क्या मम्मी! आपको घंटी नहीं सुनाई देती क्या? कितनी देर से बेल बजा बजाकर थक गए और आप हैं कि जरा सा दरवाजा खोलने में घंटों लगा देती है झुंझलाते हुए शशांक और सानवी भड़भड़ाकर अंदर घुसे।
बेटा! मुझसे अब भाग कर दरवाजा नहीं खोला जाता कमरे से बाहर आने में टाइम लगता है गठिया के मारे पैर की उंगलियां मुड़ती जा रही हैं चलने में बहुत दर्द होता है उम्र के पैंसठ बसंत पार कर चुकी रमा सफाई देने लगी तो बहू कमरे में से बड़बड़ाती हुई निकली बस मम्मी आप तो रहने ही दीजिए जब पड़ोस की आंटियों के साथ बैठती हैं तब तो आपके हाथ पैर में कोई दर्द नहीं होता शशांक के सामने ही आपको ये सब चोंचले सूझते हैं।
अब रमाजी बहू के आगे क्या सफाई दें कि जो घंटा आधा घंटा वे अपनी हम उम्र पड़ोसियों के साथ गुजार लेती हैं वह भी बहू से देखा नहीं जाता। वर्ना सुबह से काम वाली से काम करवाने की चौकीदारी, कुक से खाना बनवाना धोबी से कपड़े धुलवाना बच्चे के स्कूल से आने पर उसे देखना, कोरियर या पोस्टमैन को देखना घर में रमाजी ही तो करती हैं! वर्ना बहूजी शशांक के जाते ही अपनी किट्टी पार्टी और शापिंग को कैसे जाएंगी।
बड़ी मुश्किल से रमा जी ने एक मालिश वाली को तय किया पर बहूरानी ने उसे भी टोक टोक कर निकाल दिया!
कितनी बार शशांक को कहा कि किसी अच्छे हड्डी के डाक्टर या किसी होम्योपैथ को ही दिखा दे वहां पैसे भी कम लगेंगे पर उसे एक तो ऑफिस से फुर्सत नही मिलती फिर इतवार और छुट्टी के दिन सानवी कहीं ना कहीं बाहर का प्रोग्राम बना लेती!
अगर कभी माॅल बगैरह जाने का प्रोग्राम बनता कभी-कभार रमाजी का भी मन करता घर की चार दिवारी से निकल कहीं घूमने का या फिर पोता भी जिद करता दादी को संग ले चलने का तो सानवी फौरन मना कर देती दादी के पैर में तकलीफ हैं वे कैसे जाएंगी।
रमाजी को मॉल जाना और वहां कुल्फी या आइसक्रीम खाना बहुत पसंद था! कभी वे शशांक को धीरे से कहने लगतीं कि आज आइसक्रीम ले आना तो बहू फौरन मना कर देती कि रात को खायेंगी तो घुटनों और पैरों के दर्द से चिल्लाकर नींद हराम करेंगी।
वो बेचारी मन मसोस कर रह जातीं
अपने कमरे की खिड़की पर बैठी देखा करतीं कैसे एक चिड़िया ने घोंसला बनाया,कैसे कभी चिड़ा कभी चिड़िया बार बार उड़कर तिनके लाऐ आनन फानन में घोंसला तैयार हो गया!उन चिड़िया-चिड़ा को देखना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया
फिर चिड़िया के अंडे और कुछ दिन बाद छोटे छोटे लाल लाल बच्चे दिखने लगे!चिड़िया उड़कर जाती मुँह मे कुछ लाती और वे अपनी नन्हे नन्हें चोंच खोलते तो रमाजी को बहुत अच्छा लगता।
उन्हें देखकर रमाजी को अपने पति राकेश जी की याद आती !वे खुशी के दिन याद आते जो उन्होंने उनके साथ बिताए थे! रमाजी के मुँह से निकली हर बात राकेश जब तक पूरी न कर लेते चैन से नहीं बैठते थे!
और शशांक वो तो दोनों की जान था जैसे!
हर छुट्टी के दिन उनका बाहर घूमने जाना रमा जी और शशांक की पसंद का खाना खिलाना जैसे राकेश जी की ज़िन्दगी का मकसद हुआ करता।
अब रमाजी अपनी पसंद के खाने को भी तरस गई !
राकेश जी जब तक जिये अपने ऊपर एक पैसा भी खर्च नहीं किया बस रमाजी और शशांक को अच्छे से अच्छा खिलाया पहनाया।
फिर एक दिन रमाजी ने देखा चिड़िया के बच्चों के छोटे छोटे पर निकल आए और उड़ने की कोशिश करते करते एक दिन वे फुर्र से उड़ गए।
शाम को चिड़िया आई उसने घोसला खाली पाया कुछ देर वहीं बैठी फिर कहीं चली गई।समझ गई कि चिड़िया उदास थी!
रमा जी ने भी अपने मन को समझा लिया कि बच्चे जब बड़े हो जातें हैं तो उनकी राह अलग हो जाती है उनका परिवार,उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं!समझदारी इसी में है कि मन को समझाऐं और बची हुई ज़िंदगी अपने सहारे से काटें।
दोस्तों आज के भौतिक वादी युग में रिश्तों के मायने बदलते जा रहे हैं!जीवन संध्या में भूल जाईये कि आपने अपने बच्चों को कितनी मुश्किल और मेहनत से अपनी जरूरतों को नकार अपनी ख्वाहिशों को ताक में रखकर उन्हें पाला उनकी परवरिश की!
आज बच्चे सोचते हैं कि यह आपका फर्ज था कुछ तो यह कहने से भी शर्म महसूस नहीं करते कि आपने पैदा किया तो यह आपकी जिम्मेदारी थी।
वे भूल जाते हैं कि आज जहाँ रमा जी हैं कुछ समय बाद वे वहाँ होंगे।
सच तो यह है कि अपेक्षा करना ही गलत है।जब हम अपेक्षा करते हैं कि हमने बच्चों के लिए किया तो बुढ़ापे में वे हमारा करें तब अगर वे हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो दुःख होता है।
आप मुझसे सहमत हों तो प्लीज लाइक-कमेंट अवश्य दें! मुझे फौलो भी करें! धन्यवाद
आपकी
कुमुद मोहन
आज के इस भौतिकतावाद युग में हमारी पहली जिम्मेदारी अपने आपको स्वस्थ रखते हुए किसी भी सहारे की अपेक्षा किया बिना बची हुई उम्र को खुशी खुशी गुजारना है। किसी अनपेक्षित आकस्मिक बीमारी में अवश्य बच्चों से सहयोग की अपेक्षा रखें अन्यथा जब तक हो सके स्वतन्त्र रूप से दिन गुजारें।