Post View 708 लिफ्ट की तरफ जाते हुए ,उससे लगभग टकराने से बची थी मैं, बचाने के लिए अपना हाथ दिया उसने, परिचित सा वो अहसास ,,जिसे सालों से जीने के लिए बहुत जतन किए थे मैंने। वही चेहरा,वैसी ही बड़ी बड़ी आंखें, जिंदगी जीने की चाहत लिए । आप ठीक तो है उसकी आवाज … Continue reading वो “अपनी” सी – तृप्ति शर्मा
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