त्याग की पराकाष्ठा – तृप्ति शर्मा

अभी दो हफ्ते पहले ही पड़ोस में एक नया परिवार आया था । घर में मुखिया रामबाबू उनकी पत्नी ,दो बेटे और एक बेटी थी साथ मे थे। एक दो ढाई साल का छोटा सा बच्चा, सावले रंग का घुघराले बालों वाला,मासूम से चेहरे पर  काजल से काली हुई बडी बडी आंखे। बहुत ही प्यारा और मासूम बच्चा था वो।

बहुत कोशिश की उसकी मां को देखने की,पर सिर्फ बच्चे का नाम ही पता कर पाई। ” नयन ” ।

बडी बडी आंखों को साकार करता नाम।पसंद आया मुझे नाम,सटीक लगा बच्चे के लिए।

आज सुबह से ही नयन के घर काफी  गहमा गहमी थी। शोर शराबा तो नहीं पर लोगो का आना जाना लगा हुआ था।नारी सुलभ उत्सुकतावश मैने पड़ोस में जमने वाली महिला चौकड़ी से पता लगाया कि नयन की दूसरी मां आने वाली है,पहली यानी की नयन की सगी मां का सड़क दुर्घटना मे देहांत हो चुका था।

 मन की सोच को अब विश्राम मिला कि क्यों बच्चा हमेशा दादी बूआ की गोद मे दिखता है,कभी जिद करता कभी खेलता सा।


गली की महिलाएं कानाफूसी करने लगी,चलन के मुताबिक बातें कि दूसरी मां कैसी होगी बच्चे को अपनाएगी या नहीं वगैरह-वगैरह । कही न कही ये बात मै भी सोचने लगी थीं।

रात को नयन के रोने चिल्लाने की आवाज से आंख खुली , पता लगा कि उसे अपने पापा के पास जाना था,पापा नई पत्नी के साथ रस्मों में उलझा हुआ था । दादा नयन को चुप कराने की भरसक कोशिश कर रहे थे,पर बच्चे को जैसे दुनिया की बातो की भनक लग गई थी कि अब उसका पापा भी उससे दूर हो जाएगा। खैर रात बीती और दिन भी। नयन अब कभी कभी अपनी नई मां के साथ दिखने लगा।सामाजिक कानाफूसी अभी भी जारी थी।

घर के पीछे खेत होने के कारण गली मेंं गाय, बैलों आदि का काफी आना जाना था,नयन की दादी भी अक्सर उसके हाथो से गाय को रोटी खिलवाती थी। सब सही चल रहा था नयन की नई मां ने अब तक पड़ोसियों की बातो को बड़ने की कोई वजह नहीं दी थी।

समय बीता पता चला कि नयन के साथ खेलने वाला छोटा भाई या बहन आने वाला है।लोगो की बातों को मौका मिल गया ,”

सगा तो सगा ही होता है और सौतेला ,सौतेला ही रहता है”।

 एक दिन दादी के घर मे न होने के कारण नयन अकेला ही गाय को रोटी खिलाने बाहर आया,शायद उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था। गाय आगे निकल गई पीछे से पगलाया सा बैल नयन पर निशाना साधे सींग हिलाते भागा आया।


पड़ोसी अपनी तरफ से प्रयत्न करने लगे,बैल का तो जैसे नयन पर पिछले जन्म का कोई कर्ज या दुश्मनी हो जैसे। वो सींग घूमा कर नयन को उठाने ही वाला था की उसकी दूसरी मां अचानक सामने आ गई,जिसको अब तक नयन की दूसरी मां होने के कितने ही ताने सुनने पड़े थे,बैल का सींग उसके पेट में जा लगा, वो लहूलुहान हो वही गिर गई।

अब तक पड़ोसियों ने बैल को पीछे से पकड़ लिया था।   उसकी दूसरी मां अपना बच्चा खो बैठी थी, उसके इस त्याग ने कानफूसियों और सौतेली मां होने के अभिशाप को धो दिया था । अब वह दूसरी मां से नयन की मां बन चुकी थी।

माँ,माँ ही होती है ,उसे सोतेला ,समाज और आसपास के लोग बनाते हैं। ममत्व को आंकने का हक ऐसे लोगों को नहीं होना चाहिए।

#त्याग
तृप्ति शर्मा।

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