सावधानी – गीतांजलि गुप्ता

पिता जी आप सारा दिन बिस्तर पर ही बैठे रहते हो। यहीं खाते पीते हो और सारा सारा दिन ‘टी वी’ देखते हो इसीलिए आप की हड्डियों ने जबाव दे दिया है थोड़ा चला फिरा करो घूमा करो गली में।” राजेश अपने पिता कोसमझा रहा था या झुंझला रहा था पिता दीनानाथ जी को कुछ … Read more

स्वाभिमान – गीतांजलि गुप्ता

सीमा अधिकतर चुप रहती है कम बोलती है काम ज़्यादा करती है सभी लोग उससे उम्मीद रखते हैं कि समय से काम करे। क्या बाहर का, क्या घर का हरेक काम निपटा ही लेती है। घर में शांति बनी रहती है और सभी लोग अपने अपने काम में मस्त रहते हैं। खाने की टेबल पर … Read more

तिजोरी – अरुण कुमार अविनाश

पत्नी के देवलोक गमन करने के बाद – एक दिन पत्नी के गहनें बेचकर – एक भारी – मज़बूत – अभेद – तिजोरी खरीद लाया। अपने कमरे की दीवार में फिक्स करवाने के बाद – घण्टों दरवाज़ा बन्द कर आराम से सोता रहा। शाम हुई तो ज़ेवर के खाली डिब्बे तिजोरी में जमाया। कुछ पुराने … Read more

सेतु निर्माण-रेखा पंचोली

पिताजी के देहावसान को पूरा एक वर्ष बीतने वाला था |उनकी बरसी की मेरी तैयारी पिछले कई दिनों से चल रही थी | मैं उनकी पुण्य तिथि पर अपने पहले काव्य संग्रह का विमोचन करवाना चाहता था | ये कहानी संग्रह मैंने उन्हीं को समर्पित किया था | पुस्तक प्रकाशित हो कर आ चुकी थी  … Read more

स्वरा….!!- विनोद सिन्हा “सुदामा”

कहते हैं पीड़ा और वेदना का कोई रूप नहीं होता,कभी अथाह कष्ट असहनीय वेदना के कारण बन जाते हैं तो कभी अति स्नेहलता आपको असीम पीड़ा से रूबरू करा देती है..पर दोनों ही रूप में कहीं न कहीं वक़्त और आपकी परिस्थितियाँ ही दोषी होती हैं.। मेरा अभिन्न मित्र शुभय भी इन दिनों कुछ इन्हीं … Read more

दरियादिल – नीलम सौरभ

कार्यालय में अपनी सीट पर बैठी हुई मोहिनी गहरी सोच में डूबी दिख रही थी। बेटी ऋत्विका की आज सुबह नाश्ते के टेबल पर हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही गयी बात उसके दिमाग़ में बड़ी देर से गूँज रही थी। “ममा! कल हमारी क्लास के कॉमेडी स्टार मधुप ने फिर से ख़ूब हँसाया था सबको….!” सैंडविच … Read more

एक माँ का गणित- नीरजा कृष्णा

“अरे मम्मी जी! आप अभी तक तैयार नहीं हुईं। गाड़ी आ गई है।” बहू ममता हैरानी से पूछ रही थी। एक पारिवारिक विवाह समारोह में उन सबको हाजीपुर जाना था। बेटे मनोज को पटना में कुछ काम था अतः वो शाम को आने वाला था। वो धीरे से बोलीं,”अभी तुम दोनों बच्चों को लेकर चली … Read more

*जीवन के खेल* – मुकुन्द लाल

अपने गांव के बाहर से गुजरने वाली रेलवे लाइन से हटकर कुछ दूरी पर स्थित चबूतरे पर बैठा सुदीप ट्रेन का इंतजार कर रहा था। अवसाद और क्षोभ की लकीरें उसके चेहरे पर साफ दिखलाई पड़ रही थी।  प्रचंड धूप की तपिश के कारण चतुर्दिक सन्नाटा छाया हुआ था। दो बजने वाले थे किन्तु एक … Read more

विचित्र किंतु सत्य – प्रीती सक्सेना

 बहुत साल पहले करीब 47 साल पहले की बात है, मेरे पापा बिलासपुर छत्तीसगढ़ में तहसीलदार के पद पर पदस्थ थे, मैं पांचवी क्लास में पढ़ती थी, पापा पास के गांव में टूर पर गए हुए थे, पापा के एक परम मित्र थे एक सरदार जी, जो अक्सर पापा से मिलने आते थे, उनकी खासियत … Read more

मजदूर या मजबूत – गोविन्द गुप्ता

मजदूर शब्द आते ही सर पर अंगोछा बंधे चेहरे पर झुर्रियां और कुछ सामान ढोते या ठेली चलाते मजदूर याद आ जाते है मुम्बई दिल्ली जैसे शहरों में देश के विभिन्न हिस्सों से रोजगार की तलाश में आये मजदूरों की संख्या लाखो में है,लेकिन सब कुछ न कुछ काम पाकर खुशी पूर्वक जीवन यापन कर … Read more

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