रिश्तों की अहमियत-संध्या सिन्हा
“सरला जी आप से मिलने कोई आया हैं,”
मुझसे मिलने इस “ ओल्ड ऐज होम” में कौन आएगा भला…सरला जी सोचने लगी ….उन्हें यहाँ आये अभी दो ही हफ़्ते हुवे थे और उन्होंने किसी को यहाँ के बारे में बताया भी नहीं था सिवाय राधा( अपनी सत्संग वाली सहेली )को।वो यहाँ आ नहीं सकती तो फिर कौन होगा???
ऑफिस में आकर देखा तो…
“ सॉरी माँ…” सरला जी के दोनों बच्चे रोते हुवे उनके पैर पकड़ते हुवे बोले ।
“ अब क्या??”
“ माफ़ कर दो माँ… बहुत बड़ी गलती हो गई हमदोनों से,पैसे और पद के घमंड में हम अपनी माँ के साथ-साथ अपने संस्कार ही भूल गए।आपके किए फ़ैसले से हमारी आँखें खोल दी माँ… अब घर चलों… हमें #रिश्तों की अहमियत समझ आ गयी हैं माँ! प्लीज़ हमें और कुछ नहीं चाहिए।”
संध्या सिन्हा
न्यौता-लतिका श्रीवास्तव
मां गांव से चाचा चाची को मत बुलाना .. याद है आलोक भैया की शादी में चाचा ने कितना हंगामा किया था मेरी शादी में चाचा को न्योता नहीं जायेगा अमोल दृढ़ था।
वृद्ध असमर्थ अशक्त पिता समर्थ सशक्त पुत्र को कहना चाह कर भी कुछ कह ना सके …!!अमोल वो तेरे सगे चाचा हैं न्योता नहीं जाने से बुरा लगेगा खून के रिश्तों में दरार आ जाएगी बेटा … मां से ना रहा गया।नहीं… चाचा के घर न्योता नहीं जायेगा मैंने छोटे भाई की शादी की बहुत ऊंची तैयारी की है मुझे कोई तमाशा नहीं चाहिए आलोक ने फैसला सुना दिया।
मां दुखी हो गई विवश पिता ने आंसुओ को आंखों में ही रोक लिया।
छोटे की शादी के तीन दिन पहले ही चाचा सपरिवार आ गए। अमोल चकित और नाराज होकर मां की ओर देखने लगा।
अरे अमोलवा भौजी की ओर क्या देख रहा है हम तो घर के आदमी हैं न्योता की राह देखेंगे क्या!!अरे कल को तेरे आलोक भैया के बेटे की शादी होगी तो क्या न्यौता की बाट जोहता रहेगा आने के लिए!!?क्यों भैया… पैर छूते हुए चाचा ने कहा तो पिता के रुके आंसूओ का बांध छोटे भाई से लिपट फूट पड़ा।चाचा की गहरी बात और आपसी प्रेम देख आलोक और अमोल भी आपसी रिश्तों की अहमियत समझ चुके थे।
लतिका श्रीवास्तव
समझ के रिश्ते – अंजना ठाकुर
राखी अभी कुछ दिन पहले ही शादी हो कर आई थी वो नए माहौल मैं घबराई हुई थी क्योंकि सब कुछ मायके से अलग था और मां ने कहा ध्यान रखना कुछ गलती न हो जाए इसी कारण वो हर समय डरी डरी रहती आज उसे बुखार आ गया नींद खुली तो देखा दस बज गए घबरा कर उठी तो देखा सास सर पर हाथ फेर रही है उसे आश्चर्य हुआ तो शांति जी बोली बहू मैने पहले भी कहा ये तुम्हारा घर हाई युद्ध का मैदान नहीं नए माहौल मैं ढलने मैं वक्त लगेगा ।सबको तुम अपना ही समझो
ये सुनकर राखी के दिल का बोझ उतर गया शांति जी की समझ से रिश्तों की अहमियत मजबूत हो गई।।
अंजना ठाकुर
रिश्तों की अहमियत -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
“तुम्हारी नजरों में रिश्तों की तो कोई अहमियत ही नहीं है!
शादी क्यों किया था तुमने जब तुम्हें रिश्ते निभाने ही नहीं थे तो?”
कामिनी की आंखों में आंसू थे।
“ नहीं अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती अगर तुम मुझे और मेरे परिवार को अपना नहीं मान सकते तो फिर मैं तुम्हारी फैमिली को कैसे अपना मान सकती हूं।
अच्छा होगा कि हम दोनों यही एक दूसरे का साथ छोड़ दें हमेशा के लिए।
भले ही हमने प्रेम विवाह किया था लेकिन हमारे रिश्ते में न तो प्रेम ही है और न सम्मान!”
