दरियादिल – नीलम सौरभ

कार्यालय में अपनी सीट पर बैठी हुई मोहिनी गहरी सोच में डूबी दिख रही थी। बेटी ऋत्विका की आज सुबह नाश्ते के टेबल पर हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही गयी बात उसके दिमाग़ में बड़ी देर से गूँज रही थी। “ममा! कल हमारी क्लास के कॉमेडी स्टार मधुप ने फिर से ख़ूब हँसाया था सबको….!” सैंडविच … Read more

एक माँ का गणित- नीरजा कृष्णा

“अरे मम्मी जी! आप अभी तक तैयार नहीं हुईं। गाड़ी आ गई है।” बहू ममता हैरानी से पूछ रही थी। एक पारिवारिक विवाह समारोह में उन सबको हाजीपुर जाना था। बेटे मनोज को पटना में कुछ काम था अतः वो शाम को आने वाला था। वो धीरे से बोलीं,”अभी तुम दोनों बच्चों को लेकर चली … Read more

*जीवन के खेल* – मुकुन्द लाल

अपने गांव के बाहर से गुजरने वाली रेलवे लाइन से हटकर कुछ दूरी पर स्थित चबूतरे पर बैठा सुदीप ट्रेन का इंतजार कर रहा था। अवसाद और क्षोभ की लकीरें उसके चेहरे पर साफ दिखलाई पड़ रही थी।  प्रचंड धूप की तपिश के कारण चतुर्दिक सन्नाटा छाया हुआ था। दो बजने वाले थे किन्तु एक … Read more

विचित्र किंतु सत्य – प्रीती सक्सेना

 बहुत साल पहले करीब 47 साल पहले की बात है, मेरे पापा बिलासपुर छत्तीसगढ़ में तहसीलदार के पद पर पदस्थ थे, मैं पांचवी क्लास में पढ़ती थी, पापा पास के गांव में टूर पर गए हुए थे, पापा के एक परम मित्र थे एक सरदार जी, जो अक्सर पापा से मिलने आते थे, उनकी खासियत … Read more

मजदूर या मजबूत – गोविन्द गुप्ता

मजदूर शब्द आते ही सर पर अंगोछा बंधे चेहरे पर झुर्रियां और कुछ सामान ढोते या ठेली चलाते मजदूर याद आ जाते है मुम्बई दिल्ली जैसे शहरों में देश के विभिन्न हिस्सों से रोजगार की तलाश में आये मजदूरों की संख्या लाखो में है,लेकिन सब कुछ न कुछ काम पाकर खुशी पूर्वक जीवन यापन कर … Read more

चाय-नाश्ता – पुष्पा कुमारी “पुष्प” 

“आइए बैठिए शोभा जी!.लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!” यह कहते हुए अंजना ने पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली शोभा को बैठने के लिए वही रखी कुर्सी खिसका दिया। कुर्सी पर बैठते हुए शोभा धीरे से बोली.. “जरा वकील साहब से मिलने आई थी!” “वकील साहब से!” अंजना को हैरानी हुई। असल … Read more

सवाल हानि-लाभ का – नीलम सौरभ

रोज की तरह शाम को रुनू की दादीमाँ अपनी हमउम्र सखी के साथ जब पास वाले मन्दिर गयीं, वापसी में उन्हें सड़क के किनारे ठेले पर सजी ताज़ी सब्जियों के साथ आलू, प्याज भी बिकते दिख गये। वे भी एकदम फ्रेश दिख रहे थे। सुबह-सुबह बहू की बातें कानों में पड़ी थीं, कि आलू-प्याज दोनों … Read more

बिफर पड़ी-कंचन श्रीवास्तव 

एक ही घर में रहते हुए गलियारे से निकलकर बोली अरे रज्जो कौन आने वाला है ? जो इतनी तैयारी कर रही , सुबह से देख रही हूं काम पे काम किए जा रही ।इस पर वो मुस्कुरा कर रह गई, पर इनसे रहा नहीं गया तो घंटे भर बाद फिर आकर पूछी  बताती क्यों … Read more

आँसू और मुस्कान – ज्योति अप्रतिम

टेबल पर पड़ा हुआ टिफिन मुँह चिड़ा रहा था।पाँच मिनट देर हुई और उसे वहीं छोड़ कर सुदेश ऑफिस निकल गए।ऊपर से चार बातें और सुना दीं। साढ़े पांच बजे से रोबोट की तरह काम करने के बावजूद ऐसी स्थिति !सोचते हुए रोना ही आ गया।एक बार आँसू निकल पड़े तो बन्द होने का नाम … Read more

सज़ा – अनु’ इंदु

एक ही शहर में रहते हुये भी तनु दीदी मुझसे कभी नहीं मिली थीं । जबकि तनु दी मेरी सगी बुआ की लड़की थी । फिर ऐसा कुछ हुआ कि तनु दी को मैंने दिल्ली में किसी रिश्तेदार की मृत्यु पर देखा । देख कर यकीन नहीं हुआ कि क्या यह वही है । कितनी … Read more

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