फिर मुस्कुरा कर उससे कहा “- तू मुझे बहुत अच्छी लगती है, अब तू बता, मैं कैसा लगता हूं तुझे??…” चंदा मौन पांव के अंगूठे से मिट्टी कुरेदती रही।… विनय ने फिर मनुहार की “-अच्छा चल, सिर हिला कर जवाब दे दे, मैं तुझे अच्छा लगता हूं या नहीं?” कुछ पल शांत खड़े रहने के बाद चंदा ने “हां” में सर हिलाया और लजाकर वहां से भाग निकली। विनय को तो मानो पूरी दुनिया ही मिल गई। घर लौट कर आया तो जैसे उसके पर लगे हुए थे। अगले दो दिनों में तो जैसे जीवन का पूरा सौंदर्य घुल आया था।
उस दिन कुएं की मुंडेर से सटकर बैठे-बैठे बातें करते करते विनय ने चंदा का हाथ थाम लिया। उसके हाथ थामते ही चंदा घबरा सी गई। बिना कहे ही विनय उसके मन की बात समझ गया। उसके हाथों को अपने हथेलियों के बीच रखते हुए उसने बस इतना कहा “-तू मुझसे डर मत चंदा! मुझे अच्छी तरह से पता है कि एक लड़की की इज्जत क्या होती है। मेरा प्रेम पवित्र था, पवित्र है और पवित्र ही रहेगा। तुझे तो मैं ब्याह कर अपने घर लाऊंगा।” उसके इतना कहते ही पता नहीं क्या हुआ, चंदा की आंखों में आंसू भर आए और वह सीधे उठकर वहां से चली गई।
अगले ही दिन सरस्वती पूजा थी। सब पूरे उत्साह से पूजा की तैयारियों में लगे हुए थे। विनय भी पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की तैयारियां कर रहा था और साथ ही साथ चंदा की प्रतीक्षा भी… आज पूजा है तो चंदा भी अवश्य घर पर आएगी..
पूजा बहुत ही अच्छी तरह से संपन्न हो गई। प्रसाद वितरण भी हो गया पर चंदा नहीं आई। पूरा दिन उसने जैसे तैसे बिताया।
दूसरी सुबह वह फिर चंदा से मिलने पहुंचा। जब चंदा आई तो उसकी आंखें सूजी हुई थी, जैसे रात भर रोई हो। विनय ने घबराकर पूछा “-क्या हुआ चंदा? तू परेशान क्यों दिखाई दे रही है? और कल तू मेरे घर पूजा में क्यों नहीं आई?”
चंदा ने अपनी बड़ी-बड़ी पलके उठा कर पूछा “- तोहे मेरी जात का पता ना है का विने बाबू ? मैं कैसे आती तोहरे घर? तुम लोग बड़े लोग हो, हम तो छोटी जात के हैं, तोहरे घर कैसे आते? सब लोग छुआछूत मानत हैं..”
तमतमा गया विनय,”- कैसी बात कर रही हो चंदा? तुम्हारी जाति कुछ भी हो, मैं तो तुमसे ही ब्याह करूंगा। आज मूर्ति विसर्जन है, इसके बाद कल मैं शहर चला जाऊंगा। लेकिन वहां पहुंचते ही घर में सबको तुम्हारे बारे में बताऊंगा और तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा, तुम मेरी प्रतीक्षा करना….”
अगले दिन विनय सपरिवार वापस शहर अपने घर आ गया। घर पहुंचते ही उसने सबको चंदा के बारे में बताया। चंदा की बात सुनते ही मानो सबको सांप सूंघ गया।
दादी ने तो ऊंची आवाज में रोना धोना शुरू कर दिया “-हाय, उस कलमुंही ने मेरे भोले भाले पोते पर जादू टोना कर डाला। आग लगे…कीड़े पड़े उसे.. उसके पूरे खानदान को गांव से ना निकाल बाहर किया तो मेरा नाम भी कलावती नहीं…. और तू भी सुन ले विनय अगर अब एक बार भी उस मरी का नाम अपनी जुबान पर लाया तो मैं जहर खा कर अपने प्राण दे दूंगी…”और फिर अपनी छाती पीटने लगी। फिर विनय के पिता को संबोधित कर कहा,”- लल्ला, तू विनय के लिए जल्दी से एक अच्छी लड़की देख। जल्द से जल्द मैं अपने घर एक खानदानी लड़की ले आऊं ताकि उस कलमुंही का काला साया मेरे पोते के ऊपर से हट जाए।”
“-मगर दादी सुनो तो….” विनय ने समझाने का प्रयत्न किया।
तभी विनय के पिता की कड़कती हुई आवाज आई “-तू क्या अपनी दादी की जान लेना चाहता है? वह दो टके की छोकरी क्या आज तुझे अपनी दादी से प्यारी हो गई है। अगर ऐसा है तो तू अभी और इसी वक्त घर छोड़कर जा सकता है। मैं आज तुझसे अपने सारे संबंध तोड़ता हूं। और कहे देता हूं अगर फिर घर वापस आया तो तू मेरा भी मरा मुंह देखेगा…”
विवश होकर विनय कुछ प्रतिरोध नहीं कर पाया। आनन-फानन में उसके पिता ने अपने मित्र की पुत्री से का रिश्ता पक्का कर दिया। पंद्रह दिनों के बाद मंगनी और उसके पांच दिन विवाह। बहुत ही धूमधाम से विनय की मंगनी कर दी गई।
विवाह में उसके पिता ने अपने सभी मित्रों, भाई बंधुओं और गांव से भी बहुत सारे लोगों को आमंत्रित किया था। वह मंडप पर बैठा था, तभी उसके पिता की आवाज आई। वह किसी से कह रहे थे,”- अरे रामेश्वर! तूने बड़ी देर लगा दी गांव से आते आते। तुझे तो पहले आना चाहिए था भतीजे की शादी में…”
रामेश्वर काका ने जवाब दिया,”- अरे क्या बताएं भैया, गांव में बड़ा पंगा हो गया था! वो अपने बिशनमा की बेटी है ना चंदा, उसने आत्महत्या कर ली। जाने क्या बात थी…..”
फिर उसके पिता का सहानुभूतिपूर्ण स्वर सुनाई दिया “-ओ हो हो! बड़ी भली लड़की थी! ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे!”
दो बूंद आंसू विनय की आंखों से ढुलक पड़े। वह फेरों के लिए उठ खड़ा हुआ मगर उसे लगा जैसे कहीं से एक बेर की झाड़ी का कांटा उसके पैरों में आ चुभा हो और सीधे हृदय तक पहुंच गया हो।
#कभी_खुशी_कभी_गम
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी धनबाद झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना