बहू रानी – अंजू निगम

विमल अपनी नयी-नवेली के साथ दरवाजे पर खड़ा है।माँ दरवाजा खोलती हैं।विमल के साथ खड़ी लड़की को सुहाग का जोड़ा पहने देख उनका माथा ठनक जाता हैं।विमल की माँ आरती कुछ और सोचे उसके पहले ही दोनों आरती के पैरो पर झुक जाते हैं।

      विमल पर अंध स्नेह रखने वाली आरती के लिये यह बड़ा धक्का हैं।उनके लालड़े ने उन्हे विश्वास मे लिये बिना जिदंगी का इतना बड़ा फैसला ले लिय।|उन्हें बड़ा मुगालता था,सारा इस लड़के ने धराशायी कर दिया।लड़का अपनी नयी ब्याहता को लिये खड़ा है अब आर्शीवाद  तो देना ही पड़ेगा।

     आरती का दिमाग चल रहा हैं “काहे माने हम इसे अपनी बहू।हमसे पूछा रहा, क्या बिहाने से पहले?अब काहे आये है आर्शीवाद का स्टेंप लगवाने!!!का हमारा आर्शीवाद सुखी जीवन का गांरैन्टी लिया हैं?’

   उनका मन तो किया कि अपने लड़के को हांक दे पर सामने बहू खड़ी थी।

    लड़के और बहू को उनके पैरो पर झुके खासा समय हो गय।|लड़के ने ऊपर देखा तो माँ गायब।

विमल ने धनूष की तरह अकड़ चुकी पीठ को सीधा किया।स्नेहा को हुंकार लगायी,”उठ जाओ,माँ तो लगता बहूतई नाराज हो गई हैं।”

   “काम ऐसा किये हो तो का आरती उतारे तुम्हारी?”आरती, आरती का थाल सजाये बाहर आते बोली।

     

यह सब सत्कार चल ही रहा था कि पीछे दरवाजे से छोटा बाबू हाजिर हो गये।छोटा बाबू ,आरती के पति।कद के मामले मे छोटा बाबू आरती से उन्नीस ही ठहरते।

      अब छोटा बाबू आये, ये कौन बड़ी बात थी पर वे अपनी वही पटरे वाली जांघिया पहने धड़धड़ाते चले आये।आरती ने देखा तो माथा पकड़ लिया।तनिक आड़ मे जा जांघिया के ऊपर लूंगी चढ़ा लेने के लाख इशारे किये पर छोटा बाबू ठहरे खर बुद्धि।आरती के इशारो को वे ताड़ नहीं पाये।खी-खी कर कुछ कहने को ही हुये कि विमल के साथ आयी लड़की के पहनावे को देख अचकचा गये।

इतनी हलचल से लड़की भी अंदाजा लगा गई कि कमरे मे कोई तीसरा आया हैं,सो नजर नीची कर संभल कर खड़ी हो गई।

   आरती ने नयी बहू की नीची नजर को परखा और झट आरती का थाल विमल को पकड़ा अलगनी से लूंगी खींच लायी।

दबे स्वर मे छोटा बाबू को घुड़का,”बांधो इसे”

छोटा बाबू जल्दी लूंगी अपने चारो ओर खोंस अपनी भूमिका मे आ गये।

“ये किसका आरती -सत्कार हो रहा हैं?”

“आपका बेटा,बहूरिया ले आये है।उसी का सारा ताम-झाम हैं।तुम काहे पीछे खड़े हो गये?तुम भी सत्कार कर लो”आरती के स्वर मे व्यग्यं का पुट था।

   छोटा बाबू तनिक हिचकचाये और साथ ही उन्हें भारी अंचभा भी हुआ,”बड़ा हिम्मत दिखाया बच्चवा”मन ही मन खुश होते सोचे।




प्रकट में बोल उठे,”हाँ हाँ अपना बहू का सत्कार काहे न करेगे”कह अपना हाथ बहू के सिर पर झपाक से धर दिया।

आरती ने बहू के आगे आलते की थाली रख दी।बहू का गृह प्रवेश हो गया।इतना मे बाहर से दूध वाला ने हांक लगायी।

“ओssssमाई,तनिक दूध का भगोना जल्दी बढ़ाओ।वैसा ही आज बड़ा देर.हो गया।कैसा दिन चढ़ आया हैं!!!लौटते बखत खुब देर हो जायेगा।”

   आरती चिढ़ी थी ही,”का टेर लगाये जा रहा हैं।दरवाजे बैठ जाये का कल से?बुड़बक कही का।देर तो हम सब ही को हो गया हैं।”

मौका देख विमल स्नेहा को कमरे लिवा ले गया।

इधर स्नेहा सोच रही थी,”गजब हैं माई।सबका हांक लेती हैं”

उधर आरती का माथा भिन्ना रहा था।”बहू तो आ गई अब जहान में क्या लीपापोती करेगी?छोटा बाबू आये मूढ़ जात!!का फायदा होगा उनसे कुछ भी पूछने का ।”

  खानदान के और लड़कन-बच्चन में तो आरती बड़ी ठसक से नेग लिये रही।अब लौटाने के बखत ये बवाल!!खानदानी फुफा-जीजा तो उठते-बैठते विमल की शादी का हलकारा भेजे रहते हैं।एक आध तो आगे-पीछे सुभीता दे गये,”भोईजी,लड़कन का सेहरा कब उतार रही?सर्दी उतर रही हैं।इस बार तो बढ़िया कोट-पैटं का सहारा हो जातो।”

    तब आरती भी ठसक मे रहती,”कोई अच्छा लड़की तो सुझाईये।”

का-का आस जोहे थे।बैंड-बाजा,ढोल-बताशे,जीजा -साली का नोक-झोंक,नेग-शगुन सब न ठंडे बिस्तर में चला गया।आरती का जी तो आया कि अभी विमल को बुला उसका फलीदा बनाये।

“ये कौन शादी हूआ?लड़की हाथ झुलाते चली आई?हमारा लड़का का देखा ऐसा ढ़ेर फुट की लड़की मे!!इतना रिश्ता बैठा था सब मिट्टी मे लीप दिया!!!!

    आरती दोपहर तक इसी उधेड़बुन मे बैठी रही।छोटा बाबू दो बार आ खाने का पूछ गये।

   जब शाम ढलने को हूई तब आरती उठी, दिया-बाती करने को।

  इतना मे एक लंबी गाड़ी आ कर रूकी आरती के घर के आगे।उससे उतरे लोग खानदानी लग रहे थे।आगे बढ़ जब उनका परिचय मिला तो आरती  हकबका गई।वे स्नेहा के माँ-बाबू थे।आरती से ज्यादा वे स्नेहा पर कुपित थे पर बात संभालने की वजह सब तय करने आये थे।

“अपना घर का हाल तो बहुत ही बेकार हैं इनके आगे।”

    आरती सोच रही थी और देख रही थी लाईन से लगे फल-मावो की डलिया।

    सुबह का सारा ऊहापोह शाम ढलते धुल गया था।पीछे छुट रहा सारी रौनक फिर नये रूप मेंं लौटने वाला था।

    आरती की आँखो से विमल के लिये फिर स्नेह बरस रहा था।

     

अंजू निगम

 

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