अर्पण – रश्मि स्थापक

“दीदी देख…ये देख झुमकी…जरा देख …अच्छी है न?” सबसे छोटी बहन ने बड़े उत्साह से अपनी तीनों बहनों के बीच सुंदर डिबिया में से सुनहरी चमचमाती झुमकियाँ निकालकर बताते हुए कहा। अपने छोटे और इकलौते भाई के विवाह में चारों बहनें मायके में इकट्ठी हुई हैं। सब होने वाली भाभी के लिए क्या गिफ्ट लाई … Read more

त्याग – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

माँ! पिताजी हरदम एक ही राग क्या अलापते रहते हैं?? काम के ना काज के दुश्मन अनाज के! मुझे उनके मुहावरे बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं कह देना उनसे! जब से रिटायर क्या हुए हैं जीना हराम कर दिया है उन्होंने। जब देखो नसीहतों का पिटारा लेकर बैठ जाते हैं। खाली दिमाग….!” माँ ने जोर … Read more

लाडली – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मोबाइल लिये लगभग वह भागती हुई बैठक में आईं। “अरे सुनो! बिट्टू के ससुराल से फोन है।लो बात कर लो, पता नहीं अचानक क्या बात है?”            “तुम ही कर लो ना! माँ हो बिट्टू की।” “नहीं-नहीं मुझे ठीक से बात करने नहीं आती। पढ़े लिखे बड़े लोग हैं उनसे तुम्हीं बात करो।” “ठीक है लाओ … Read more

मेरे भाई पिता से बढ़कर – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

अरे भई!  कोई नहीं आने वाला है तुम्हें देखने क्या झूठ- मूठ का आशा लेकर बैठ गई हो। अब वो दिन गया जब एक छींक पर तुम्हारे पापा तुम्हें देखने के लिए मैके से किसी न किसी को दौड़ा दिया करते थे समझी। कई बार फोन कर चुका हूँ, कोई खास ग़म नहीं है तुम्हारे … Read more

 बड़ा भाई पिता के समान होता है – अरुण कुमार अविनाश

” मैडम, छः माह की फीस बाकी है – बच्चों के हाथ कई बार नोटिस भेजा पर –।” नलिनी हताश-सी फीस क्लर्क की ओर उम्मीद से देखी। ” मेरे बस में कुछ नहीं मैडम – आप प्रिंसिपल मेम के पास जाइये।”– नलिनी के चेहरें पर वेदना के भाव देख कर फीस क्लर्क पिघला। आखिरी कोशिश … Read more

बेसहारा –  मुकुन्द लाल

सुदेश के पिताजी की मृत्यु दो दसक पहले गंभीर बीमारी की चपेट में पड़ने के बाद उचित इलाज नहीं होने के कारण हो गई थी।  अक्सर गरीब के घर में गंभीर बीमारी के आगमन का अर्थ साक्षात वहांँ यमदूत का पदार्पण ही होता है। कुछ इसी तरह की बातें प्राइवेट फर्म में काम करने वाले … Read more

अधिकारी – कंचन श्रीवास्तव

चरण स्पर्श लिखते हुए निवेश के सामने अतीत का एक एक पन्ना स्वत: ही खुलने लगा। आंसुओं की अविरल धारा आंखों से बहने लगी। उसे अच्छे से याद है जब मां पिता जी साल के भीतर ही हम सबको तोड़के चले गए थे तो कैसे भाई ने हम सभी भाई बहनों को संभाला , सारी … Read more

अपना घर तो अपना ही होता है – मुकेश कुमार

 राकेश जी रांची सचिवालय में नौकरी करते थे लेकिन अब रिटायर हो चुके थे एक दिन अपने दोस्त महेश जी के साथ पार्क में घूम रहे थे तभी उनके  दोस्त महेश जी बोले अरे भाई राकेश मैंने सुना है कि तुम अपना  घर बेचकर हमेशा-हमेशा के लिए अपने बेटे के पास हैदराबाद जाने वाले हो।  … Read more

अनजाने रिश्ते – अनुपमा

शमिता आज फिर छोटी स्कर्ट पहनी है तुमने , कितनी बार बोला है कॉलेज जाते वक्त ऐसे कपड़े मत पहना करो , पीछे से सुधा ने उसे आवाज देते हुए कहा तो शलभ ने मां का हाथ पकड़ के बोला रहने दो मां , पहनने दो उसे जो पहनना चाहती है ।  शमिता तो बिना … Read more

बड़े भैया पिता समान – गरिमा जैन 

4 January 2007 तिहाड़ जेल  सुबह के नौ बजे भोलू : यार मुकेश आज तो तू रिहा हो जाएगा। अब तो बता दे उस रात क्या हुआ था ?इतने सालों से एक उदासी जो मैंने तेरे चेहरे पर देखी है उससे मुझे यही लगता है कि उस रात जो कुछ भी हुआ वह सच सच … Read more

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