ये कैसा उन्माद- डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

रीता!कहां हो हो?बहुत तेज़ी से चीखा था अनुज और रीता की आंख खुल गई थी,वो भागी उसकी तरफ,देखा…अनुज ने उल्टी कर दी थी और उसके कपड़े खराब हो गए थे।

रीता जल्दी,जल्दी उसके कपड़े बदलवाने लगी थी,उल्टी की तेज महक और  उसे आते नींद के झोंके,साथ ही अनुज की जलती नज़र और बड़बड़ाहट से रीता रुआंसी हो गई थी।

अनुज से रीता की शादी हुए कोई पंद्रह वर्ष निकल गए थे,बड़ी कंपनी का जी एम था अनुज शादी के वक्त,खूबसूरत,पढ़ा लिखा,बड़ी पोस्ट पर काबिल युवक जिसके लिए रीता ने एकदम से हां बोल दी थी।

हां वो हो तो था उसके सपनों का राजकुमार…हमेशा से उसने कल्पना की थी एक ऐसे ही युवक की जो हैंडसम हो,बहुत अच्छे पद पर हो,और उसे जिंदगी की सारी खुशियां दे सके।

अनुज में उसे वो सारी खूबियां नजर आई थीं पर जरूरी नहीं को दिखता हो वो सब वैसा ही मिल भी जाए और हो भी।अनुज बहुत कठोर तबियत का आदमी था।अफसर था तो सिर्फ ऑफिस में ही नहीं बल्कि घर में भी उसका वही एटीट्यूड रहता।

शादी के कुछ पहले महीनों में ही रीता ये जान गई थी कि इनका प्यार सिर्फ बिस्तर तक ही सीमित था बाकी वो सबको अपना सब ऑर्डिनेट ही मानते थे यहां तक की रीता को भी।

कभी किसी बात पर,कभी किसी पर उसे बुरी तरह जलील कर देते और कभी कभी घर के नौकरों के सामने भी।

अरे! कैसी फूहड़ों की तरह काम करती हो?इतनी अक्ल तो अनपढ़ों में भी होती है…

घर के दो काम तुमसे ठीक से नहीं होते,ये तो कोई गंवार भी कर देगा…

ये चाय बर्फ सी ठंडी है…ओह!दूध से मुंह जल गया…सब्जी बिलकुल कच्ची थी,आलू तो आज काटे ही नहीं,क्या पूरे  पूरे डाल दिए?

इन सब बातों की बानगी,उसे रोज सुननी पड़ती और उसके एहसास मरते जा रहे थे,एक मशीन बन चुकी थी वो अब।

अनुज को पार्टीज में पीने की आदत, लत बन गई थी और फिर उसे एक बार जौंडिस हो गई।रीता उसे बहुत मनाती कि आप पिया मत करो,ये इस बीमारी में आपका लिवर खराब करके छोड़ेगी पर वो उसकी एक न सुनता।डॉक्टर दवाई दे रहे हैं,तुम डॉक्टर न बनो।

बहुत लंबी चली बीमारी तो ठीक हो गई लेकिन बाद में उसके साइड इफेक्ट्स के रूप में, अनुज सोरायसिस जैसे खतरनाक बीमारी की लपेट में आ गया।

उसका शरीर सूख के कांटा बन गया था और रीता उसकी पत्नी कम नर्स,नौकरानी,सेविका सब कुछ थी।नौकर का भी कोई वक्त मुकर्रर होता है काम का लेकिन रीता का कोई वक्त नहीं था,वो ट्वेंटी फोर इंटु सेवन उसकी परिचारिका थी,यहां तक की रात की नींद भी उसे नसीब न थी।

ऐसे ही किन्हीं पलों में रीता को याद आए वो दिन जब वो अविवाहित थी।

दूध सी गोरी,लंबी,सुनहरे,रेशमी बाल,हिरनी सी आंखों वाली रीता को जो भी देखता,पहली नज़र में पसंद कर लेता।पिता उच्चाधिकारी थे,घर में नौकर चाकर,बहुत बड़ा कोठीनुमा मकान,राजसी एहसास कराता।

