रूबी को कितनी बार मां नीमा ने समझाया कि तुम अब बड़ी हो रही हो इतने झीने और टाइट कपड़े पहन कर कालिज मत जाओ पर वह अपनी इस दूसरी मां की बात क्यों सुने । चाची और बुआ ने रूबी को शुरू से ही सिखा रखा था की सौतेली मां कभी अपनी सगी मां की तरह हो ही नहीं सकती । अमित ने नीमा से शादी रूबी की मां शुचि के देहान्त के 10 साल बाद
की । रूबी के जन्म के बाद ही शुचि का देहान्त हो गया । रुबी की दादी के बहुत कहने पर भी अमित ने शादी नहीं की । दादी ने ही रूबी की परवरिश की पर जब वह 10 साल की थी दादी का देहान्त हो गया मजबूरी में अमित ने नीमा से शादी की नीमा बिन मां बाप की लड़की थी । चाचा चाची पर आश्रित इसलिये वह इसे बोझ समझते थे । जब किसी ने अमित के बारे में नीमा के चाचा चाची को बताया तब उन्होंने तुरन्त हां कर दी । अमित को भी लगा कि यह स्वयं ही ऐसी परिस्थितियों में रही है ये रूबी की सही तरह से परवरिश कर सकती है। बस उसने हां कर दी पर वहां तो घर के लोगों ने ही रूबी के दिमाग में जहर घोल दिया था । नीमा के भी कोई सन्तान नहीं हुई । वह रूबी को बहुत प्यार करती थी पर रूबी उसे अपना दुश्मन समझती थी ।आज बारिश का मौसम हो रहा था ।नीमा ने इसी लिये उसे टोका पर रूबी उसकी बात नकार कर कालिज चली गयी । रास्ते में ही बारिश शुरू होगयी । वह अपने को बचा ही नहीं पा रही थी । एक पेड़ के नीचे खड़ी होने पर भी वह भीग गयी । उन पारदर्शी कपड़ों में उसके शरीर के उभार नजर आ रहे थे । उसी समय उसने देखा कालिज के सबसे अधिक बदनाम लड़के शोभित और रोहित मोटर साइकिल पर आरहे थे । उन्हें देख कर वह बहुत डर गयी । वह लड़के उसके पास रुके बोले घर पर तुम्हें कोई मना नहीं करता हालांकि हम बहुत बदनाम हैं पर हमारे घर में भी बहनें हैं । तुम अभी यहीं रुको तुम्हें मोटर साइकिल पर लेकर नहीं जा सकते पर कुछ इन्तजाम करते हैं। तभी देखा सामने से कुछ बच्चे छाता लेकर आ रहे थे । वह बच्चे शोभित के मोहल्ले के थे । शोभित ने कहा तुम दो बच्चे एक छाते के अन्दर आ जाओ और एक छाता इन दीदी को दो बस रूबी की तो आंखें बरस रही थी उसने छाता ले लिया और बोली भैया आज मुझे महसूस हुआ कि किसी बारे में कुछ लोग गलत बोलते हैं जरूरी नहीं वह गलत हों । मेरी मां भी इसका मतलब गलत नहीं हैं वह जो बात कहती हैं सही कहती हैं । आज इस छाते ने मुझे सिखा दिया की जैसे यह बारिश से बचाव कर रहा है उसी तरह मां की छत्रछाया सभी गलत बातों से बचाव करती है और वह उन दोनों को धन्यवाद देकर जल्दी से घर पहुँच कर मां के आंचल में छिपना चाहती थी ।
स्वरचित
डा. मधु आंधीवाल