बाबुल बादल प्रेम का हम पर बरसा आई – लतिका श्रीवास्तव

New Project 49

#पितृ दिवस पर मन के भाव इस बार कोई कहानी नहीं सीधे सीधे शब्दों में अपने श्रद्धेय पिता के बारे में अपने मन के ही भाव व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूं मेरे पापा मम्मी उस विशाल वट वृक्ष की भांति हैं जिनकी अविरल अगाध स्नेहिल शीतल छाया और सुदृढ़ आधार ने हम सबको … Read more

चित्कार – रीता मिश्रा तिवारी

New Project 48

आज श्यामा की शादी बड़े धुमधाम से जमींदार सूरज सिंह के बेटे बैंक अधिकारी कृष्णा सिंह से संपन्न हो गया।  दूध सी रंगत की चांद सी सुंदर श्यामा कृष्णा के नजरों से एक पल के लिए भी ओझल होती तो परेशान हो जाता पागलों की तरह प्यार जो करता था। पत्नि के जाने के बाद … Read more

गोल टेबल – दर्शना जैन

सौरभ एक फर्नीचर की दुकान के बाहर खड़ा दुकान के अंदर देख रहा था। दुकान मालिक ने आकर कहा – भाईसाहब कुछ चाहिए क्या? अंदर आइये ना। सौरभ ने कहा,” भाई, कुछ खरीदना नहीं है। आपकी दुकान में रखे गोल टेबल पर नजर पड़ी तो कुछ याद आ जाने से मैं रूक गया। ऐसी टेबल … Read more

अहसास –   बालेश्वर गुप्ता

New Project 47

पितृ दिवस पर – – –                 आज वर्षो पूर्व का स्वाद याद आ गया. गोलगप्पे खूब चाव से खाता था. उम्र बढ़ जाने के कारण अब ऐसी चीजो को खाने से डॉक्टर भी मना करते हैं और शरीर भी. पर इस मन का क्या करे? अजीब सी बेचैनी है. बाहर खुद ठेले पर जाकर गोलगप्पे … Read more

कहीं वो रास्ते में तो नहीं… – रश्मि स्थापक

कहीं वो रास्ते में तो नहीं… “भई रोज तो केवल नौ बच्चे अनुपस्थित थे,आज दस कैसे?” स्कूल के प्रिंसिपल ने परीक्षा कंट्रोल रूम में परीक्षा इंचार्ज से पूछा जो ऑनलाइन अनुपस्थिति भेज ही रहे थे।” ” सर अब तो लगभग आधा घंटा होने को है…इसके बाद तो किसी को अंदर आने की परमिशन भी नहीं … Read more

मृगमरीचिका – नीलम सौरभ

New Project 46

व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सबको पीछे छोड़कर सफलता के उच्चतम शिखर पर जा बैठने का स्वप्न इतना सम्मोहक होता है कि कई बार महत्वाकांक्षी मानव को उस लक्ष्य के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता। कदाचित यह लक्ष्य किसी ‘मृगमरीचिका’ के समान होता है, समीप पहुँचते ही और दूर दिखने लगता है। मृगमरीचिका! …मरुस्थल में प्यास … Read more

पापा – नीलिमा सिंघल

New Project 45

नमित को आज तरक्की मिली थी कंपनी का CEO बन गया था, उसकी शान में पार्टी रखी हुई थी, सब बहुत खुश नजर आ रहे थे बुके का ढेर लगा देखकर नमित थोड़ा अनमना सा हो गया था, जाम पर जाम टकराए जा रहे थे पार्टी पूरे शबाब पर थी पर नमित का ध्यान बार … Read more

“रक्षक या भक्षक” – ॠतु अग्रवाल

आज मन बहुत उदास था रम्या का। पता नहीं, कभी-कभी मन क्यों उन गलियारों में खो जाता है, जहाँ बचपन की एक कच्ची,कड़वी सी याद उसके अंतस के घाव को कुरेद देती है। कितना ही उस नासूर को भरने की कोशिश की, उसने,उसके पापा मम्मी ने। पर जब तब उससे रिसता मवाद अपनी सड़ांध से … Read more

चीत्कार – श्वेता मंजु शर्मा

New Project 44

#चित्रकथा हिना स्तब्ध खड़ी थी। सामने था उसका रहबर, उसका साथी । एक झटके में उसने उसका सब छीन लिया । तलाक़ तलाक़ तलाक़, इन तीन लफ्जों ने उसकी जिंदगी बदल दी । कैसे इतना संगदिल हो गया उसका सनम । वो सामान बाँधने लगी । नन्ही जोया रो रो कर हलकान थी। बार बार … Read more

कैद से मुक्त – डा.मधु आंधीवाल

इस  कोरोना काल ने सारा जग जीवन ही अस्त व्यस्त कर दिया । रुचिका आज अपने को बिलकुल अकेला और असहाय महसूस कर रही थी । जब सब सयुंक्त परिवार था अपने लिये सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली । सास  का अनुशासन  और भरा पूरा परिवार । कालिज के समय के सारे शौक पता … Read more

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