फिर अचानक पिता को हृदयाघात हुआ और वो उन्हें तन्हा छोड़ कर चल बसे,आर्थिक तंगी से निबटने के लिए,उसकी मां ने घर का एक हिस्सा किराए पर दे दिया।

रेलवे उच्च अधिकारी का परिवार कुछ महीने वहां रहने आए जिनके एक ही बेटा था सुकेश जो सिविल एग्जाम्स की तैयारी कर रहा था।हर समय पढ़ाई में जुटा रहने वाला होनहार लड़का,बड़ा शर्मीला और संस्कारी था।

अनुभवी आंखों ने रीता के गुण आंक लिए थे,वो खूबसूरत तो थी ही,बहुत अच्छा गाती और नृत्य भी करती,घरेलू और सद्गुणों की खान समझ,उन्होंने,रीता का हाथ उसकी मां से अपने 

बेटे सुकेश के लिए मांग लिया जिसे मां ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया।

पर जब रीता ने ये सुना तो खिल्ली उड़ाते हुए वो बोली,मां! उस गंवार से मै शादी बिलकुल नहीं करूंगी।

पर ऐसा क्या देख लिया तूने उसमें?आहत होते उसकी मां बोली,कल को ऑफिसर बन जायेगा,उसके मम्मी पापा,तेरे सद्गुणों पर रीझ गए हैं,बिना दान दहेज के तुझे अपनाने को तैयार हैं…फिर भी?

मम्मी! उस दिन देखा था आपने जब हमारे घर चाय पी रहा था,कैसे नमकीन चम्मच से लेने की बजाय हाथ से लेकर फंकी मारी थी,पक्का गंवार!!रीता बुरा सा मुंह बनाकर बोली।

क्या इतनी सी बात के लिए तू इतना अच्छा प्रस्ताव छोड़ देगी,पता है वो तुझे कितना चाहता है,मैंने उसकी आंखों में तेरे लिए वो बात नोटिस की है…अनुभव से कह रही हूं,ये लोग बहुत सीधे और भले लोग हैं, तू राज करेगी वहां।

अरे मां!तुम्हारी बेटी है ही इतनी खूबसूरत जो देखता है वो लट्टू हो जाता है पर मेरा भी दिल तो किसी पर आना चाहिए न,तभी तो हां करूंगी।वो इतराती हुई बोली।

देख ले,तेरी जिंदगी का बहुत बड़ा फैसला है ये,जबरदस्ती नहीं थोपूंगी तुझ पर लेकिन तू पछताएगी बेटी।

फिक्र मत करो मम्मी, मै देख लूंगी,कहकर रीता ने मां की बात हवा में उड़ा दी और फिर अपनी पसंद से अनुज से शादी कर ली थी।

दोस्तो!शादी ब्याह के लिए कहा जाता है कि जोड़ियां स्वर्ग से बनकर आती हैं,कोई भी कुछ निश्चित नहीं कह सकता कि उसका लाइफ पार्टनर कैसा होगा लेकिन अपने से बड़ों के फैसले हमारे लिए इतने बुरे भी नहीं होते,फिर कोई कैसा दिखता है,क्या कमाता है,इससे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि वो कैसे दिल का इंसान है। हमें फैसला लेते हुए उस पक्ष को नजरंदाज कभी नहीं करना चाहिए।

आपको ये कहानी कैसी लगी,जरूर बताइए।

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

4 thoughts on “ये कैसा उन्माद- डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi”

  1. बहुत सुंदर शुरुआत है कहानी की.. परंतु अंत कुछ अधूरा सा है।
    पुरानी स्मृतियों के बाद फिर वर्तमान का कोई ठोस निर्णय भी होता तो कहानी और बेहतर हो जाती ।

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