अनमोल रत्न

निर्मला जी को शुरू से ही गांव में रहना पसंद था लेकिन बच्चों की पढ़ाई और पति की नौकरी भी शहर में थी इस वजह से शहर में रहना उनकी मजबूरी थी लेकिन पति के रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपना बसेरा गांव में ही बसा  लिया था जिंदगी हंसी खुशी गुजर रही थी निर्मला जी और राजेश जी के तीन बेटे और एक बेटी थी.  तीनों बेटे इलाहाबाद में ही सेटल थे सबका अपना अपना बिजनेस था  साल में एक 1-1महीने तीनों बेटों के घर चले जाते थे. 

 दीपावली और होली में पूरा परिवार गांव में इकट्ठा होता था और खुशी-खुशी त्यौहार मनाया जाता था.  समय अपने मस्त चाल में चल रहा था तभी अचानक से राजेश जी को दिल का दौरा पड़ा और उनको बचाया नहीं जा सका . 

कैसे क्या हुआ उनकी खुशियों को जैसे नजर ही लग गई एक झटके में निर्मला जी की सारी खुशियां बिखर गई. 

 तीनों बेटों ने यह दुखद समाचार सुना तो जल्दी से इलाहाबाद से गांव पहुंचे. उनके सब क्रिया कर्म निपटाने के बाद तीनों बेटे अपने मां के पास एकत्रित हुए और उन्होंने  अपनी माँ से कहा, माँ अब आप यहां अकेले  रह कर क्या करोगी आप हमारे साथ चलिए।” 



 निर्मला जी ने कहा, “नहीं बेटा मुझे यही पर रहने दो मुझे यही अच्छा लगता है इस गांव में अपनापन सा लगता है। . देखो बेटा तुम्हारे पिता तो अब हमें छोड़ कर जा चुके हैं मैं चाहती हूं कि जो भी धन संपत्ति है अपने जीते जी तुम लोगों में बंटवारा कर दूं ताकि आपस में मेरे मरने के बाद तुम लोग विवाद ना कर सको.  थोड़ी देर बाद अलमीरा से निर्मला जी  कुछ सामान निकाल लाईं।  मखमल के थैले में बहुत सुंदर सी चांदी का शृंगारदान  था जो उनके शादी में चढ़ाया गया था।  और एक बहुत सुंदर सा सोने की घड़ी जो  राजेश जी हमेशा पहना करते थे। 

तीनों बेटे इसे लेने के लिए लपक पड़े बड़ा बेटा जोश में बोला मां यह घड़ी तो मैं ही लूंगा क्योंकि मैं इस घर का बड़ा बेटा हूं इसीलिए पापा की चीजों पर सबसे पहले मेरा हक है। 

निर्मला जी तनाव में थी कि सामान तो दो ही है बेटे तीन है आखिर यह दोनों चीजों का बंटवारा कैसे करें।  सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे तभी मंझला  बेटा संदीप संकोच वश  मां से बोला।  मां तेरी बहू को यह शृंगारदान बहुत प्रिय है मैं तो कहता हूं यह उसी को दे दो। 

 अब समस्या यह थी कि अगर यह शृंगारदान मंझली बहू को दे दे और घड़ी बड़े बेटे को दे दूं तो छोटे बेटे को फिर क्या दूं। निर्मला जी अपने छोटे बेटे प्रीतम की तरफ मुंह करके सोच रही थी तभी प्रीतम ने अपनी मां का भाव पढ़ लिया और वह अपनी मां के पास आकर बोला मां लग रहा है कि आप मेरे बारे में सोच रही हैं कि मुझे क्या दूं मां आप ऐसा कीजिए यह घड़ी बड़े भैया को दे दीजिए और यह शृंगारदान मँझली  भाभी को दे दीजिए सब तो यही चाहते हैं। 



 निर्मला जी ने अपने छोटे बेटे से  कहां बेटे लेकिन फिर तुम्हें क्या दूं समझ में नहीं आ रहा। 

 मां आपके पास देने के लिए एक और अनमोल चीज है और मैं चाहता हूं कि वह अनमोल चीज आप मुझे दें।  छोटे बेटे की बात सुनकर दोनों बेटे और बहूए हैरान हो गई कि मां जी के पास अब ऐसा क्या अनमोल चीज है जो प्रीतम लेना चाहता है। 

सबकी हैरानी और परेशानी को भापकर छोटा बेटा प्रीतम मुस्कुरा कर बोला वह सबसे अनमोल चीज तो आप स्वयं है मां। पिछली बार जब हम लोग गांव आए थे तो बाबू जी ने बोला था कि इस बार हम और तेरी मां तुम्हारे पास आकर रहेंगे लेकिन वहां इस बार आप हमेशा हमेशा के लिए मेरे साथ चलोगी अगर आपका मन हो किसी और भाई के पास भी जाने का तो आप  स्वेच्छा से जा सकती हैं लेकिन उसके बाद आपको मेरे पास ही रहना है। 

 निर्मला जी अपने छोटे बेटे के  प्रस्ताव को मानने से इंकार ना कर सकी। निर्मला जी के दोनों बेटों ने भौतिक चीजों के लिए अपनी मां जैसे अनमोल रत्न को पाने  से खो दिया था।

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