अनचाहा रिश्ता भाग 4 (अंतिम) – गरिमा जैन

अशोक पुरानी यादों में डूबता जा रहा था तभी अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी जिससे उसकी यह याद टूट गई । उसके पापा का फोन था। उससे फोन उठाकर कहा बस” मैं निकल रहा हूं” , लेकिन अशोक के पापा काफी गुस्से में थे। वह बोले कि” मैंने ही तुम्हारी शादी कराई थी और … Read more

अनचाहा रिश्ता भाग 3 – गरिमा जैन

अशोक ने जल्दी से कैब बुक की और अपने मुंबई के ऑफिस में चला गया। उसे मन ही मन रचना की याद एक पल  को आई पर उसने तुरंत अपना मन हटा लिया ।सच उस लाल शिफॉन की साड़ी में रचना किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी और उस पर उसकी वह मुस्कान … Read more

अनचाहा रिश्ता भाग 2- गरिमा जैन

अशोक पुरानी यादों में डूबता जा रहा था तभी अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी जिससे उसकी यह याद टूट गई । उसके पापा का फोन था। उससे फोन उठाकर कहा बस” मैं निकल रहा हूं” , लेकिन अशोक के पापा काफी गुस्से में थे। वह बोले कि” मैंने ही तुम्हारी शादी कराई थी और … Read more

अनचाहा रिश्ता भाग 1- गरिमा जैन 

आज रचना की शादी थी । उसने एक बार चारों तरफ नजर घुमा कर देखी। शानदार इंतजाम था । ऐसी शानो शौकत वाली शादी करना उसके मां-बाप सोच भी नहीं सकते थे । वह एक मध्यवर्गीय परिवार से थी। स्कूल में शिक्षिका थी और उसकी शादी जिस इंसान से हुई थी वह अमीर ही नहीं … Read more

बेटी- रूद्र प्रकाश मिश्रा

 ” इस बार भी बेटी ही हुई ” । ये तीसरी बेटी हुई थी इस घर में और उसके होते ही ये एक पंक्ति पता नहीं कितनों के मुँह से निकली होगी । क्या मर्द , और क्या औरत , सभी बस इसी एक वाक्य को दुहरा रहे थे । पता नहीं , पोते का … Read more

सावधानी – गीतांजलि गुप्ता

पिता जी आप सारा दिन बिस्तर पर ही बैठे रहते हो। यहीं खाते पीते हो और सारा सारा दिन ‘टी वी’ देखते हो इसीलिए आप की हड्डियों ने जबाव दे दिया है थोड़ा चला फिरा करो घूमा करो गली में।” राजेश अपने पिता कोसमझा रहा था या झुंझला रहा था पिता दीनानाथ जी को कुछ … Read more

स्वाभिमान – गीतांजलि गुप्ता

सीमा अधिकतर चुप रहती है कम बोलती है काम ज़्यादा करती है सभी लोग उससे उम्मीद रखते हैं कि समय से काम करे। क्या बाहर का, क्या घर का हरेक काम निपटा ही लेती है। घर में शांति बनी रहती है और सभी लोग अपने अपने काम में मस्त रहते हैं। खाने की टेबल पर … Read more

तिजोरी – अरुण कुमार अविनाश

पत्नी के देवलोक गमन करने के बाद – एक दिन पत्नी के गहनें बेचकर – एक भारी – मज़बूत – अभेद – तिजोरी खरीद लाया। अपने कमरे की दीवार में फिक्स करवाने के बाद – घण्टों दरवाज़ा बन्द कर आराम से सोता रहा। शाम हुई तो ज़ेवर के खाली डिब्बे तिजोरी में जमाया। कुछ पुराने … Read more

सेतु निर्माण-रेखा पंचोली

पिताजी के देहावसान को पूरा एक वर्ष बीतने वाला था |उनकी बरसी की मेरी तैयारी पिछले कई दिनों से चल रही थी | मैं उनकी पुण्य तिथि पर अपने पहले काव्य संग्रह का विमोचन करवाना चाहता था | ये कहानी संग्रह मैंने उन्हीं को समर्पित किया था | पुस्तक प्रकाशित हो कर आ चुकी थी  … Read more

स्वरा….!!- विनोद सिन्हा “सुदामा”

कहते हैं पीड़ा और वेदना का कोई रूप नहीं होता,कभी अथाह कष्ट असहनीय वेदना के कारण बन जाते हैं तो कभी अति स्नेहलता आपको असीम पीड़ा से रूबरू करा देती है..पर दोनों ही रूप में कहीं न कहीं वक़्त और आपकी परिस्थितियाँ ही दोषी होती हैं.। मेरा अभिन्न मित्र शुभय भी इन दिनों कुछ इन्हीं … Read more

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