हम एक हैं – नीरजा कृष्णा

आज जब मीनू का फोन आया तो उसने अपना माथा ठोंक लिया था। सच में कितनी भुलक्कड़ हो गई है, अभी कुछ दिन पहले तक तो याद रखा था पर आज ऐन वक्त पर भूल गई कि छोटी बहन कविता का आज जन्मदिन है।

मीनू ने हँस कर फोन किया था,”अरे वाह मौसी! कितनी बिज़ी हो, सबने मम्मी को उनके जन्मदिन की बधाई दे दी है…बस एक आप ही बची हो।”

उन्होंने हँस कर कहा,”अरे ये बता, तूने अपनी मम्मी को बधाई दी या नहीं?”

“अरे मैं तो उनके पास साक्षात् उपस्थित हूँ, सुबह ही पूरे परिवार के साथ धमक कर सरप्राइज दिया था।”

वो बहुत खुश होकर सोचने लगी…कविता मीनू की दूसरी माँ बन कर गई थी। मन में ढेरों संकल्प ले गई थी और नन्ही सी मीनू को गले से लगा लिया था। घर के रिश्तेदारों और पास पड़ोसियों ने दूसरी माँ का तमगा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पर दोनों की  सूझबूझ से कोई भारी विपदा नहीं आ पाई थी। उसे याद आया जब वो भी कविता के घर पर थी…किसी बात पर उसने मीनू को डाँट दिया था और रमेश जी ने भी उसका समर्थन करके मीनू को झाड़ दिया था…बस बम विस्फोट हो गया था,उसके रोने की आवाज सुनकर पड़ोस की ताई दौड़ी  आई थी और उसे चिपटा कर बोली थीं,”धीरज रख बिटिया, धीरज रख! जब माँ दूसरी आती है तो बाप भी तीसरा हो जाता है।”

थोड़ी देर तो वो सुबकती रही थी पर अपने पापा मम्मी का उदास चेहरा देख कर ताई से छिटक कर कविता से लिपट कर बोल पड़ी थी,”तो क्या मैं चौथी हो जाऊँ…ना मम्मी दूसरी है ,ना पापा तीसरे हैं बल्कि हम सब एक ही हैं”

तभी मीनू की खनकती आवाज आई,”क्या सोचने लगी मौसी”

वो धरातल पर आकर बोलीं,”चल अपनी माँ को फोन दे, बधाई देकर उसे खुश करूँ”

फिर खनकती आवाज़ आई,”क्या कहा आपने? मेरी माँ…अरे पहले तो वो आपकी बहन हैं ना”

अब हँसने की बारी उसकी स्वयं की थी,”अरी लाडो, कविता अब मेरी बहन कम और तेरी माँ ज्यादा हो गई है।”

नीरजा कृष्णा पटना

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