कामिनी ने कहा और बाहर निकल गई।
***
सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
रिशतों की अहमियत-डाॅक्टर संजु झा
ऊषा जी ने सोसायटी में नया फ्लैट लिया था जिसके कारण उसमें काम चल रहा था।
इस कारण उनकी पड़ोसन बार-बार दरवाजे की घंटी बजाकर गंदगी की शिकायत करती।ऊषा जी ने उन्हें समझाते हुए कहा -“बहन जी!बस कुछ दिनों की बात है,जहाँ तक सफाई की बात है तो शाम में मैं खुद खड़ी होकर सफाई करवा देती हूँ।फिर भी पड़ोसन अपनी हरकतों से बाज नहीं आई,जिसके कारण पड़ोसन से ऊषा जी का जी खट्टा हो गया।
गृहप्रवेश के समय ऊषा जी ने अपने पति से कहा -“मैं पूजा में पड़ोसन को नहीं बुलाऊँगी।”
उनके पति ने समझाते हुए कहा -” ऊषा!पड़ोस के रिश्तों की अहमियत समझो।सुख-दुःख में पहले पड़ोसी ही काम आते हैं।”
सचमुच पूजा के दिन पड़ोसन गिफ्ट के साथ ऊषा जी के गले मिलकर रहीं थीं।दोनों ने रिश्तों की अहमियत समझ ली।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)
हलाहल -अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
टेस्ट रिपोर्ट आ चुकी थी। वह बाँझ नहीं थी। कमी उसके पति रोहन में थी। बाहर बैठी सास के ताने, कानों में गर्म सीसे की तरह चुभ रहे थे। जवाब देना चाहती थी, पर याद आया कि कैसे रोहन चट्टान की तरह उसका सबल बन जाता था।
और फिर…. शिव की तरह वह भी हलाहल पी गई।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
रिश्तों की एहमियत-अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
“कैसा बेटा है तूं, जो चाची जी को अनाथाश्रम छोड़ आया है?” दीपक को धिक्कारते हुए श्याम बोला।
“ग्रो अप मैन, ” बिदकते हुए दीपक बोला, “उसे अनाथाश्रम नहीं, वृद्धाश्रम कहते हैं। वहां उन्हें हमउम्र …”
“हमउम्र लोग तो अनाथाश्रम में भी मिलते हैं। अगर उन्होंने भी तुझे ताउम्र हमउम्र लोगों में ही रहने दिया होता, तो … ?” , गुस्से से श्यामू बोला।
इस “तो” की सच्चाई सोचते ही दीपक को रिश्तों की एहमियत याद आ गई थी ।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
रिश्तो की एहमियत-संगीता अग्रवाल
” ये क्या मम्मा जब देखो तब हमारे घर कोई ना कोई मुंह उठा कर चला आता है किसी को घूमना है , किसी को अस्पताल जाना है किसी को खरीदारी करनी है सबको हमारा ही घर नज़र आता मानो ये हमारा घर नही सराय है !” मिष्ठी अपनी मम्मी नीता से बोली।
” बेटा हम दिल्ली मे रहते है इसलिए यहाँ किसी काम से आने पर रिश्तेदार यहाँ चले आते है !” नीता ने समझाया।।
” वो लोग होटल मे भी तो रुक सकते है ना हमारे ही घर क्यो जब वो अपने काम से आ रहे हो !” मिष्ठी बोली।
” बेटा ये हमारा सौभाग्य है रिश्तेदार इस बहाने हमें याद तो कर लेते है वरना आज की दौड़ती भागती जिंदगी मे कहाँ टाइम है मिलने का रिश्तो की एहमियत समझो वरना खाली हाथ रह जाओगी !” नीता बोली तो मिष्ठी निरुत्तर हो गई ।
संगीता अग्रवाल
पड़ोसी धर्म -मंजूला वर्मा
सॉरी मम्मा, वसुधा अयान को पढ़ा रही थी, तभी अयान ने कहा मम्मा पड़ोस वाली नीति आंटी जब देखो कुछ न कुछ मांगने आ जाती है तभी वसुधा ने बेटे को डांटते हुए बोली,आज के बाद ये बाद ये बात कभी मत बोलना।कोरोना के समय जब मैं और पापा कोविड की चपेट में थे तो उस समय यही पड़ोस वाले अंकल और आंटी ने तुम्हें अपने पास रख कर तुम्हारा ख्याल रखकर जो अपना पड़ोसी धर्म निभाया, इतना शायद कोई अपना भी नहीं करता।उनका ये एहसान मैं शायद कभी नहीं चुका पाउंगी, यह बातें सुनकर अयान अपने दोनों कान पकड़ कर कहा सॉरी मम्मा!
मंजूला वर्मा
रांची
#रिश्तों की अहमियत
असली रिश्ता -बालेश्वर गुप्ता
रघु आज भी आया था,कुशलता पूछने।झिझकते हुए मैंने उसे डॉक्टर के पास साथ चलने को बोल दिया तो तुरंत रिक्शा बुलाकर डॉक्टर के पास ले गया।
मालती जरूर उससे पिछले जन्म का नाता है,तभी तो वह हमारी बेटे की तरह सेवा करता है।अपना बेटा तो विदेश में है।यहां भारत मे हमारा कौन है,सिवाय इस रघु के।कहते कहते हरीश भाई की आंखे नम हो गयी।
रद्दी बेचकर अपनी गुजर करने वाले रघु को मालती ने स्नेह से एक बार खाना क्या खिला दिया,वह तो घर का सदस्य सा ही हो गया।उनकी हर जरूरत का ध्यान रघु रखता।हरीश भाई को दिल का दौरा पड़ा तो रात दिन रघु ही उनके पास रहा,उनका बेटा विनेश तो कई दिन बाद आ पाया।हरीश जी मानते थे,रघु नही होता तो वे जिंदा नही बचते।
बस वे कभी कभी संशय में जरूर पड़ जाते कि असली रिश्ता विनेश निभा पाता है या फिर रघु निभा रहा है।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
#रिश्तों की अहमियत पर आधारित अति लघुकथा: